[ गिरीश्वर मिश्र ]: बड़ी प्रतीक्षा के बाद आई नई शिक्षा नीति के संदर्भ में शिक्षक दिवस विशेष महत्व का अवसर बन जाता है। इस नीति में शिक्षा के ढांचे, विषयवस्तु और लक्ष्यों को लेकर नई दृष्टि अपनाई गई है, जो स्थानीय और वैश्विक, दोनों ही तरह के सरोकारों को संबोधित करने की चेष्टा करती है। शिक्षा की अब तक प्रचलित धारा से अलग हटते हुए इसमें विद्यार्थी के समग्र विकास के प्रति एक खुली दृष्टि अपनाई गई है। शिक्षक पूरी शिक्षा प्रक्रिया की धुरी होता है। शिक्षा नीति को सही ढंग से लागू करने और उसके लक्ष्यों को पाने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक और अध्यापक शिक्षा के ऊपर गहनता और प्रतिबद्धता के साथ संकल्पपूर्वक आगे बढ़ा जाए। शिक्षा नीति के दस्तावेज में सेवापूर्व अध्यापकों की शिक्षा, नियुक्ति, सतत व्यावसायिक विकास, कार्यस्थल पर सकारात्मक वातावरण और सेवाशर्तों की चर्चा की गई है।

अध्यापक नियुक्ति की मुकदमेबाजी और विद्यालयों में अध्यापकों का अभाव

उल्लेखनीय है कि अनेक कारणों से अध्यापक-शिक्षा का प्रश्न लगभग एक दशक से उलझा पड़ा है। सेवापूर्व अध्यापकों की शिक्षा के बारे में पाठ्यचर्या का ढांचा क्या हो? अध्यापक-पात्रता परीक्षा की विश्वसनीयता कितनी है? शिक्षक प्रशिक्षण के निजी और फर्जी संस्थानों का क्या किया जाए? अध्यापक शिक्षा के नाम पर खानापूरी करते हुए बिना हाजिरी डिग्री हथियाने की प्रवृत्ति आदि कुछ ऐसे कड़वे सरोकार हैं, जिनको लेकर अध्यापक-शिक्षा बार-बार प्रश्नांकित होती रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे जनसंख्याबहुल राज्यों में अध्यापक नियुक्ति की प्रक्रिया से जुड़े मुकदमे कई वर्षों से उच्चतम न्यायालय में चल रहे हैं और विद्यालयों में अध्यापकों का अभाव बना हुआ है।

सेवापूर्व अध्यापक शिक्षा की एकीकृत बहुअनुशासनात्मक प्रणाली विकसित की जाए

अध्यापन कार्य में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सेवारत शिक्षकों के सतत व्यावसायिक विकास की आवश्यकता पड़ती है, परंतु इसे लेकर अभी तक कोई खास पहल नहीं हो सकी है और वह महज सांकेतिक होकर रह गया है। यथार्थ यह है कि वर्तमान कार्य-परिवेश में सामान्य सरकारी स्कूल का अध्यापक सिर्फ एक सामान्य कर्मचारी मात्र रह जाता है, जो सरकार के हुक्म की तामील करते हुए हर ऐसे कार्य में मदद करता है, जिसे कोई और नहीं कर पाता है। इस परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति आशा की किरण जैसी है। इसमें प्रस्तुत यह सुझाव महत्वपूर्ण है कि सेवापूर्व अध्यापक शिक्षा की एकीकृत बहुअनुशासनात्मक प्रणाली विकसित की जाए।

पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा को निर्धारित करना आवश्यक है

अध्यापक शिक्षा के लिए 2021 तक राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा विकसित की जानी है। प्रस्ताव के अनुसार 2030 तक अध्यापक शिक्षा का एकीकृत चार वर्षीय पाठ्यक्रम लागू किया जाना है। इसके साथ दो वर्षीय और एक वर्षीय बीएड की भी व्यवस्था की गई है। ग्रामीण क्षेत्र की प्रतिभाओं के लिए छात्रवृत्ति की भी बात है। यह भी रेखांकित करने योग्य है कि नई नीति के अनुसार भारतीय भाषाओं में अध्यापकों को तैयार करना होगा। इन सब दृष्टियों से सूचना एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग और नवाचार को बढ़ावा देना आवश्यक होगा। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा नियामक परिषद द्वारा अध्यापक शिक्षा संस्थानों का नियमन किया जाएगा और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद पाठ्यचर्या आदि से जुड़ी अपनी अन्य भूमिकाओं को सबल बनाएगी। शिक्षा नीति में जो सुझाव और उसके पीछे जो तर्क दिए गए हैं, उन्हेंं ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि प्राथमिकता के आधार पर अध्यापक-शिक्षण के लिए पाठ्यचर्या को विकसित किया जाए। पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा को निर्धारित करना अत्यंत आवश्यक है।

नई शिक्षा नीति: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अभिप्रेरित शिक्षक आवश्यक

नई शिक्षा नीति स्वीकार करती है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अभिप्रेरित शिक्षक आवश्यक हैं। इस दृष्टि से युवा वर्ग को शिक्षण व्यवसाय के प्रति आर्किषत करना आवश्यक है। यह कार्य केवल सेवापूर्व अध्यापक शिक्षा के एकीकृत कार्यक्रम से संभव नहीं होगा। इसके लिए नियुक्ति और सेवाशर्तों को अपेक्षाकृत आकर्षक और विश्वसनीय बनाना होगा। आज की परिस्थितियों में भावी शिक्षकों के सामने रोल मॉडल भी रखने होंगे। इस नीति का एक प्रिय शब्द है ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था। इस तरह की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को दृष्टि में रखते हुए अध्यापक तैयार करने के लिए लीक से हट कर नवाचारी पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण की पद्धति पर कार्य करना होगा।

शिक्षा नीति-2020 का अमली जामा पहनाने में प्रमुख चुनौती है अध्यापक शिक्षा संस्थानों का विकास

शिक्षा नीति-2020 के आधार पर जिस शिक्षा की परिकल्पना की गई है, उसके लिए हमारे अध्यापक कैसे होने चाहिए? इस प्रश्न पर सोचते हैं तो हमारे सम्मुख ये विशेषताएं उपस्थित होती हैं: भाषाई पूर्वग्रह से मुक्त, भारतीय संस्कृति और परंपरा पर आधारित मूल्य बोध के प्रति समर्पित, 21वीं सदी की दक्षताओं से युक्त, अपने विषय के साथ जेंडर और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील, बच्चों की विविधता, नागरिकता की शिक्षा और कला एवं शिल्प के प्रति अनुराग। उन्हेंं समूह में कार्य करने, समस्या समाधान करने, ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के लिए भी तत्पर होना चाहिए। इस कार्यक्रम को अमली जामा पहनाने में प्रमुख चुनौती है अध्यापक शिक्षा संस्थानों का विकास।

पूर्व विद्यालयी शिक्षा के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की जरूरत होगी

इसके बाद पूर्व विद्यालयी शिक्षा के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों के कैडर की जरूरत होगी। अब तक इसके लिए व्यापक तैयारी नहीं है। चार वर्षों के एकीकृत कार्यक्रम के अनुसार तैयारी करेंगे तो कम से कम अब से 5 वर्ष का समय लगेगा। अध्यापक शिक्षा को अपने परंपरागत ढांचे, जिसमें प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं के लिए अध्यापकों को तैयार किया जाता है, से हटकर विचार करना होगा। यह केवल प्रशिक्षण का कार्य नहीं है, इसके लिए भारतीय संदर्भ को अपनाना होगा, ताकि शिक्षक अपनी इस भूमिका के प्रति जागरूक हों। बहुअनुशासनात्मकता के साथ अध्यापक शिक्षा की बात लंबे समय से चल रही है। जस्टिस वर्मा आयोग की संस्तुतियों में भी यह बात शामिल थी। जब हमारी उच्च शिक्षा का ढांचा इस दिशा में अग्रसर होगा तो निश्चित रूप से अध्यापक शिक्षा को भी इसका लाभ मिलेगा।

( लेखक पूर्व कुलपति एवं पूर्व प्रोफेसर हैं )