[ पीयूष पांडे ]: दुनियाभर में हजारों बैंक हैं, लेकिन स्विस बैंक का अलग जलवा है। जिस तरह तमाम सुंदरियां होती हैं, लेकिन बातों में, किस्सों में, अफवाहों में कोई एक खास सुंदरी ही होती है, कुछ वैसा ही हाल स्विस बैंक का है। करोड़ों हिंदुस्तानियों के लिए स्विस बैंक उसी तरह एक अबूझ पहेली है, जिस तरह ‘बांछें खिली हुई हैं’ में बांछें कहां होती हैं एक पहेली है। वैसे ही स्विस बैंक नाम की इस अबूझ पहेली से पड़ोसी वर्मा जी भी बचपन से जूझ रहे थे।

चूंकि वर्मा जी पिछली सदी से मेरे पड़ोसी थे तो घर में बेहिचक कभी भी घुस आने को जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे। इसी अधिकार का पालन करते हुए कल सुबह सुबह वह आए और बोले, ‘यार स्विस बैंक में भारतीयों के तीन सौ करोड़ रुपये पड़े हैं। उनका कोई लेनदार नहीं। कोई एफिडेविट बनवाकर हम दावा ठोंक सकते हैं क्या? ज्यादा से ज्यादा क्या होगा। सरकार पूछेगी कि कहां से आए तो बोलेंगे कि परदादा छोड़ गए थे। बाकी आप अपना टैक्स काट लो। हमें नंबर एक में दे दो, जितना हमारा बनता है।’

मैंने कहा, ‘आप बिजली विभाग में बाबू हैं, फिर भी इतने भोले हैं या ऐसी बातें करके जानबूझकर मेरा इम्तिहान लेते हैं।’ वह बोले, ‘यार, मजाक कर रहा था। स्विस बैंक एक फैंटेसी है। न जाने कब से ख्वाब रहा है कि एक खाता स्विस बैंक में हो। हम भी सीना तानकर कह सकें कि हमारा अकाउंट भी स्विस बैंक में है, लेकिन, किस्मत ऐसी खराब रही कि पूरी जिंदगी स्विस बैंक खाते के ख्वाब में ही कट गई।’

‘इतनी जल्दी निराश न हों, आप। रिश्वत का एक कायदे का मौका हाथ लग गया तो जिंदगी बदल सकती है। आप कोशिश करते रहिए। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। वैसे, भारतीय बैंक भी अब स्विस बैंक सरीखे हो लिए हैं। सरकार को कुछ नहीं बताते। करोड़ों डकारकर बंदा जब लंदन में ऐश करते हुए तस्वीर ट्विटर पर डालता है तब सरकार को पता चलता है कि लो जी ये तो भाग गया। बैंकों के 10 हजार, 20 हजार करोड़ लेकर। बाकी स्विस बैंक में अब भारतीयों की दिलचस्पी कम हो रही है।’ मैंने कहा।

उन्होंने कहा, ‘कैसे?’ मैंने कहा, ‘स्विस बैंक ने भारतीयों की जमा रकम का अभी जो आंकड़ा जारी किया है वह ऐसा है कि आला दर्जे का भ्रष्टाचारी सुनकर खुदकुशी कर ले। सच्चा कमीशनखोर स्विस बैंक पर मानहानि का मुकदमा दायर कर दे। सच्चा दलाल आंकड़ों की गलतबयानी के लिए स्विस बैंक को संयुक्त राष्ट्र में खींच ले। स्विस बैंक ने रकम बताई है सात हजार करोड़ रुपये। यह भी कोई रकम हुई भला। भारतीयों का जितना पैसा स्विस बैंक में जमा बताया जा रहा है, उससे ज्यादा तो किसी भी भ्रष्ट अफसर के घर से कभी भी बरामद की जा सकती है।

वह बोले, ‘स्विस बैंक में भारतीयों की कम से कम 412242443343348834344 करोड़ की रकम होनी चाहिए। ऐसी रकम, जिसे पढ़ना मुश्किल हो। ऐसी रकम, जिसे बुदबुदाते हुए भ्रष्ट भारतीयों को लेकर सम्मान का भाव जागे।’ मैंने उनकी हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘सरकार को खुद स्विस बैंक के इस आंकड़े को खारिज करना चाहिए। यह देश की प्रगति के मॉडल के खिलाफ है। प्रगति होगी तो अधिकारियों के, दलालों के, नेताओं के बैंक अकाउंट मजबूत होंगे ही। लेकिन, स्विस बैंक ने जो आंकड़ा दिया है वह जताता है कि अधिकारियों की, नेताओं की, दलालों की जेब खाली पड़ी है। ऐसा इसलिए नहीं हो सकता, क्योंकि सरकार का दावा है कि काम बहुत हो रहा है। और काम होगा तो अधिकारियों के अकाउंट भरेंगे ही।’

वह मेरी बात से सहमत थे। बोले, ‘वैसे, स्विस बैंक का आंकड़ा प्रधानमंत्रीजी के उस आंकड़े से भी नहीं मिलता, जिसमें कहा गया था कि विदेशों में जमा सारा कालाधन वापस आ जाए तो हर भारतीय के खाते में कम से कम 15 लाख रुपये आ जाएंगे। 7 हजार करोड़ तो कोई रकम ही नहीं।’

मैंने कहा, ’आपका गणित जोरदार है।’ वह बोले, ‘पैसा लेते वक्त हर बाबू का गणित जोरदार ही रहता है। वैसे, काश अकाउंट में 15 लाख आ जाते तो।’ मैंने कहा, ‘क्या पता, आ ही जाएं। जिस वक्त 15 लाख की बात कही गई थी, अगर उस वक्त पीएम की जुबां पर सरस्वती बैठी हो तो बात सच होकर रहेगी। आज नहीं तो कल। वैसे, क्या पता विदेशों में जमा सारा काला धन सरकार वापस पहले ही ले आई हो। क्या पता उस पैसे को म्यूचुअल फंड में निवेश कर दिया हो और चुनाव के वक्त हर खाते में 15 नहीं 30 लाख आ जाएं। क्या पता? वह भी बोले-‘क्या पता? शायद इसीलिए स्विस बैंक में महज 7000 करोड़ रुपये की ही चिल्लर बची रह गई हो।’ ‘क्या पता?’ मैं भी बोल पड़ा।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]