[सुधीर कुमार]। Surrogacy Regulation Bill हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने सरोगेसी बिल से जुड़े उन बदलावों को मंजूरी दे दी, जिसकी सिफारिश राज्यसभा की 23 सदस्यीय प्रवर समिति ने सरोगेसी नियमन विधेयक-2019 के संबंध में की थी। गौरतलब है कि इस विधेयक को लोकसभा ने अगस्त, 2019 में ही पारित कर दिया था, लेकिन कुछ बिंदुओं पर आपत्ति के चलते उक्त विधेयक को राज्यसभा ने सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया था। नए बिल में समिति द्वारा सुझाए गए सभी प्रमुख 15 सिफारिशों को शामिल किया गया है।

व्यावसायिक सरोगेसी : मसलन पुराने विधेयक में केवल नजदीकी महिला रिश्तेदारों को ही सेरोगेट मदर बनने की इजाजत दी गई थी। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक सरोगेसी को हतोत्साहित करना तथा परोपकारी सरोगेसी को बढ़ावा देना था, लेकिन तब इस प्रावधान को लेकर सवाल उठा कि अगर कोई महिला रिश्तेदार सरोगेट मां बनने के लिए तैयार नहीं होती है तो फिर दंपती के पास क्या उपाय होंगे? इसका समाधान करते हुए नए बिल में अब किसी भी महिला की रजामंदी से उसकी कोख का इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई है। इसके लिए महिला रिश्तेदारों पर निर्भरता को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है।

सरोगेसी के जरिये मां बनने का अधिकार : संशोधित सरोगेसी बिल के जरिये केंद्र सरकार ने नि:संतान जोड़ों के अलावा विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को भी सरोगेसी के जरिये मां बनने का अधिकार देने का फैसला किया है। पहले के विधेयक में पति के गुजरने या तलाक के बाद महिलाओं को सरोगेसी का अधिकार नहीं था। केवल नि:संतान दंपती ही सरोगेसी प्रक्रिया को अपना सकते थे, लेकिन अब विधवा और तलाकशुदा महिलाएं भी सरोगेसी के द्वारा मां बन सकती हैं और अपनी सूनी गोद भर सकती हैं।

बेवजह पांच वर्ष पूरे होने का इंतजार क्यों करे? : सरोगेसी (नियमन) विधेयक-2020 में शादी के बाद सरोगेसी की इजाजत की सीमा को भी पूर्व निर्धारित पांच साल से हटा लिया गया है। दरअसल पुराने बिल के मुताबिक सरोगेसी के जरिये बच्चे को जन्म देने की इच्छा रखने वाले दंपतियों को शादी के बाद कम से कम पांच साल तक इंतजार करना था। तब इस प्रावधान को लेकर सवाल इस रूप में उठा कि अगर विवाह के एकाध साल में ही किसी दंपती को मालूम पड़ जाए कि उनमें से कोई एक या दोनों बच्चा पैदा करने में असमर्थ हैं और ऐसे दंपती के पास इससे जुड़ा मेडिकल सर्टिफिकेट भी हो तो वह बेवजह पांच वर्ष पूरे होने का इंतजार क्यों करे?

बिल में सरकार ने इस हिस्से में सुधार किया है और प्रस्तावित कानून में समय-सीमा के बंधन से इसे मुक्त करते हुए दंपती को किसी भी वक्त सरोगेसी अपनाने का अधिकार दिया है। हालांकि पहले के प्रावधान की तरह ऐसे दंपती के पास मेडिकल सर्टिफिकेट होना जरूरी होगा, जिससे यह स्पष्ट हो कि वे प्राकृतिक रूप से माता-पिता नहीं बन सकते हैं।

सरोगेसी नियमन विधेयक-2020 कानून : उक्त महत्वपूर्ण सुधारों को कैबिनेट की मंजूरी मिलने से उम्मीद जगी है कि जल्द ही सरोगेसी नियमन विधेयक-2020 कानून का स्वरूप लेगा, जिसमें सरोगेसी के नियमों को तय करने, व्यावसायिक सरोगेसी को नियंत्रित करने तथा सरोगेट माताओं के शोषण को रोकने के साथ उनके हितों की रक्षा करने संबंधी अनेक प्रावधान किए गए हैं। कानून बनने के बाद भारत जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, बेल्जियम और नीदरलैंड जैसे उन देशों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा, जहां व्यावसायिक सरोगेसी प्रतिबंधित है।

संतान-जनन की सरोगेसी तकनीक : दरअसल कृत्रिम रूप से संतान-जनन की सरोगेसी तकनीक उन दंपतियों के लिए आशा की अंतिम किरण साबित हुई है, जिन्हें किसी कारणवश जीवन में संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। भारत में सरोगेसी का प्रचलन 2002 से है। 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पहली बार कानूनी मान्यता दी थी, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि केवल डेढ़ दशक में ही भारत अंतरराष्ट्रीय जगत में सरोगेसी का बड़ा केंद्र बन गया। भारत में सरोगेसी तकनीक का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि भारत में होने वाली सरोगेसी का लगभग आधा हिस्सा विदेशी दंपतियों का होता है!

डॉक्टरों से लैस विश्व स्तर के आइवीएफ सेंटर : दरअसल भारत में सरोगेसी तकनीक दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पांच से दस गुना तक सस्ती है और यहां अच्छे डॉक्टरों से लैस विश्व स्तर के आइवीएफ सेंटर भी हैं। वहीं देश में गर्भधारण करने के लिए कमजोर वर्ग की असहाय महिलाएं भी आसानी से उपलब्ध हैं और यहां इस संबंध में कठोर कानून के न होने की वजह से सरोगेसी के प्रति विदेशियों में गजब का आकर्षण बना हुआ है। विदेशी भारत में सरोगेसी को चिकित्सा पर्यटन के तौर पर देखते रहे हैं, लेकिन अन्य देशों की तरह अब यहां भी विदेशियों के लिए सरोगेसी अपनाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनने की तैयारी है। इससे भारत को सरोगेसी का हब बनने से रोका जा सकेगा और सरोगेट माताओं के शोषण पर भी रोक लग सकेगी।

विडंबना है कि अपना कोख बेचकर दूसरों को संतान सुख देने वाली महिलाओं को इसके एवज में उचित पारिश्रमिक भी नहीं दी जाती है। पहले महिलाओं की कोख का संतान जनन के लिए प्राकृतिक इस्तेमाल होता था, लेकिन सरोगेसी तकनीक ने इस प्रक्रिया को भी व्यवसाय का स्वरूप दे दिया था। सरोगेट माताओं के शोषण को रोकने तथा बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस कानून का बनना बेहद जरूरी है।

[अध्येता, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]

ये भी पढ़ें:-

अफगानिस्तान युद्ध से अमेरिका और अफगान दोनों को ही जान-माल का जबरदस्त नुकसान

कोरोना की गति थमने का नाम ही नहीं ले रही, देशों के कोरोना से निपटने के अनोखे उपाय

जीवाश्म ईंधन से बढ़ता वायु प्रदूषण, दुनिया को प्रतिदिन करीब आठ अरब डॉलर का नुकसान

अगर आपको भूलने की बीमारी है तो इन बातों का रखें का विशष ध्यान, पढ़ें- एक्सपर्ट की राय