[ हृदयनारायण दीक्षित ]: आस्था भावविह्वल होती है। उस पर चोट बहुत सालती है। मन आशा और निराशा के बीच डोलता है। परिस्थितियां भले ही निराशाजनक हों, लेकिन आस्तिकता से आशा बनी रहती है। श्रीराम भारत की आस्था हैं। इतिहास के महानायक हैं। वह भारत का मन अंतरंग हैं। राष्ट्र के पौरुष पराक्रम के प्रतीक हैं। भारत का रोम-रोम ‘राम-राम’ में रमा हुआ है। मिले तो जय राम, अलग हुए तो राम-राम। संसार छोड़ें तो ‘राम नाम सत्य’। भारत की श्रुति, स्मृति और काव्य का अंतस् हैं श्रीराम।

लोगों के नाम राम या रामकथा से जुड़े हैं

देश के लगभग 70 प्रतिशत नागरिकों के नाम राम या रामकथा से जुड़े हुए हैं। वाल्मीकि और तुलसी की कविता में राम नाम श्रेष्ठ है, वाणी का क्षीर सागर है। मन संकल्प हैं, ध्यान और विज्ञान भी हैं। वह भारत के धैर्य गुण राम का प्रसाद हैं। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का ध्वंस बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने 1528 में किया था। तबसे 491 साल हो गए। यह आस्था पर हमला था। फिर अंग्रेजीराज से मुकदमों का दौर चला। कोई 161 साल हो गए। आशा और धीरज जवाब दे रहे थे। इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय की प्रतीक्षा थी।

राम इतिहास में हैं और भूगोल में भी हैं

निर्णय की अधीरता के कारण सुस्पष्ट हैं। भारतीय श्रद्धा ने राम को अपने हृदय में बैठाया है, लेकिन वह इतिहास में हैं, भूगोल में भी हैं। डॉ. सत्यकेतु ने ‘प्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युग’ में लिखा है कि भारतीय ज्ञात इतिहास में मनु पहले राजा थे। इक्ष्वाकु उनके पुत्र थे। मनु और इक्ष्वाकु का उल्लेख ऋग्वेद में भी है। इक्ष्वाकु अयोध्या के राजा थे। इनकी 19 पीढ़ी बाद राजा मांधाता हैं। उनके पुत्र पुरुकुत्स भी अयोध्या के राजा थे। इनके 11 पीढ़ी बाद हरिश्चंद्र। 41वीं पीढ़ी में सगर, 45वीं में भगीरथ। 60वीं में दिलीप और फिर दिलीप के पौत्र रघु। रघु के कारण ही श्रीराम रघुवंशी कहे गए। रघु के पुत्र अज और अज के पुत्र दशरथ। फिर श्रीराम। आदिकवि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ में इन्हीं श्रीराम के इतिहास को महाकाव्य बनाया।

वाल्मीकि के राम मनुष्य हैंं, मर्यादा में सर्वोत्तम हैं

वाल्मीकि के राम मनुष्य हैंं, मर्यादा में सर्वोत्तम हैं। आस्था में ब्रह्म हैं। तुलसी के श्रीराम ब्रह्म हैं। वह अवतार लेते हैं। लीला करते हैं। श्रीराम का आख्यान भारत के गांव गली तक व्याप्त है। वह भारत के कण-कण में हैं। भारत का वातायन राममय है। इसीलिए अदालती कार्यवाही पर भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की नजर टिकी हळ्ई थी।

श्रीराम का चरित्र और व्यक्तित्व विश्वव्यापी है

श्रीराम का चरित्र और व्यक्तित्व विश्वव्यापी है। उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम राम की व्यापकता है। संस्कृत और प्राकृत सहित दुनिया की अनेक भाषाओं में श्रीराम कथाएं हैं। चीन के लियो ताउत्स चिंग का कथानक वाल्मीकि रामायण से संबंधित है। चीन के उपन्यासकार ऊचेंग की ‘दि मंकी हृसी ऊचि’ राम के समकालीन हनुमान की कथा है। इंडोनेशिया में रामकथा पर ‘ककविन रामायण’ है। थाइलैंड में ‘रामकियेन’ है। लाओस में ‘फालाम’ एवं ‘पोमचाक’ हैं। मलेशिया, कंबोडिया, श्रीलंका, फिलीपींस तक राम चरित्र की व्यापकता है। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने तमिल में ‘तिरुमगन रामायण’ लिखी थी। अनुवाद उनकी पुत्री एवं गांधी जी की बहू लक्ष्मी ने किया था। राजाजी ने भूमिका में लिखा, ‘सीताराम, हनुमान और भारत को छोड़कर हमारी कोई गति नहीं। रामकथा पूर्वजों की धरोहर है। हम आज इसी के आधार पर जीवित हैं।’ यहां रामकथा ही राष्ट्रजीवन का प्राण है। डॉ. राममनोहर लोहिया ने लिखा, ‘राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है। उन जैसा व्यक्तित्व कहीं नहीं। न इतिहास में और न कल्पना में। राम समन्वय के प्रतीक हैं। न्याय के लिए संघर्ष के प्रतीक। राम आनंद सागर हैं-हिलोरें लेने वाला सागर नहीं। विश्रांत निष्पंद।’ ऐसे में श्रीराम जन्मभूमि मुकदमे के फैसले को सुनने की चरम राष्ट्रीय जिज्ञासा स्वाभाविक ही थी।

