नई दिल्ली [ शिवेंद्र कुमार सिंह ]। भारत में इन दिनों क्रिकेट का संचालन सुप्रीम कोर्ट की बनाई एक कमेटी सीओए यानी कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स करती है। इस कमेटी के पास तमाम अधिकार हैैं। यह कमेटी इस उद्देश्य के साथ बनाई गई थी कि इसके जरिये क्रिकेट में पारदर्शिता लाई जाएगी और क्रिकेट के खेल में अंदर तक घुस चुकी खराब राजनीति का अंत होगा, घाघ क्रिकेट प्रशासकों की मनमानी पर रोक लगेगी तथा खेल को स्पॉट फिक्सिंग और ऐसी ही कुछ और बदनामियों से भी बचाया जाएगा। अभी तक इन मुद्दों पर इस कमेटी को कितनी कामयाबी मिली, यह बहस का ही मुद्दा बना हुआ है। इसी के साथ बहस का मुद्दा यह भी है कि क्या इस कमेटी को अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक समयसीमा नहीं तय करनी चाहिए?

सीओए और बीसीसीआइ के बीच खींचतान के कारण नहीं हुआ टीम इंडिया का स्वागत

आखिर अन्य अनेक मामलों में तो सुप्रीम कोर्ट समयसीमा तय करता रहता है। आज इस मुद्दे को उठाने की जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि ऐसा महसूस हो रहा है कि इस कमेटी या फिर कमेटी और बीसीसीआइ के बीच की खींचतान के कारण ही दक्षिण अफ्रीका से ऐतिहासिक सीरीज जीतकर लौटी भारतीय टीम की अनदेखी सी हुई है। जरा सोचकर देखिए कि विराट कोहली की अगुआई में भारतीय टीम ने दुनिया की नंबर एक वनडे टीम को 5-1 से हराया, लेकिन टीम के स्वदेश लौटने पर कोई स्वागत-सत्कार नहीं। इस सीरीज के सभी मैचों में हार का अंतर इतना बड़ा था कि क्रिकेट फैंस ताज्जुब कर रहे थे कि मुकाबले दक्षिण अफ्रीका में खेले जा रहे हैं या भारत में? वनडे सीरिज के बाद टी-20 सीरीज में भी दक्षिण अफ्रीका की टीम की हालत कुछ ऐसी ही हुई। भारत ने टी-20 सीरीज 2-1 से जीती।

भारतीय टीम को दक्षिण अफ्रीका में मिली कामयाबी नाकाम हो गई, नहीं मिला इनाम

बीते 25 सालों में यह पहला मौका है जब भारतीय टीम ने दक्षिण अफ्रीका में कोई वनडे सीरीज जीती है। टी-20 सीरीज की जीत भी एक इतिहास ही है। वनडे सीरीज की जीत के साथ ही भारत ने वनडे रैंकिंग्स में दक्षिण अफ्रीका से नंबर एक का ताज भी छीन लिया। इतनी बड़ी कामयाबी के बाद भी बीसीसीआइ या फिर उसे चलाने वाली सीओए ने खिलाड़ियों के सम्मान में न तो किसी इनाम का एलान किया न ही खिलाड़ियों का वैसा स्वागत हुआ जैसा अपेक्षित था। यह कितना अजीब है कि दक्षिण अफ्रीका को उसी के घर में वनडे और टी-20 सीरीज में बुरी तरह धोने वाले खिलाड़ियों में से शिखर धवन, एमएस धौनी, भुवनेश्वर कुमार आदि को एयरपोर्ट से सन्नाटे में निकलते विजुअल्स टीवी चैनलों पर चल रहे थे। इस सिलसिले में दो किस्सों का जिक्र जरूरी है।

ऐतिहासिक जीत पर भारतीय टीम का एयरपोर्ट पर हमेशा स्वागत हुआ पर इसबार नहीं

2004 में भारतीय टीम करीब 14 साल बाद पाकिस्तान के ऐतिहासिक दौरे पर गई थी। सौरव गांगुली कप्तान हुआ करते थे। उस सीरीज को दोनों देशों के बदलते रिश्तों के तौर पर बहाल किया गया था। सौरव गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम ने वहां वनडे और टेस्ट सीरीज पर कब्जा किया। उस सीरीज को जीतने के बाद जब भारतीय टीम दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंची तो वहां कई घंटे तक पैर रखने की जगह नहीं थी। इससे पहले का भी एक इतिहास है। साल था 1971। अजीत वाडेकर की कप्तानी में भारतीय टीम इंग्लैंड और वेस्टइंडीज से जीतकर लौटी थी। तब एयरपोर्ट पर हजारों की तादाद में लोग अपने चैंपियंस के स्वागत के लिए तैयार खड़े थे।

