बिहार, आलोक मिश्रा। कोरोना के कहर से बचने के लिए लॉकडाउन का हथियार ही असरदार है। बोलते आंकड़े इस हकीकत को बयां कर रहे हैं, लेकिन इसी बीच तब्लीगी मरकज की हरकत ने सबको सकते में डाल दिया। देश के अधिकांश हिस्से की तरह बिहार भी इससे हिला है। सब कुछ ठीक चल रहा था। बाहर से जो आ रहे थे, वह धीरे-धीरे आगोश में समाते जा रहे थे, लेकिन अचानक बंद दरवाजों के भीतर इनकी मौजूदगी ने मानो ठहरे पानी में हलचल मचा दी।

हर दिन नया खुलासा हो रहा है। हर जिले से इनकी मौजूदगी की खबरें आ रही हैं। कितनी संख्या है मालूम नहीं, कौन इनमें कोरोना संक्रमित है मालूम नहीं, किसने कहां वायरस बांटा मालूम नहीं? अभी तक के काबू हालात इनकी मौजूदगी से किस करवट पलटेंगे, अब इसी पर सभी की निगाहें हैं।

कुछ दिन पहले पटना के कुर्जी में एक मस्जिद में 12 विदेशियों के छुपे होने की जानकारी जब सामने आई तब तक तब्लीगियों की कारगुजारी पर्दे के पीछे थी। इसके खुलासे के बाद जिस जिले में देखो वहीं इनके जत्थे मिल रहे हैं। बिहार आने वालों की संख्या कितनी है, अभी तक यह बताने की स्थिति में कोई नहीं है। हर दिन सूची अपडेट होती है और दूसरे दिन बदल जाती है। इनकी जमात में 400 से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव मिलने से बिहार भी चिंतित है, क्योंकि सघन आबादी वाले बिहार की स्थिति अभी काफी हद तक काबू में कही जा सकती है।

कुल 29 मरीज अब तक मिले हैं, जिसमें मौत सिर्फ एक ही है यानी तीन फीसद से कुछ ज्यादा। जिसकी मौत हुई उसकी दोनों किडनियां फेल थीं। अगर इस तथ्य को ध्यान में रखकर देखा जाए तो बिहार में मौत का आंकड़ा शून्य ही कहा जाएगा। इसमें 3 लोग ठीक होकर घर भी चले गए हैं। जबकि लॉकडाउन की अवधि के बीच बिहार ने सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अपने दामन में 1.60 लाख उन अपनों को भी समेटा, जो दूसरे देशों व राज्यों में पढ़ाई व रोजी की तलाश में गए थे। वैसे यह आंकड़ा दो लाख से ज्यादा ही होगा, क्योंकि बाहर से आने वाली भीड़ का एक बड़ा हिस्सा सरकारी निगाहों में आए बिना दाएं-बाएं से निकल गया।

घर में लॉकडाउन की व्यवस्था को बनाए रखने और बाहर से आने वालों की जांच के दोहरे मोर्चे को झेल रही नीतीश सरकार अब कुछ आश्वस्त है कि जल्दी ही कोरोना पर काबू पा लिया जाएगा। उसके भरोसे का एक कारण यह भी है कि अभी तक जो मरीज सामने आए हैं, वे या तो विदेश से आए थे या उनके संपर्क में आए थे। ऐसे मरीज सीवान, गोपालगंज, छपरा, मुंगेर, बेगूसराय जैसे जिलों में ही मिले, जहां के लोग रोजी के लिए खाड़ी देशों की तरफ ज्यादा जाते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोर्चा संभाले हुए हैं। आर्थिक दृष्टि से प्रदेश उतना संपन्न नहीं है कि ऐसी किसी आपदा को वह अपने बूते झेल सके। संसाधनों की काफी कमी है इसलिए लॉकडाउन के अलावा केंद्र की मदद भी सहारा है।

गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत में नीतीश ने अपनी जरूरतों पर खुलकर चर्चा की। बिहार ने केंद्र से 10 लाख एन-95 मास्क मांगे थे, लेकिन मिले 50 हजार। जांच के लिए आवश्यक पांच लाख पीपीआइ किट में अभी तक चार हजार ही मिलीं और 100 वेंटिलेटर की मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है। बाहरी लोगों के बढ़े दबाव और उनके संपर्क में आने वालों की जांच आवश्यक है। प्रदेश सरकार की चिंता यही है कि अगर समय पर संसाधन न मिले तो अभी तक काबू स्थिति कहीं हाथ से निकल न जाए। इसलिए गांव-गांव मुखिया व जीविका दीदी को लगाया गया है कि वे आने वाले हर बाहरी की जानकारी इकट्ठा करें और गांव के बाहर स्कूलों में बनाए गए क्वारंटाइन केंद्रों में रखे जाने वालों को वहीं रोके रखें। इसी से फिलहाल बचाव का रास्ता निकल सकता है।

सरकार को प्रदेश के साथ ही अन्य प्रदेशों में रह रहे बिहार के लोगों की भी चिंता है। उनके लिए संबंधित राज्य सरकारों से समन्वय स्थापित किया गया है कि वे यहां के लोगों के रहने एवं खाने का इंतजाम करें। जो लोग रोज कमाते एवं खाते हैं, उनके लिए इंतजाम किए गए हैं। 18 लाख से ज्यादा लोगों के खातों में एक हजार की रकम डाल दी गई है ताकि वे निश्चिंत होकर घर में रह सकें।

लॉकडाउन का आधा समय गुजर गया है, अब जरूरी यह है कि लोग सख्ती से इसका पालन करें। इसके लिए स्वअनुशासन जरूरी है, जिसका कहींकहीं अभाव दिख रहा है। खरीदारी करने वाले भीड़ लगा रहे हैं और कुछ लोग बेवजह ही बाहर गाड़ियां दौड़ा रहे हैं। इन पर कार्रवाई भी हो रही है, लेकिन कार्रवाई के बजाय खुद समझने की जरूरत है। अगर लोग पूरी तरह से लॉकडाउन का पालन कर लें तो बिहार के आंकड़े इसी तरह काबू में रहेंगे और नीतीश का भरोसा कि जल्दी काबू पा लेंगे, हकीकत में बदल सकता है।

[स्थानीय संपादक, बिहार]