संजय मिश्र। वैसे तो कोरोना वायरस के आगमन के साथ ही संसद एवं देश के विभिन्न राज्यों में विधानसभाओं के सुचारु संचालन पर एक तरह का ग्रहण लगा हुआ है, लेकिन मध्य प्रदेश की 15वीं विधानसभा ने चंद दिनों के सत्र में कई नए प्रतिमान गढ़ दिए। विपक्ष के तानों के बीच सरकार ने नवाचार के अभिनव कदम उठाकर न केवल कोरोना संकट से लड़ने का साहस दिखाया, बल्कि स्पष्ट कर दिया कि चुनौतियों से जूझने के लिए उसके पास इच्छाशक्ति के साथ नीति और योजनाएं भी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह वर्ष 2021-22 के बजट में इसका खाका खींचा वह उनकी दूरदृष्टि का ही परिचायक है। पहली बार राज्य में लव जिहाद रोकने के लिए धाíमक स्वतंत्रता विधेयक को इसी सत्र में मंजूरी दी गई। इसी तरह दवा और खाद्य वस्तुओं में मिलावट रोकने के लिए दंड विधि संशोधन विधेयक को भी कानून का रूप दिया गया।

गौर करें तो 22 फरवरी से 16 मार्च के बीच कुल 13 दिन तक चला विधानसभा का यह सत्र छाप छोड़ने में कामयाब रहा। यह सरकार की उपलब्धि ही है कि कम दिनों के बजट सत्र में कई नवाचार हुए तो गंभीर चर्चाएं भी हुईं। प्रतिपक्ष ने जहां जनहित के मुद्दों पर सरकार घेरने की कोशिश की तो सरकार ने भी वस्तुस्थिति सामने रखकर उसे निरुत्तर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कमल नाथ सरकार के पतन के बाद से ही विधानसभा को नियमित अध्यक्ष की दरकार थी। कोरोना के गहराते संकट के बीच अनेक कोशिशों के बावजूद जब अध्यक्ष का चयन नहीं हो पाया तो सरकार ने काम चलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर बनाने का निश्चय किया। भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा प्रोटेम स्पीकर बनाए गए। विधानसभा की परंपरा के अनुसार प्रोटेम स्पीकर केवल प्रथम सत्र में नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने एवं नियमित विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव संपन्न कराने के लिए बनाए जाते हैं, लेकिन कोरोना काल की परिस्थितियों ने लंबे समय अर्थात दस माह तक रामेश्वर शर्मा को इस पद पर बनाए रखा। उन्होंने नियमित अध्यक्ष की तरह ही अपने दायित्व का निर्वहन किया। ऐसे दुर्लभ उदाहरण कम ही मिलेंगे। जैसे ही स्थिति थोड़ी सामान्य दिखने लगी तो शिवराज सरकार ने चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराकर विधानसभा को गिरीश गौतम के रूप में नियमित अध्यक्ष दे दिया।

राज्य में विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव आम सहममि से कराने की परंपरा रही है, जो कांग्रेस की कमल नाथ सरकार के समय टूट गई थी। तब कांग्रेस ने विपक्ष की असहमतियों को दरकिनार कर नर्मदा प्रसाद प्रजापति को उम्मीदवार बना दिया था। विरोध में भाजपा ने जगदीश देवड़ा को उतार दिया था। तब सत्ता पक्ष और विपक्ष के आमने-सामने आने का बड़ा कारण शक्ति परीक्षण भी था, जिसमें अंतत: नर्मदा की जीत हुई थी।

इस सत्र में प्रश्नकाल की नई व्यवस्था भी चर्चा में रही। अध्यक्ष ने व्यवस्था दी कि कई नवनिर्वाचित विधायक अब तक सदन में बोल नहीं सके हैं, इसलिए प्रश्न काल में सिर्फ उन्हें ही सरकार से सवाल पूछने का मौका मिलेगा। यह भी व्यवस्था बनाई गई कि नए सदस्यों के सवाल पूछते समय यदि त्रुटि होती है तो भी कोई वरिष्ठ विधायक हस्तक्षेप नहीं करेगा, बल्कि पीठ की ओर से संबंधित विधायक को ही त्रुटि सुधारने का मौका दिया जाएगा। इस सत्र में पक्ष-विपक्ष के बीच संवाद का स्तर भी सुधरा हुआ था। कांग्रेस सरकार गिरने के बाद माना जा रहा था कि सामान्य रूप से होने वाले इस सत्र में दोनों पक्षों के बीच की तल्खी दिखेगी। कांग्रेस सत्ता जाने की वजह से आक्रामक रहेगी और स्पष्ट बहुमत होने के कारण सत्तारूढ़ दल भी पलटवार करेगा, पर दोनों के बीच समझदारी ऐसी बनी कि सदन की कार्यवाही सामान्य तरह से चली। सत्तारुढ़ दल ने नेता प्रतिपक्ष कमल नाथ को पूरा मान-सम्मान दिया तो उन्होंने भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रति सम्मान दिखाने में कमी नहीं छोड़ी। ऐसा दोनों नेताओं के लंबे संसदीय अनुभव के कारण ही संभव हो सका।

सद्भाव की शुरुआत सत्र के प्रथम दिन ही हो गई, जब राज्यपाल आनंदी बेन पटेल अभिभाषण के लिए विधानसभा पहुंचने वाली थीं। उनकी अगवानी के लिए पहुंचे नेता प्रतिपक्ष कमल नाथ उस स्थान पर खड़े हो गए, जहां सदन के नेता मुख्यमंत्री को होना चाहिए था। यह देख मुख्यमंत्री उनके सामने रेड कार्पेट से नीचे खड़े हो गए और बातचीत करने लगे। कुछ समय में ही कमल नाथ का ध्यान उस तरफ गया तो वह मुख्यमंत्री का हाथ पकड़कर उनके स्थान पर ले गए। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर निशाने साधे, पर गरिमा का ध्यान रखा।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, मध्य प्रदेश]