विनोद कुमार यादव। Teachers Day 2020 कोविड-19 की वजह से 1962 के बाद पहली बार विद्यार्थी शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने विद्यालय परिसर में अपने पंसदीदा अध्यापक की भूमिका निभाने से वंचित रहेंगे। दरअसल शिक्षक दिवस के मौके पर देशभर में स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय कैंपस तक शिक्षकों के सम्मान में आयोजन होते हैं। शिक्षण कार्य को एक गरिमापूर्ण पेशा बताकर शिक्षकों का गुणगान किया जाता है, लेकिन क्या डॉ. राधाकृष्णन की आशा के अनुरूप समाज में शिक्षक को हम वह प्रतिष्ठा और सम्मान दे पाए हैं, जो उन्हें असल में मिलना चाहिए?

गौरतलब है कि शिक्षा नीति-2020 के तहत सरकार ने शिक्षकों से केवल शिक्षण कार्य करवाने का प्रावधान किया है, जबकि इन दिनों ऑनलाइन क्लास लेने के अलावा उन्हें घर-घर जाकर कोरोना संक्रमित लोगों के आंकड़े इकट्ठे करने पड़ रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को भोजन एवं राशन भी बांटने पड़े थे। जनगणना के समय घर-घर जाकर तमाम तरह के आंकड़े एकत्र करने पड़ते हैं। पंचायत से लेकर विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में पोलिंग बूथ पर ड्यूटी देनी होती है। जाहिर है शिक्षकों पर अध्यापन कार्य के अलावा दूसरी जिम्मेदारियों को पूरा करने का दबाव निरंतर बना रहता है। ऐसे माहौल में शैक्षणिक गुणवत्ता के स्तर को ऊंचा उठाना एवं विद्याíथयों के जीवन-कौशल को निखारना भला कैसे संभव हो सकता है?

असलियत में ज्यादातर शिक्षक नौकरी मिलने के बाद स्वाध्याय से विमुख हो जाते हैं। इस वजह से भी शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच शिक्षण-अधिगम (लìनग) की प्रक्रिया अधूरी रह जाती है। ऐसे दौर में जब नवाचार का महत्व बढ़ने के साथ तकनीक की गति भी बढ़ रही है, तब परंपरागत नोट्स रटवाकर विद्याíथयों को अंकों के पीछे दौड़ने का धावक तो बनाया जा सकता है, किंतु उनके भीतर आत्मविश्वास एवं क्रिएटिविटी को नहीं जगाया जा सकता। कोई भी शिक्षक अपने विद्याíथयों को तब तक आत्मानुशासन या जीवनमूल्य सीखने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर सकता, जब तक वह स्वयं ज्ञानार्जन के लिए जिज्ञासा एवं तत्परता न रखता हो। असल में संचार-क्रांति के इस युग में आज के विद्यार्थियों को हर चीज आसानी से मिल जाती है।

अगर कुछ दुर्लभ है तो वह है-विद्यार्थी के समग्र व्यक्तित्व विकास की संभावना। इंटरनेट पर क्या उसके लिए उपयोगी है, क्या अनुपयोगी है? इतना विवेक विद्यार्थी के अंदर अपने इनोवेटिव तरीके से एक कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक ही जागृत कर सकता है। जाहिर है भारतीय समाज और सरकार को शिक्षकों की भूमिका का नए सिरे मूल्यांकन करना होगा। उन्हें नई शिक्षण-पद्धतियों, सूचना प्रौद्योगिकी और 21वीं सदी के शिक्षाशास्त्र से प्रशिक्षित और सुसज्जित करने की जरूरत है।

(लेखक शिक्षाविद् हैं)