नई दिल्ली [देवेंद्र पई]। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय चुनावी राजनीति में पारदर्शिता को प्रोत्साहित करने का सुविचारित कदम है। राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के इस दौर में इसका स्वागत किया जाना चाहिए। हाल ही में दिल्ली विधानसभा के नवनिर्वाचित विधायकों में से 50 फीसद से अधिक के खिलाफ गंभीर आपराधिक आरोप हैं, जो कि हमारे सामने यह सवाल खड़ा करता है कि क्या ऐसे निर्णयों का मतदाताओं पर प्रभाव पड़ता है।

दिल्ली चुनाव का मामला बहुत दिलचस्प है। देश की राजधानी होने के नाते हर किसी को उम्मीद है कि मतदाता और प्रतिनिधि दोनों ही बेहतर शिक्षित होंगे और देश के बाकी हिस्सों के लिए नजीर बनेंगे। यह तथ्य कि दिल्ली ने 50 फीसद विधायक दागी पृष्ठभूमि वाले चुने हैं। मौजूदा नियमों के अनुसार उम्मीदवार अपनी उम्मीदवारी दाखिल करते समय अपने धन और आपराधिक मामलों की घोषणा करते हैं और हर मतदान केंद्र के बाहर भारत के चुनाव आयुक्त द्वारा इस सूचना को प्रकाशित किया जाता है।

दिल्ली के चुनावों से यह भी पता चला है कि मतदाता अपने लिए या सरकार से परिवार के लिए जो कुछ मिला है, उससे अधिक चिंतित है। इसलिए अगर कोई पार्टी मुफ्त बिजली और पानी से सत्ता के गलियारों तक पहुंची है तो उम्मीदवारों पर शायद ही बात हो।

उम्मीदवारों के चयन के कारणों में आसानी से हेरफेर किया जा सकता है। यह सोचना मूर्खतापूर्ण है कि राजनीतिक दल उम्मीदवारों को टिकट देने से पहले उनकी प्रोफाइल की परवाह नहीं करते हैं, लेकिन लोकतंत्र में दिन के अंत में सबसे अधिक वोट पाने की संभावना वाले उम्मीदवार को टिकट दिया जाएगा और राजनीतिक दल आत्मसमर्पण कर देते हैं।

नागरिकों को याद रखना चाहिए कि आखिर में वे लोकतंत्र में सबसे शक्तिशाली हैं। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से आम आदमी पार्टी का गठन चुनावी सफलता का एक और बड़ा उदाहरण है। उन्होंने कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और उसी के दम पर लोकतंत्र में आम आदमी की ताकत का अहसास कराया। जनता ने आप को कांग्रेस सरकार के स्वच्छ विकल्प के रूप में चुना। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश तब तक महत्वहीन होगा जब तक कि आम मतदाता लोकलुभावन नीतियों से परहेज नहीं करेगा।

मतदाताओं को उम्मीदवार की प्रोफाइल और पार्टी के घोषणापत्र को पढ़ने के बाद मतदान करने की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी। राजनीतिक दल महसूस करने लगेगें कि लोगों ने अपराधियों को अस्वीकार कर दिया है और अब वे योग्यता के आधार पर वोट देने लगे हैं। मुफ्त की चीजों और निजी, परिवार या जाति से ऊपर उठ देश के निर्माण में निर्णय लेने लगे हैं, तभी हमारे लोकतंत्र में पारदर्शिता और मजबूती सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएंगे। 

(कोर्स डायरेक्टर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेटिक लीडरशिप)