[ हृदयनारायण दीक्षित ]: गाली और गोली एक जैसी। दोनों का लक्ष्य हिंसा होता है, लेकिन दोनों में आधारभूत अंतर भी है। गोली शरीर छेदकर बाहर निकल जाती है और कभी-कभी मर्मस्थल में अटक भी जाती है। शरीर में फंसी गोली बड़ी पीड़ा देती है। गाली ऐसी ही गोली है। वह मर्मस्थल में पैठकर प्रतिपल पीड़ा देती है। कांग्रेस नेता शशि थरूर राजनीतिक पराजय से भयभीत हैं। उन्हें 2019 के आम चुनाव में भाजपा की जीत का डर सता रहा है। उन्होंने कहा है कि ‘भाजपा दोबारा सत्ता में आने के बाद नया संविधान लिखेगी और भारत हिंदू पाकिस्तान बनेगा।’ थरूर का यह बयान भारतीय संविधान, जनतंत्र, हिंदू परंपरा और भारतीय जनगणमन की मूल प्रकृति पर सीधा हमला है।

हिंदू पाकिस्तान’ का शब्द प्रयोग हिंदू जीवनशैली के विरुद्ध गाली जैसा है। उनका बयान हिंदू अंतर्मन में गोली जैसा फंस गया है। व्यथा और पीड़ा गहरी है। कांग्रेस ने भी उनके बयान से पिंड छुड़ाया है। दुखद आश्चर्य है कि भारी विरोध के बावजूद थरूर अपने बयान को सही ठहराने की बौद्धिक कसरत किए जा रहे हैं। शब्द की शक्ति बड़ी होती है। शब्द के गर्भ में अर्थ होता है। पतंजलि ने शब्द प्रयोग में सावधानी के निर्देश दिए थे कि ‘शब्द का सम्यक ज्ञान और सम्यक प्रयोग ही अपेक्षित परिणाम देता है।’ थरूर बहुपठित राजनेता हैं। उन्होंने जर्मन दार्शनिक वाल्टेयर को पढ़ा होगा। वाल्टेयर ने कहा था कि ‘यदि आप संवाद चाहते हैं तो पहले अपने शब्दों को परिभाषित करो।’ थरूर परिभाषित करें कि र्‘ंहदू पाकिस्तान’ का अर्थ क्या है? पाकिस्तान का सरकारी अर्थ एक राष्ट्र-राज्य है। एक ऐसा देश जो आतंकवाद का खुला विश्वविद्यालय है। जहां हिंदू मारे जाते रहे हैं। उनकी संख्या लगातार घटने पर है। वहां ईश निंदा के बहाने राज्य प्रायोजित हत्याएं होती हैं। हिंसा और रक्तपात पाकिस्तान की सामान्य जीवनशैली है। मूलभूत प्रश्न है कि क्र्या हिंदू ऐसा कर सकते हैं? पाकिस्तानी लोकतंत्र भी हिंसा का ही पर्याय है। चुनाव अभियान भी बम विस्फोट के शिकार हैं।

पाकिस्तान और भारत का अंतर सर्वविदित है। भारत प्राचीन राष्ट्र है और पाकिस्तान मजहबी आधार पर 1947 में बना अप्राकृतिक अस्वाभाविक मुल्क। भारत की हिंदू बहुलता में सभी आस्थाओं पंथों का आदर है इसलिए यहां मंदिरों के घंटे, मस्जिदों की अजान और गिरिजाघरों की प्रार्थनाएं समवेत हैं। सब तरफ प्राचीर्न ंहदू भूमि की सांस्कृतिक ज्ञानगंध है। लेकिन पाकिस्तान में गोली बारूद की दुर्गंध के अलावा शेष क्या बचा है? थरूर भी ऐसा ही मानते होंगे। उन्होंने हिंदू प्रकृति का भी अध्ययन किया है। उनकी लिखी पुस्तक ‘व्हाई आइ एम ए हिंदू काफी चर्चित रही। पुस्तक के लेखकीय अंश में उन्होंने ‘21वीं सदी के विश्व के लिए हिंदुत्व को आदर्श आस्था’ बताया है। एक साक्षात्कार में उनसे पुस्तक की इसी मुख्य बात पर प्रश्न किए गए। थरूर की स्थापना बड़ी थी। उन्होंने दोहराया हिंदुत्व पर मैं विश्वास करता हूं, 21वीं सदी की दुनिया के लिए यह परिपूर्ण धर्म (रिलीजन) है। इसमें तर्क और विवेचन हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक में प्रयुक्त ऋग्वेद का उद्धरण दोहराया, तब न सत् था। न असत्य, न जन्म, न मृत्यु। कौन जानता है सत्य? सर्वोच्च शासक भी जानता है कि नहीं जानता।’ आश्चर्य है कि राजनीतिक कारणों से थरूर को अपनी लिखी पुस्तक के लिए भी प्रतिबद्धता नहीं है। 

थरूर राजनीतिक अंतर्विरोध से ग्रस्त हैं। कांग्र्रेस की राजनीतिक धारा भिन्न हैं। वह एक संप्रदाय के व्यापक समर्थन के लिए हिंदू विरोध की सीमापार करती दिखाई पड़ती है। थरूर के अपने अध्ययन विश्लेषण में हिंदुत्व सारी दुनिया का आदर्श धर्म दिखाई पड़ता है।’ अध्ययन अनुभूति दूसरी है, लेकिन राजनीतिक प्रतिबद्धता दूसरी। वह किताब में लिखते हैं, हिंदुत्व में विश्वास के पहले विश्लेषण और तार्किकता है। यहां तक कि ईश्वर भी परीक्षण निरीक्षण के दायरे में है।’ यहां थरूर अपने हिंदू होने पर गर्व करते दिखाई पड़ते हैं। वह सहिष्णुता को भी हिंदू विचार का केंद्र बताते हैं ‘सहिष्णुता का अर्थ है कि आपके पास एक सत्य है। दूसरे के पास दूसरा। उसे असहमत होने का अधिकार है। हमें दूसरों के सत्य का आदर करना चाहिए। भिन्न विचार और विश्वास के स्वीकार की यह परंपरा हिंदुत्व का केंद्रीय तत्व है।

यही भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति का मूलाधार है।’ उनके कथन में असहमति का आदर हिंदुत्व की संपदा है। यह संपदा उनके अनुसार 3500 वर्ष पुरानी है। उनकी मानें तो भाजपा के दोबारा जीत जाने के बाद ऋग्वेद से लेकर विवेकानंद और गांधी, हेडगेवार तक प्रवाहमान यह विरासत अचानक समाप्त हो जाएगीर्। हिंदू आतंकवादी हो जाएंगे। भारत पाकिस्तान जैसा क्रूर देश बन जायेगा।

थरूर की किताब में व्यास, याज्ञवल्क्य, पतंजलि, महावीर, बुद्ध, शंकराचार्य और रामानुज के साथ कबीर, नानक, मीराबाई, विवेकानंद और ओशो हिंदुत्व के महान लोग’ हैं। ऐसे सभी पूर्वज हिंदू अनुभूति और जीवनशैली का विकास हैं। पुस्तक के अंत में हिंदुत्व की राजनीति है। अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के पक्ष में लिखना गलत नहीं है, लेकिन अपने अनुभूत तथ्यों को राजनीति के लिए गलत ठहराना उचित नहीं होता। गांधी जी भी सार्वजनिक जीवन में थे। उन्होंने यरवदा जेल से पंडित नेहरू को पत्र में लिखा था कि ‘मैं धर्म नहीं छोड़ सकता। इसलिर्ए ंहदुत्व छोड़ना असंभव है।हिंदुत्व के कारण ही मैं ईसाइयत, इस्लाम और अन्य पंथों को प्रेम करता हूं। इसे मुझसे अलग कर दो तो मेरे पास कुछ नहीं बचेगा।हिंदू इस उपमहाद्वीप के विरल मनुष्य हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्क आधारित दर्शन के कारण हिंदू जीवनशैली आदर्श है।

मूल प्रश्न है कि क्या कोई दल हजारों वर्ष प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और दर्शन को बदल सकता है? यहां दीर्घकाल तक इस्लामी अंग्रेजी सत्ता रही। वे तमाम कोशिशों के बावजूद भारत को हिंदू अंतर्मन नहीं बदल पाए। कांग्रेस ने इस पर विदेशी सेक्युलरवाद थोपने का प्रयास किया। वामदल भी हिंदुत्व के विरोध में सक्रिय रहे।हिंदुत्व का प्रवाह जस का तस ही बना रहा। 

यहां थरूर ने हिंदू होने का अपना ही मंतव्य खारिज किया है। वह जानते हैं कि संविधान नहीं बदला जा सकता। आपातकाल के दौरान संविधान के 53 अनुच्छेद बदले गए थे। बाद में देश और संविधान अपनी राह चला। इसका कारण हिंदू मन ही था। थरूर की ही किताब का एक अंश पठनीय है। लिखते हैं, ‘आप सहिष्णुता के लिए गलत होने का अधिकार दीजिए।’ थरूर बड़ी गलती के अभियुक्त हैं।हिंदू सहिष्णु हैं। थरूर को गलत होने का अधिकार है, लेकिन हिंदू चिंतन में सुशिक्षित को गलत होने का अधिकार नहीं है। इसे यहां ‘प्रज्ञा अपराध’ कहा गया है। अपने देश को माता कहते हैं। हिंदुस्तान कभी भी पाकिस्तान नहीं हो सकता। यह प्रकृति और संस्कृति निर्मित राष्ट्र है। हिंदू अपने राष्ट्र की ऋद्धि, सिद्धि और समृद्धि के लिए सजग हैं। थरूर ने जानबूझकर सोची समझी रणनीति के चलते हिंदुओं को अपमानित किया है। इसके बावजूद थरूर का क्षमा याची न होना दुर्भाग्यपूर्ण है।

[ लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं ]