[अभिषेक कुमार सिंह]। लोकप्रिय मैसेजिंग एप वाट्सएप की हालिया घोषणा के मुताबिक यूरोपीय क्षेत्र से बाहर रहने वाले उसके उपभोक्ताओं को आठ फरवरी तक इसमें आए अपडेट को मंजूर करना होगा, अन्यथा उसे वाट्सएप की सेवाएं मिलनी बंद हो जाएंगी। असल में फेसबुक के स्वामित्व वाली कंपनी वाट्सएप ने हाल में निजता संबंधी अपनी शर्तों और नीतियों में बदलाव किया है, जिसके अनुसार अब वह भारत जैसे देशों में रहने वाले अपने उपयोगकर्ताओं की तमाम निजी जानकारियां जिसे चाहे, दे सकेगी। इनमें यूजर का आइपी एड्रेस, फेसबुक, इंस्टाग्राम अकाउंट, भाषा, देश, शहर, टाइम जोन, मोबाइल नंबर, सर्विस प्रोवाइडर से लेकर बैंकिंग और पैसे के लेनदेन संबंधी सूचनाएं शामिल रहेंगी, जिन्हें एक व्यक्ति की निजी संपत्ति के तौर पर देखने का चलन है।

वाट्सएप ने कहा है कि ग्राहकों की ये सारी निजी सूचनाएं सहमति हासिल करने के साथ ही अमेरिका स्थित उसके डाटा सेंटर के अलावा दुनिया में वहां भी भेजी जा सकती हैं, जहां वाट्सएप और फेसबुक के दफ्तर हैं। उल्लेखनीय यह है कि भारत और निजता को लेकर लचीले कानूनों वाले अन्य देशों के उपभोक्ताओं से जबरिया सहमति लेने की कोशिश करने वाले वाट्सएप को अमेरिका, चीन और यूरोपीय देशों में भी ऐसा ही करने का शायद ही ख्याल आया हो।

कई यूरोपीय देशों में निजता संबंधी कानून हैं बेहद सख्त

दरअसल अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों के निजता संबंधी कानून इतने सख्त हैं कि ये टेक कंपनियां चाहकर भी वहां अपनी मनमानी नहीं चला सकतीं। हालांकि वे सत्ता परिवर्तन का रुख देखते हुए इसकी कोशिशें जरूर करती हैं। जैसे फेसबुक के साथ मिलीभगत कर गूगल ने विज्ञापनों से होने वाली आय में इजाफा करने के इरादे से अपना एकाधिकार बढ़ाने और प्रतिद्वंद्वी कंपनियों पर आघात पहुंचाने के लिए पिछले साल कुछ प्रयास किए तो रिपब्लिकन पार्टी की अगुआई वाले अमेरिकी राज्यों में गूगल पर मुकदमा कर दिया गया। एंटी-ट्रस्ट यानी भरोसे के साथ खिलवाड़ करने के इस मामले ने साबित किया कि बड़ी टेक कंपनियां न सिर्फ प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को बाजार से बाहर कर देना चाहती हैं, बल्कि कमजोर दिखने वाली सरकारों के विरोध में मोर्चा खोलने से भी बाज नहीं आती हैं।

ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने गूगल जैसी टेक कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने के दिए संकेत 

गूगल के इसी रवैये की आलोचना करते हुए अमेरिकी राज्य टेक्सास के अटॉर्नी जनरल केन पैक्सटन ने मुकदमे का एलान करते हुए कहा था कि अगर मुक्त बाजार बेसबॉल का खेल होता तो यह कंपनी अपने आपको पिचर, बैटर और अंपायर-तीनों जगह खुद को तैनात कर लेती। जो आरोप लगे हैं उनमें एक यह है कि प्रतिद्वंद्वियों को मुकाबले से बाहर करने के लिए एपल और गूगल ने एक दूसरे का सहारा लिया। दूसरा, अन्य छोटी एवं नई कंपनियों के रास्ते में बाधाएं पैदा करते हुए गूगल ने उपभोक्ताओं के लिए विकल्प चुनने की आजादी खत्म कर दी और निजी डाटा के मामले में अपने असर का इस्तेमाल किया। चुनिंदा टेक कंपनियों के बढ़ते वर्चस्ववादी रवैये और उसके खतरे को अमेरिका के बाहर भी महसूस किया गया है। हाल में यूरोप-अमेरिका के बाद जापान और ऑस्ट्रेलिया ने भी गूगल जैसी टेक कंपनियों के एकाधिकार को चुनौती देने के संकेत दिए हैं।