न्यायिक इतिहास में ऐसा निर्णय का दूसरा उदाहरण नहीं मिलता

न्यायिक इतिहास में निर्णय की ऐसी प्रतीक्षा का दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। उदारमना हिंदू मानस ने लगातार प्रतीक्षा की। सभी लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक उपाय अपनाए। हाईकोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा की। मसला सर्वोच्च न्यायालय गया। यह उत्सुकता और जिज्ञासा की पराकाष्ठा थी। बाबरी निर्माण का मकसद उपासना स्थल बनाना नहीं था। मध्यकालीन सत्ता ने आस्था को कुचलने के ढेर सारे काम किए थे। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निकट ‘कूवतुल इस्लाम’ नाम की मस्जिद मंदिर सामग्री से बनी थी। इसका अर्थ इस्लाम की ताकत है। अजमेर में ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ एवं धार में भोजशाला मस्जिद के साथ औरंगजेब ने भी राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन के लिए ऐसे ही अपकृत्य किए थे। विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार अर्नोल्ड टायनबी ने दिल्ली में कहा था, ‘पोलैंड के वारसा पर रूसी अधिकार के समय कैथेड्रल बनाया गया था। यह कार्य रूसियों ने पोलिसों को यह अहसास दिलाने के लिए किया था कि अब उनके भाग्यविधाता रूसी हैं। 1918 में पोलैंड ने स्वतंत्र होते ही कैथेड्रल गिरा दिया। रूसियों का प्रयोजन राजनीतिक था। औरंगजेब का उद्देश्य भी यही था।’ बाबर का मकसद भी यही था।

गांधी जी ने रामराज्य का आदर्श रखा

गांधी जी ने स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व किया। रामराज्य का आदर्श रखा। रामराज्य की कल्पना में सभी अभिलाषाएं हैं। वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम ने वनवास में मिलने गए भरत को अर्थविज्ञान का उपदेश दिया। राज्य व्यवस्था के तमाम सूत्र बताए। उन्होंने कहा, ‘तब समय पर वर्षा होती है और सब तरफ समृद्धि-काले वर्षति पर्जन्य: सुमिक्षं विमला दिश:। न रोग, न पीड़ा, न अकाल मृत्यु।’ तुलसी रामराज्य में समता का आदर्श रखते हैं-‘राम प्रताप विषमता खोई।’ रामराज्य में कोई दुखी नहीं। सब समृद्धि का हिस्सा पाते हैं। श्रीराम मंगल भवन हैं और अमंगलहारी हैं। कालिदास ने रघुवंश में राम के समय के इतिहासबोध की चर्चा की है कि विश्वामित्र ने श्रीराम को पुरावृत्त सुनाया था। भवभूति कालिदास और राजशेखर ने रामायण को इतिहास बताया है। बौद्ध जातकों में भी अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशी मांधाता दशरथ एवं श्रीराम के उल्लेख हैं।

श्रीराम भारत के गौरवशाली इतिहास में हैं

श्रीराम भारत के गौरवशाली इतिहास में हैं। सरयू का उल्लेख ऋग्वेद में है। अयोध्या का उल्लेख अथर्ववेद एवं तैत्तिरीय आरण्यक में है। यहां मनुष्य को नौ द्वारों वाली देवनगरी अयोध्या कहा गया है। अयोध्या का भाव अर्थ है अपराजेय। पुरातत्वविद् सांकालिया ने अयोध्या के आसपास के तमाम विवरण दिए हैं। अयोध्या और श्रीराम भारतीय इतिहास के सभी चरणों में हैं। राम की लौकिकता असंदिग्ध है और पारलौकिकता लोक आस्था की स्वीकृति। आस्था का जन्म और विकास प्रवाह 50-60 वर्ष में नहीं होता।

परिणाम की प्रतीक्षा में भारत अधीर था अब लोकजीवन में उल्लास है

श्रीराम के जन्म के सहस्त्रों वर्ष बीत गए। वाद हुए, प्रतिवाद हुए। खंडन-मंडन भी हुए। श्रीराम की कीर्ति विश्वव्यापी होती रही। तुलसीदास के विवरण में श्रीराम का नाम श्रीराम से भी बहुत व्यापक बीजमंत्र बना। ऐसे श्रीराम की जन्मभूमि का आहतकारी विवाद सैकड़ों वर्ष चला। इस दफा सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार 40 दिन सुनवाई की। परिणाम की प्रतीक्षा में भारत अधीर था। सारी दुनिया के हृदय स्पंदित थे। परिणाम आ गया है। अब लोकजीवन में उल्लास है।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )