धर्मशाला, नवनीत शर्मा। देश की शीर्ष अदालत ने एक हालिया फैसले में साफ कर दिया कि पैतृक संपत्ति में बेटी बराबर की हकदार है। वह चाहे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में संशोधन से पहले पैदा हुई हो अथवा बाद में, उसे बराबरी के हक से वंचित नहीं किया जा सकता। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के किन्हीं दो फैसलों में विरोधाभास था, इसलिए कानूनी व्यवस्था तय करने के लिए मामला तीन न्यायाधीशों को भेजा गया था। तीन न्यायाधीशों ने यह व्यवस्था देकर स्थिति साफ कर दी। अदालत ने यह भी कहा कि बेटियां हमेशा ही बेटियां रहती हैं, लेकिन बेटे तब तक बेटे रहते हैं जब तक उन्हें पत्नी न मिल जाए। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि बेटियों के बारे में सर्वोच्च न्यायालय का यह कथन समाज में हर घर-परिवार तक पहुंचे।

यह संदेश हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी का रुतबा रखने वाले मंडी जिले के उस व्यक्ति तक भी जाना चाहिए, जिस पर आरोप है कि उसने बच्ची को जन्म लेते ही जमीन में जिंदा दबा दिया। उस सोच तक भी जाए, जहां बेटे को ही कुलदीपक समझा जाता है, जबकि बेटी और बाती में कोई अंतर नहीं है। देश या प्रदेश की कोई भी परीक्षा हो, मेरिट सूची में रोशनी बेटियों से ही होती है। आदर्शो की कमी नहीं हैं। हाल में भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने वाली मुस्कान जिंदल आदर्श है। खेल, राजनीति, विज्ञान, प्रशासनिक सेवाएं, कहां कम हैं बेटियां। और वह भी संवेदना, सृजन, सोच, संजीदगी के साथ।

यह ठीक है कि अब सामाजिक सोच बदल रही है, लेकिन भेदभाव की यह काई इतनी बुरी तरह जम चुकी है कि इसे हटाने में जमाने लग रहे हैं। कुछ खतरे बाहर से हैं जिनसे निपटने के लिए पूरी व्यवस्था है, लेकिन कुछ खतरे अंदर से हैं जो अधिक खतरनाक हैं। मंडी की फूल सी जान मां के पेट में सुरक्षित थी, लेकिन बाहर आते ही उसे पिता ने जीने नहीं दिया, ऐसा पुलिस रपट में है। इस बच्ची के विषय में संपत्ति नहीं, जीवन के मौलिक अधिकार की आवश्यकता थी, जो उसे नहीं मिला। यह अधिकार अमेरिकी संविधान से लेकर हमारे पूर्वजों ने भारत के संविधान में सहेजा था। लेकिन सिर्फ जीने का अधिकार नहीं, कई अधिकार हैं, जिनसे बेटियां अब तक वंचित हैं। सड़क पर निर्भीक होकर चलने का अधिकार, अपने परिवेश के राक्षसों से बचने का अधिकार चाहिए। सोशल मीडिया पर कुंठित लोगों से बचने का अधिकार भी नहीं मिला है।

प्रसंगवश, हिमाचल प्रदेश में पुलिस ने रजिस्टर 26 नाम से एक योजना शुरू की है। आमतौर पर थानों में 25 रजिस्टर होते हैं। अब 26वां भी होगा। पहली अगस्त से शुरू इस योजना में पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू ने लिखित निर्देश दिए हैं कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराध की तमाम जानकारी इसमें रखी जाए और समय-समय पर अपराध के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए। इस रजिस्टर में अपराधियों का रिकॉर्ड रखे जाने के स्थायी आदेश किए गए हैं। इससे पहले उनकी ही पहल पर एक अंतरविभागीय बैठक भी आयोजित की गई। इसमें पुलिस के आला अफसरों के साथ ही सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, राज्य महिला आयोग, बाल कल्याण परिषद आदि के मुखिया भी शामिल हुए।

यह अच्छी शुरुआत है, जिसका सफल होना अनिवार्य है। सच यह भी निकला कि शक्तिपीठों के लिए जाने जाते कांगड़ा जिले में महिलाओं के प्रति कुल अपराध के 48 फीसद में छेड़छाड़ और दुष्कर्म हैं। विवाहित महिलाओं के प्रति क्रूरता का भाग 16 फीसद है। एक तथ्य जो कई वर्षो से तथ्य है। महिलाओं के प्रति अपराध में जान पहचान के लोग ही शामिल रहते हैं। बहरहाल बेटियों को संपत्ति का हक सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है, अब परिवेश भी उन्हें दीगर अधिकार दे। वैसे बेटियां इतनी सक्षम हो ही रही हैं कि उन्हें किसी पर निर्भर नहीं रहना है। अब उन पर निर्भर होने का दौर आ रहा है। सागर आजमी याद आ रहे हैं:

मां ने बचा के रखा था बेटी के वास्ते, बेटा हुआ जवां तो ये जेवर भी ले गया।

इब्राहिम अल्काजी और शांति बिष्ट का जाना: भारतीय रंगमंच को नई उड़ान और पहचान देने वाले इब्राहिम अल्काजी का देहावसान हो गया। हिमाचल प्रदेश के साथ उनके आत्मीय संबंध के सूत्रधार रहे डैडी और पार्टी जैसी फिल्मों के लिए जाने जाते स्वर्गीय मनोहर सिंह। वह अल्काजी को गुरु ही नहीं भगवान भी मानते थे और अल्काजी उन्हें अपना प्रिय शिष्य। अल्काजी के कई प्रसिद्ध नाटकों में गिरीश कर्नाड का श्तुगलक्य भी है जिसकी जान मनोहर सिंह हैं। संबंध इतना प्रगाढ़ हुआ कि शिमला में मनोहर सिंह की बहन मीना शर्मा की पड़ोसी अल्काजी की बेटी और मशहूर रंगकर्मी अमाल अलाना हैं। इस बीच लोक के हर भाव, लोक संस्कृति की संवेदना को स्वर देने वाली शांति बिष्ट का भी देहांत हो गया। कई पहाड़ी गीत शांति की आवाज में अमर हुए हैं। उनके पति जयदेव किरण भी जाने माने कवि हैं। हिमाचल प्रदेश के भावों को ऊंचाई पर ले जाने वाली दोनों आत्माओं को नमन।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]