अमेरिका के नागरिक आइटी एक्ट के तहत उस कंपनी के खिलाफ कर सकते हैं मुकदमा

असल में अमेरिकी, यूरोपीय और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में बाजार में प्रतिस्पर्धा कायम रखने और नागरिकों की निजता बनाए रखने के सख्त कानून बनाए गए हैं और ज्यादातर टेक कंपनियों को उन्हीं कानूनों के दायरे में रहना पड़ता है। यदि वे ऐसा नहीं करती हैं तो अव्वल तो उन्हें गूगल के प्ले स्टोर में जगह ही नहीं मिलती या फिर सरकारें उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई कर सकती हैं। जैसे अगर वाट्सएप अमेरिका में निजी डाटा के लिए लोगों की निजता में सेंध लगाता है और उस डाटा का कहीं कोई दुरुपयोग होता है तो वहां के नागरिक आइटी एक्ट के तहत उस कंपनी के खिलाफ मुकदमा कर सकते हैं। जबकि इस मामले में भारत जैसे देशों में अभी पर्याप्त जागरूकता नहीं है।

निजता मामले में चीन से सबक लेने की है जरूरत

यूं तो हमारे देश के आइटी कानूनों में निजता आदि को लेकर कुछ प्रविधान किए गए हैं, लेकिन वाट्सएप जैसी अमेरिकी कंपनियों पर ये कानून असरदार नहीं रह पाते हैं। वजह यह है कि यह कंपनी वहां के कानूनों के अधीन मानी जाएगी। इससे भारतीय कानूनों का इस पर प्रभाव सीमित रह जाता है। हालांकि यूरोपीय संघ के जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) जैसे पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल को हमारे देश में भी लाने की बात चल रही है जिसमें नियमों के उल्लंघन पर कड़ी सजा और जुर्माने के प्रविधान हैं, लेकिन जब तक यह कानून बनेगा, तब तक काफी देर हो जाएगी। इस मामले में चीन से सबक लेने की जरूरत है। चीन ने किसी भी बाहरी इंटरनेट कंपनी को अपनी जमीन पर खुला खेल खेलने की छूट नहीं दी और इससे पहले कि जनता गूगल, जीमेल, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, ट्विटर-फेसबुक और वाट्सएप जैसी चीजों की मांग उठाती या इनके चोर रास्तों की तलाश करती, चीन ने ग्रेट फायरवॉल परियोजना के तहत उन पर बंदिश लगाते हुए उनके स्वदेशी विकल्प मुहैया करा दिए।

इसकी तुलना भारत से करने पर पता चलता है कि अपने देश में इन बाहरी टेक कंपनियों ने जो सर्वर लगाए हैं, उनका इस्तेमाल कुछ देशों के लिए जासूसी के तौर पर किया जाता रहा है। बताया गया है कि गूगल पर खोजी और डाली जाने वाली हर जानकारी अमेरिका स्थित सर्वरों से होकर गुजरती है। इसलिए अमेरिका यदि कोई सूचना खंगालना चाहे तो वह गूगल पर लगाए गए अपने फिल्टर के जरिये ऐसा आसानी से कर सकता है। वक्त आ गया है कि विदेशी टेक कंपनियों के मनमाने आचरण पर अंकुश लगाया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि चाहे वे चीनी एप्स हों या ट्विटर-फेसबुक आदि कंपनियां, उन्हें पहले भारतीय यूजर्स के हितों और भारत के कानूनों का ख्याल रखना होगा।

(लेखक तकनीकी विषयों के जानकार हैं)

[लेखक के निजी विचार हैं]