बीसीसीआइ ने दक्षिण अफ्रीका से जीतकर लौटी टीम इंडिया को नहीं दिया कोई महत्व

क्रिकेट फैंस अपने चहेते खिलाड़ियों से हाथ मिलाने को बेताब थे। खुली कारों में खिलाड़ियों को एयरपोर्ट से बाहर लाया गया था। गौर करने वाली बात यह है कि तब बीसीसीआइ के पास न तो इतने संसाधन थे और न ही इतना पैसा। कुछ था तो वह था जीत को सलाम करने का जज्बा। अब वही बीसीसीआइ जो दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड है अपने क्रिकेट सितारों और उनकी कामयाबी की मुनादी करना भूल गया। अगर इसके पीछे तर्क यह दिया जाए कि 2011 में विश्व कप जीतने के बाद खिलाड़ियों का भव्य स्वागत हुआ था तो बहस इस दिशा में भी मुड़ेगी कि क्या विश्व कप में मिली जीत के अलावा बाकी की जीतों का कोई महत्व नहीं है? अगर महत्व नहीं है तो फिर दो देशों की सीरीज खेलने का औचित्य क्या है?

टीम इंडिया का न तो स्वागत हुआ और न ही नकद इनाम का एलान

पिछले कुछ सालों से यह रवायत थी कि किसी भी सीरीज में जीतने के बाद बोर्ड के अधिकारियों की तरफ से टीम को बधाई देने वाले ईमेल मीडिया को भेजे जाते थे और बड़ी जीत के बाद खिलाड़ियों के लिए नकद इनाम का एलान भी किया जाता था। इसके अतिरिक्त उनका स्वागत होता था। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज जीत के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ। सभी खिलाड़ी अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने-अपने शहर में इस तरह लौटे कि यह लगा ही नहीं कि वे कोई इतिहास रचकर आ रहे हों। इस बात का मलाल खिलाड़ियों के मन में जरूर होगा। हाल में एक और वाक्या हुआ,जिसका जिक्र यहां करना जरूरी है। अंडर-19 विश्व कप जीतकर लौटी टीम के सपोर्ट स्टाफ के सदस्यों और कोच राहुल द्र्रविड़ की इनामी राशि में फर्क था। राहुल ने अपनी इनामी राशि कटवा कर उसे बाकी सदस्यों में बराबरी से बंटवा दिया। जिन खिलाड़ियों और सपोर्ट स्टाफ की वजह से बीसीसीआइ की कमाई होती है उन्हें नजरअंदाज करना खुद को कटघरे में खड़ा करने जैसा ही है।

बीसीसीआइ की मनमानी पर सीओए रोक नहीं लगा पाई

इसमें कोई दोराय नहीं कि बीसीसीआइ में तमाम विसंगतियां आ गई थीं और उसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता की कमी भी साफ महसूस की जा रही थी। उसके ज्यादातर फैसले बंद कमरों में होते थे। क्रिकेट के खेल में बहुत कुछ ऐसा चल रहा था जो खेल की गरिमा के खिलाफ था। सीओए का गठन क्रिकेट को इन्हीं सबसे बचाने के लिए किया गया था। अफसोस इस बात का है कि लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी स्थितियां ठीक होती नहीं दिख रही हैैं। कई लोग अपनी कुर्सियां बचाने में लगे हुए हैं। अदालत का डर तो है, लेकिन उससे बच निकलने के रास्ते खोजने की कोशिश जारी है। शायद इसी कवायद के चलते बीसीसीआइ के संचालक यह भूल रहे हैं कि विराट कोहली, धौनी, रोहित शर्मा, शिखर धवन और भुवनेश्वर कुमार जैसे सितारों के प्रदर्शन की बदौलत ही जीत है, जीत की बदौलत फैंस और फैंस की बदौलत बाजार और बाजार की बदौलत पैसा है। इनमें से एक भी कड़ी का टूटना खेल की लोकप्रियता के लिए अच्छा नहीं है।

[ लेखक खेल पत्रकार हैैं ]