[शिवांशु राय]। Lockdown India: कोविड-19 महामारी से जंग के बीच अनेक शहरों में फंसे मजदूर और अन्य कामगार अपने-अपने गांवों या मूल निवास स्थानों पर जाना चाह रहे हैं। शहरों से इन कामगार वर्ग के लोगों का गांवों की तरफ पुन: विस्थापन से गावों के समक्ष तो नई चुनौतियां सामने आएंगी ही, शहरों में भी श्रमशक्ति को लेकर नए प्रकार की चुनौतियां सामने आ सकती हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर रहना और मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करना विस्थापन कहलाता है। यह प्रवृत्ति अनेक रूपों में देखी जाती है।

भारत में मुख्यत: गांवों से शहरों की ओर पलायन शुरू से देखा जा रहा है। रोजगार के अवसरों की उपलब्धता, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि आधारभूत सुविधाओं की मौजूदगी, चकाचौंध भरी जिंदगी और बेहतर जीवन जीने की अभिलाषा लोगों को शहरों की ओर आकर्षित करती है। अनियोजित शहरीकरण, अनियंत्रित विकास और असंतुलित जीवनशैली इसी की देन मानी जाती है। आज सबसे बड़ी समस्या इन्हीं लोगों को हो रही है जो रोजी-रोटी की तलाश में गावों से शहर आए थे।

शहरों में काम करने वाले असंगठित क्षेत्र के मजदूर न तो पूर्णकालीन वेतनभोगी हैं, न ही पंजीकृत मजदूर हैं ताकि सरकार उन्हें इस महामारी में खास योजनाओं का लाभ दे सके। इसलिए उनके सामने तमाम समस्याएं सामने आ रही हैं। अब तक तो वे सरकार द्वारा बनाए गए अस्थायी ठिकानों और व्यवस्थाओं पर समय काट

रहे थे, लेकिन अब वे अपने गांव या मूल निवास की ओर जाने को व्यग्र हैं। इसलिए शहरों में श्रमशक्ति में गिरावट आ रही है। इसमें अभी और गिरावट आने की आशंका है। हालांकि गांवों की तरफ रुख कर रहे इन मजदूरों को वहां भी दिक्कतें आने वाली हैं, क्योंकि यह देखा गया है कि शहरों में अक्सर उन्हीं मजदूरों का पलायन होता है जिनके पास छोटी जोत वाली खेती होती है और उनके परिवार का भरण-पोषण खेती से संभव नहीं हो पाता है।

मजदूरों की पुन: विस्थापन जैसी समस्या हमारे सामने आई है तो इसे हमें एक संभावना के रूप में भी देखने के साथ एक बेहतर कार्ययोजना तैयार करने की जरूरत है जिससे इन अवसरों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सके। दरअसल माइग्रेट करके आए युवाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है। ऐसे में कृषि संबंधी अल्पावधि और दीर्घावधि योजनाएं बनाकर उन्हें गावों में उनके पास उपलब्ध संसाधनों से रोजगार मुहैया कराया जा सकता है।

योजनाएं टिकाऊ और रोजगारोन्मुखी होने के साथ निश्चित आय को सुनिचित करने वाली होनी चाहिए जिससे इन मजदूरों में विश्वास पैदा हो सके। गांव लौटे इन मजूदरों को हम कृषि संबंधी आधुनिक प्रशिक्षण और कौशल विकास से प्रशिक्षित कर स्वावलंबी बना सकते हैं। जिस प्रकार छोटे व मझोले उद्योगों के लिए-एक जिला एक उत्पाद, जैसी योजना काफी कारगर सिद्ध हुई है, उसी तर्ज पर फसल विशेष उत्पाद क्षेत्रों की पहचान करके उन्हें बढ़ावा देने की पहल की जानी चाहिए और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों में इसके प्रति जागरूकता पैदा करनी चाहिए ताकि कृषि को घाटे का सौदा होने जैसी धारणा को खत्म किया जा सके।

ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन और सब्जी, बागवानी, मत्स्य उत्पादन समेत मधुमक्खी पालन जैसी तमाम योजनाओं को प्रोत्साहन देकर हम कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दे सकते हैं। सरकार किसानों को कृषि ऋण आसानी से मुहैया कराने के साथ उनके उत्पादों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की पुख्ता व्यवस्था करे जिससे उनके हाथ में पैसा आएगा और अर्थव्यवस्था में मांग पैदा हो पाएगी। खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहन देने तथा इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार को ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर ढंग से अमल में लाने की जरूरत है।

ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली, इंटरनेट, परिवहन एवं तकनीक जैसी आधारभूत संरचनाओं का व्यापक स्तर पर अभाव है जिस कारण अधिकतर किसान लीक से हटकर नई तकनीकों को अपनाने से हिचकते हैं। इसलिए बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने के साथ आधारभूत ढांचे में सुधार एवं किसानों में नई तकनीकों को अपनाने के प्रति रुझान पैदा करना होगा। वैसे सरकार अपनी ओर से किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना और समर्थन मूल्य में वृद्धि आदि के जरिये किसानों की आय में बढ़ोतरी की पहल कर रही है, लेकिन इसे और व्यापक बनाने की आवश्यकता है। इससे विस्थापित बेरोजगार युवाओं के मन में ग्रामीण क्षेत्रों में भी आय प्राप्ति के साधनों के प्रति विश्वास पैदा हो सकता है तथा उनकी आय में बढ़ोतरी सुनिश्चित की जा सकती है।

तीन मई के बाद सरकार देश के अनेक इलाकों में जरूरत के आधार पर यातायात बहाल करने की तैयारी कर रही है। ऐसे में अन्य शहरों और राज्यों में फंसे मजदूर और कामगार जो क्वारंटाइन की अवधि पूरी कर चुके हैं या उनमें संक्रमण नहीं हुआ है, उन्हें उनके गांव भेजने की त्वरित व्यवस्था की जानी चाहिए, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में भी खेती के लिए मजदूरों और काम करने वाले लोगों का प्रबंध मुश्किल से हो रहा है। अब वक्त आ चुका है कि सरकार असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों को एकीकृत प्रारूप में दक्षता और उनकी कार्यकुशलता के आधार पर उनकी पहचान कर उन्हें राहत पैकेज और सहायता प्रदान करे।

इसके अलावा सरकार को इन मजदूरों को वापस अपने कार्यस्थल पर बुलाने का भरोसा भी देना चाहिए। इस बात को हमें ध्यान में रखना चाहिए कि संकट के समय देश को ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने ही संभाला है, ऐसे में यह सुनहरा मौका है कि गांवों की ओर लौटे श्रम बल को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ और आत्मनिर्भर बनाने में लगाएं तथा इन लोगों को छोटे एवं मझोले उद्योगों तथा कृषि से संबंधित नवाचारों से परिचित और प्रशिक्षित करते हुए उन्हें प्रोत्साहन दें ताकि जीविका खोने के उनके संकट को दूर किया जा सके।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]