[ राजीव सचान ]: नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी के विरोध के नाम पर उपजा उन्माद कुछ शांत होता तो दिख रहा है, लेकिन दुष्प्रचार का सिलसिला अभी भी कायम है। इसका कारण केवल कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस सरीखे दलों की यह रट नहीं है कि नागरिकता कानून संविधान विरोधी है और एनआरसी का असल मकसद मुसलमानों को परेशान करना एवं उन्हें घुसपैठिया करार देना है, बल्कि कुछ इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल अन्य अनेक लोगों की ओर से किया जाना भी है। जो यह सब प्रचारित कर रहे थे या अभी भी कर रहे हैैं वे संवैधानिक या कानूनी मसलों की सही-सटीक समझ न रखने वाले कोई आम नागरिक या फिर अनपढ़ लोग नहींं। वे तो अपने-अपने क्षेत्र के जाने-माने लोग यानी विशिष्ट नागरिक हैं। इनमें कई सेलेब्रिटी और बुद्धिजीवी कहे-बताए जाने वाले तो हैं ही, मीडिया के जाने-पहचाने चेहरे भी हैं।

एक तरफ संविधान की शपथ ले रहे हैं, तो दूसरी ओर सड़क पर कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं

ये सब नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून बन जाने पर सरकार एवं संसद के फैसले से असहमत भी हैं और आगबबूला भी-इस कदर कि उन करीब 60 याचिकाओं की सुनवाई का इंतजार करने को भी तैयार नहीं जो इस कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं। वे संविधान की शपथ भी ले रहे हैं और सड़क पर निकलकर संसद से पारित कानून को खारिज किए जाने की जिद भी कर रहे हैं।

कानून के दुष्प्रचार अभियान में एक से बढ़कर एक विद्वान भी हैं

इस दुष्प्रचार अभियान में आतंकी को हेडमास्टर का बेटा समझने वाले लोग, 90 प्रतिशत भारतीयों को मूर्ख समझने वाले जज, अपने शो के लिए पहचान पत्र की अनिवार्यता तय करने और फिर भी कागज नहीं दिखाएंगे का स्वांग रचने वाले कलाकार, धारा 144 को आपातकाल का साफ संकेत समझने वाले फिल्मकार और वंदे मातरम पर बिदकने, किंतु ताज उछाले जाएंगे को आदर्श तराना समझने वाले विद्वान भी हैं। इनकी कोशिश केवल इतनी ही नहीं कि जो चुपचाप हैं वे भी सड़कों पर निकलें, ये तो उन सबको भाजपाई-संघी अथवा डरपोक होने का प्रमाण पत्र भी जारी कर रहे जो उनकी हां में हां नहीं मिला रहे या फिर इस नतीजे पर नहीं पहुंच रहे कि भारत अब बस हिंदू राष्ट्र बनने ही वाला है।

क्या यह संभव है कि पुलिस ने ही पुलिस पर पत्थर बरसाए और पेट्रोल बम फेंके

ये विशिष्ट नागरिक फर्जी सूचनाओं का सहारा लेने के साथ यह भी बताने में जुटे हैैं कि विरोध प्रदर्शन के दौरान जहां-जहां आगजनी और तोड़फोड़ भरी हिंसा हुई वह वास्तव में पुलिस या सरकार अथवा उसके एजेंटों ने उन्हें बदनाम करने के लिए की। इनकी मानें तो दिल्ली, अहमदाबाद के साथ उत्तर प्रदेश एवं बिहार के कई शहरों में पुलिस ने ही पुलिस पर पत्थर बरसाए, पेट्रोल बम फेंके और मौका पाकर सरकारी और गैर-सरकारी गाड़ियों को आग लगाने का काम भी किया।

सरकार का किया करोड़ों का नुकसान फिर भी दम भरते हैं गांधीवादी तरीके से विरोध करने का

असहमत नागरिकों के अतार्किक आचरण पर हैरानी नहीं, क्योंकि विवेक तब भी मर जाता है जब उन्माद जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है। इसी उन्माद के कारण यह सिद्ध करने की कोशिश की गई कि अव्वल तो देश में कहीं कोई हिंसा नहीं हो रही और यदि कहीं हो भी रही तो उसका हमारे स्वघोषित अहिंसावादी प्रदर्शनकारियों से कोई लेना-देना देना नहीं। रेलवे की 90 करोड़ की संपत्ति नष्ट हो गई, दर्जनों वाहन जला दिए गए और सैकड़ों पुलिसकर्मी जख्मी किए गए और फिर भी रट यही कि हमारा विरोध प्रदर्शन तो गांधी और आंबेडकर के हिसाब से चल रहा है। शांति का छद्म पाठ करने की ऐसी सनक सवार है कि आपत्तिजनक पोस्टर-बैनर के साथ उत्तेजक नारों की भी अनदेखी की जा रही।

खुली हिंसा को देखकर अनदेखा नहीं किया जा सकता है

इससे इन्कार नहीं कि हिंसा के विरोध के बहाने कुछ भाजपा नेताओं ने प्रदर्शनकारियों पर बेतुकी और उत्तेजक टिप्पणियां कीं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि देश खुली हिंसा को देखकर भी अनदेखा कर दे। विशिष्ट जन यही चाह रहे।

दुनिया देख रही कि भारत में एक तरफ गांधी के पोस्टर हैं, तो दूसरी ओर पत्थरबाजी-आगजनी

वे यह समझने को तैयार नहीं कि आगजनी और पत्थरबाजी की घटनाएं देश की बदनामी करा रहीं, क्योंकि दुनिया देख रही कि भारत में जगह-जगह गांधी के पोस्टर भी लहराए जा रहे और जमकर पत्थरबाजी-आगजनी भी की जा रही। शांतिपूर्ण विरोध की आड़ में पागलपन भरी हिंसा से भी शर्मनाक था उन लोगों की ओर से उसकी अनदेखी जो संविधान की दुहाई देने में लगे हुए थे। यह और कुछ नहीं देश की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश ही थी।

एनआरसी को लेकर उपजी अस्पष्टता का फायदा अराजकता फैलाने वालों ने उठाया

सरकार को केवल यही नहीं सुनिश्चित करना होगा कि अराजकता फैलाने वाले दंड के भागीदार बनें, बल्कि यह भी देखना होगा कि आखिर लोगों को बरगलाने और भड़काने का काम किसने किया? उसे पुलिस सुधार पर भी अनिवार्य रूप से ध्यान देना होगा, क्योंकि कुछ जगह पुलिस की अनावश्यक सख्ती की शिकायतें आईं तो कई जगह वह अराजक तत्वों केसमक्ष संसाधनहीन और असहाय सी दिखी। सरकार और खासकर मोदी सरकार को यह भी समझना होगा कि एनआरसी को लेकर इतनी अस्पष्टता क्यों उपजी कि उसका फायदा विरोध की आड़ में अराजकता फैलाने वालों ने उठा लिया?

एनआरसी को लेकर लोगों को भ्रमित ही नहीं, भयभीत करने का अभियान छिड़ा

नि:संदेह एनआरसी ने भ्रम पैदा किया, लेकिन आखिर भ्रम निवारण का काम समय रहते क्यों नहीं किया गया और वह भी तब जब यह साफ दिख रहा था कि लोगों को भ्रमित ही नहीं, भयभीत करने का सुनियोजित अभियान छिड़ा है? नागरिकता कानून और एनआरसी के विरोध के नाम मुस्लिम समाज के लोगों को खास तौर पर सड़कों पर उतारने वाले अपने सुनियोजित दुष्प्रचार अभियान की सफलता पर खुश हो सकते हैैं, लेकिन वास्तव में उन्होंने इस समाज की बड़ी ही कुसेवा की है।

सड़क पर उतारकर मुस्लिम समाज को किया बदनाम

मुस्लिम समाज को यह आभास हो तो बेहतर कि अपने शातिर एजेंडे को पूरा करने के लिए उसे सड़क पर उतारने वालों ने उसे बदनाम करने का ही काम किया। क्या वह मिसाल फीकी नहीं पड़ी जो अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम समाज ने शांति और संयम का परिचय देकर कायम की थी?

भारत जैसा देश अपने यहां के करोड़ों नागरिकों को गैर-नागरिक घोषित नहीं कर सकता

यदि कोई तथाकथित मुस्लिम हितैषी सपने में भी यह सोच रहा है कि आज के इस युग में कोई देश अपने यहां के करोड़ों नागरिकों को गैर-नागरिक घोषित कर सकता है तो वह या तो चीन में रह रहा है या फिर अंध विरोध से इस कदर ग्रस्त हो गया है कि अपनी तर्कशक्ति पर भी भरोसा करने को तैयार नहीं। ऐसे लोग किसी का भला नहीं कर सकते-न अपना और न ही उनका जिनके हितैषी बनने का दम भर रहे हैैं।

( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैैं )