भूरेलाल
इससे शायद ही कोई इन्कार करे कि स्वच्छता अभियान एक सराहनीय प्रयास है। स्वच्छ वातावरण ही मानव जीवन को सुविधाजनक और सम्मान से जीने लायक बनाता है। स्वच्छता शरीर को ही स्वस्थ नहीं रखती, सोच को भी बेहतर बनाती है। यदि हमारे आसपास साफ-सुथरा माहौल हो तो वहां सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है और ऐसी ऊर्जा कार्य संस्कृति को बेहतर बनाती है। हमारे सभी सार्वजनिक स्थल स्वच्छ हों तो दुनिया में हम एक स्वच्छ देश के तौर पर जाने जाएंगे और यदि एक बार स्वच्छ देश के रूप में भारत की पहचान स्थापित हो जाए तो विदेशी पर्यटक खिंचे चले आएंगे। इससे हमारी अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा और इससे सभी लाभान्वित होंगे।

स्वच्छता अभियान को सरकार के स्तर पर तो बढ़ावा दिया ही जा रहा है, बहुत-सी गैर सरकारी संस्थाएं भी इसमें अपना योगदान दे रही हैं, लेकिन जरूरत इसे जन आंदोलन बनाने की है। हर किसी के मन में खुद से ही यह भावना पैदा होनी चाहिए कि अपने आसपास सफाई कैसे रखी जाए? हर चीज अकेले सरकार नहीं कर सकती।1दुनिया के साफ-सुथरे माने जाने वाले देशों का अनुभव यही कहता है कि स्वच्छता के मामले में जन सहयोग आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। जन-जन के मन में इस भावना को जागृत करने के लिए हर स्तर पर हर संभव उपाय करने होंगे। प्रशासन और राजनीति के स्तर पर आदर्श प्रस्तुत किए जाएं तो यह सोने पर सुहागा होगा।

नियम-कानूनों का सही पालन किस तरह साफ-सफाई के मामले में प्रभावी साबित होता है, इसका पता देश की राजधानी में नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के इलाके को देखने से चलता है। इस इलाके में आप नई जमीन नहीं ले सकते और नया मकान भी बना नहीं सकते। ऐसे में यहां पर आबादी का घनत्व नियंत्रण में रहता है। चूंकि ऐसे इलाकों में अनधिकृत कालोनी नहीं बसने दी जाती और अवैध निर्माण भी नहीं होने दिए जाते इसलिए ट्रैफिक जाम, गंदगी के साथ वायु प्रदूषण की समस्या भी काबू में रहती है। आज देश के महानगरों की एक बड़ी समस्या आबादी का घनत्व बढ़ना है। नियम-कानूनों की अनदेखी से महानगरों और अब तो नगरों में भी जगह-जगह अनधिकृत तौर पर कालोनियां बस जाती हैं। फिर राजनीतिक लाभ की दृष्टि से उन्हें नियमित कर दिया जाता है। बीते दिनों दिल्ली में लैंड पूलिंग नीति के तहत करीब 17 लाख मकान बनाने का रास्ता साफ कर दिया गया। इसका मतलब है कि अगले कुछ सालों में दिल्ली में करीब एक करोड़ आबादी और बढ़ जाएगी।

किसी भी शहर में नई आबादी के रहने के लिए मकान बनना-बनाना ही पर्याप्त नहीं होता। परिवहन, सुरक्षा, सफाई सरीखी बुनियादी सुविधाओं का ढांचा भी चाहिए होता है। यदि इस बुनियादी ढांचे की चिंता नहीं की जाएगी तो स्वच्छता अभियान को साकार करना मुश्किल होगा। यह सही है कि स्वच्छता अभियान के चलते लोगों में साफ-सफाई को लेकर जागरूकता आई है और जहां स्थानीय प्रशासन ने सफाई को लेकर सक्रियता दिखाई है वहां माहौल बदला है और सार्वजनिक स्थल पहले की तुलना में साफ-सुथरे दिखने शुरू हुए हैं, जैसे कि इंदौर। लचर सफाई व्यवस्था के लिए एक नहीं, बल्कि कई कारण जिम्मेदार होते हैं। इन कारणों के लिए राज्य सरकारें और साथ ही संबंधित सरकारी विभाग कसूरवार हैं।

यह देखने में आता है कि शहरों में साफ-सफाई की योजनाएं नियमित कालोनियों के लिए तो बनती हैं, लेकिन अनियोजित कालोनियों के लिए मुश्किल से ही बनती हैं, जबकि एक बड़ी मात्र में कूड़ा-करकट अनधिकृत कालोनियों से भी निकलता है। इन अनधिकृत कालोनियों का कूड़ा यहां-वहां डंप होता रहता है और वह शहर को बदसूरत बनाता है। अधिकतर शहरों में अनधिकृत कालोनियों में ड्रेनेज सिस्टम नहीं है और नियमित कालोनियों का ड्रेनेज सिस्टम बहुत पुराना हो चुका है। यह समझने की जरूरत है कि केवल कचरा एकत्रित करना ही पर्याप्त नहीं है। उसके निस्तारण की भी ठोस व्यवस्था होनी चाहिए। हमारे तमाम शहरों में पर्याप्त डंपिंग ग्राउंड नहीं हैं। जो हैं वे पहले ही क्षमता से पार हो चुके हैं। साफ-सफाई की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों यानी नगर निगमों अथवा नगर पालिकाओं की होती है, लेकिन उनके पास संसाधन सीमित हैं। जहां संसाधन हैं वहां इच्छाशक्ति की कमी है। एक समस्या यह भी है कि स्थानीय निकायों में स्टाफ नहीं बढ़ रहा। कम स्टाफ और सीमित संसाधनों में सकारात्मक परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती।

स्वच्छता देश के आर्थिक विकास को भी प्रभावित करती है। कुछ साल पहले मैं एक बैठक के सिलसिले में दिल्ली के ओखला औद्योगिक क्षेत्र गया था। वहां लोग खुले में शौच कर रहे थे। बातचीत के क्रम में वहां के उद्यमियों ने कहा कि जो विदेशी कारोबारी यहां आते हैं वे यह सब देखकर बिदकते हैं। कुछ तो दोबारा कभी नहीं आते। इसका मतलब है कि औद्योगिक उत्पादन और निर्यात भी स्वच्छता से परोक्ष सरोकार रखता है। स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिए एक ओर जहां राजनीतिक स्तर पर दृढ़ इच्छाशक्ति आवश्यक है वहीं लोगों की सोच भी बदलनी होगी।

(लेखक सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं)