डॉ. मोनिका शर्मा। Ganesh Chaturthi 2020 वैश्विक महामारी कोरोना और आम जीवन से जुड़े कई प्रतिबंधों के बीच देश में गणोश उत्सव मनाया जा रहा है। हालांकि इस दस दिवसीय उत्सव की पारंपरिक धूमधाम इस साल कम ही है, पर लोगों में उत्साह कायम है। सुखद है कि इस वर्ष यह पर्व कोरोना बीमारी से जूझने के सरोकारी भावों से भी जुड़ गया है। मुंबई के मशहूर लालबागचा राजा गणोश उत्सव पंडाल में गणोश उत्सव नहीं, बल्कि आरोग्यम उत्सव मनाया जा रहा है। आयोजकों ने उत्सव की धूमधाम के बजाय यहां ब्लड और प्लाज्मा डोनेशन के कैंप का आयोजन किया है।

यहां गणपति की छोटी मूíत ही स्थापित की गई है। असल में राज्य सरकार द्वारा गणोशोत्सव के संबंध में जारी दिशा-निर्देशों में इस वर्ष सार्वजनिक पंडालों और घरों में आयोजित होने वाली पूजा में गणपति की प्रतिमा की ऊंचाई सीमित कर दी गई है। पंडालों के लिए प्रतिमा की ऊंचाई अधिकतम चार फुट और घरों में स्थापित करने के लिए अधिकतम दो फुट रखने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही शोभा यात्र निकालने की भी मनाही है। ऐसे में उत्सवीय रंगों की फीकी रौनक को समझ और सरोकारी सोच ने सार्थक बना दिया है।हर वर्ष गणोश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक पूरे देश में गणोश उत्सव मनाया जाता है। विशेषकर महाराष्ट्र में इस उत्सव की खूब रौनक रहती है। हर बार यह उत्सव ख़ुशियों की सौगात साथ लाता है।

शहरों में भी मेलजोल का माहौल बन जाता है। मन-जीवन के उत्साह से भरे इस उत्सव में डेढ़ दिन, ढाई दिन से लेकर 11 दिन तक के लिए गजानन की स्थापना की जाती है। बप्पा के पूजन-दर्शन के लिए आस-पड़ोस में न्योते भेजे जाते हैं। आपाधापी के बीच भी लोग मेल-मिलाप के लिए समय निकाल लेते हैं, पर इस साल यह त्योहार घर के लोगों के साथ ही मनाए जाने की स्थितियां बनी हुई हैं। हालांकि कई आयोजकों ने फेसबुक, गूगल एवं जूम वीडियो के जरिये भक्तों को गणपति के वर्चुअल दर्शन कराने की तैयारी की हैं। कई पंडालों में कोरोना को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। पंडालों में गणपति की सवारी मूषक को कोरोना से लड़ते हुए दिखाया है।

भगवान गणोश की प्रतिमा के हाथ में अस्त्र की जगह सैनिटाइजर दिया गया है।गणोश पूजन की यह परंपरा केवल आस्था से नहीं, बल्कि आजादी की लड़ाई से भी जुड़ी है। तब बाल गंगाधर तिलक ने सामाजिक समरसता बढ़ाने के लिए गणोश उत्सव को मनाने की रीत शुरू की थी, ताकि आम लोगों की इस उत्सव के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में भी भागीदारी हो सके। आजादी पाने के लिए लोकोत्सव बना यह पर्व आज सामाजिक-पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का अवसर है। देश ही नहीं पूरी दुनिया के लिए संकट बने कोरोना काल में जीवन सहेजने वाले नियमों का पालन करते हुए गणोशोत्सव की परंपरा को सहेजना वाकई सराहनीय है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)