राजीव सचान : यह दो सितंबर, 2021 की बात है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि एक ही घटना के लिए पांच अलग-अलग एफआइआर दर्ज नहीं की जा सकतीं, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानूनों के विपरीत है। दिल्ली पुलिस ने मार्च 2020 में आगजनी के मामले में एक ही आरोपित पर पांच अलग-अलग मामले दर्ज किए थे। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने दिल्ली पुलिस की ओर से दर्ज चार एफआइआर रद करते हुए कहा कि पांचों मामलों में दायर आरोप पत्र से पता चलता है कि वे कमोबेश एक जैसे हैं और आरोपी भी एक ही है।

22 मार्च, 2022: तेलंगाना उच्च न्यायालय ने एआइएमआइएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी को राहत देते हुए 2012 के नफरती भाषण के मामले में उनके खिलाफ राज्य के अलग-अलग हिस्सों में दर्ज की गईं एफआइआर को हैदराबाद में स्थानांतरित करने के आदेश दिए। इस आदेश में कहा गया है कि एक ही मामले में न तो अलग-अलग एफआइआर दर्ज हो सकती हैं और न ही उनकी जांच सभी जगह हो सकती है। न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां ने आदेश दिया कि इस मामले को एक ही केस मानकर हैदराबाद के ट्रायल कोर्ट में सुनवाई की जाए।

14 अप्रैल 2022: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने हिजाब मामले में फैसला सुनाने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के तीन जजों को धमकी देने वाले आरोपित रहमतुल्ला की याचिका पर तमिलनाडु और कर्नाटक सरकार सहित अन्य को नोटिस जारी किया। आरोपित ने अपने खिलाफ कर्नाटक में दर्ज दूसरी एफआइआर को या तो रद करने या तमिलनाडु स्थानांतरित करने की मांग की थी। रहमतुल्ला ने कहा था कि वह बेहद कठिनाई का सामना कर रहा है। उसके लिए इन एफआइआर के संबंध में दो अलग-अलग राज्यों के कोर्ट और थानों में पेश होना मुश्किल होगा।

22 मई 2022: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए ग्रेटर नोएडा के हजारों करोड़ रुपये के 'बाइक बोट' और 'ग्रैंड वेनिस माल' घोटालों में दर्ज अलग-अलग एफआइआर को एक साथ मिलाने का आदेश दिया। जस्टिस एएम खानविलकर, अभय एस ओका और जेबी पार्डीवाला की पीठ ने एक ही मामले में अलग-अलग सुनवाई को जनहित में न पाते हुए इन प्राथमिकियों को जोड़ने का आदेश दिया। बाइक बोट घोटाले में सौ से अधिक मामले दर्ज कराए गए थे। घोटालेबाजों ने करीब दो लाख लोगों को बाइक टैक्सी के जरिये मोटी कमाई का लालच देकर 15 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश कराया और फिर सारा पैसा डकार गए। 'ग्रैंड वेनिस माल' के घोटालेबाजों ने भी प्लाट का लालच देकर लाखों रुपये का निवेश कराया था। इस मामले में करीब 45 एफ आइआर दर्ज कराई गई थीं।

उपरोक्त समाचार क्या कहते हैं? यही कि यदि किसी के खिलाफ एक ही मामले में देश या प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग एफआइआर दर्ज हों तो उन्हें एक में ही नत्थी कर दिया जाए और मामले की सुनवाई एक ही जगह और विशेष रूप से जहां पहली एफआइआर दर्ज हो, वहां स्थानांतरित कर दी जाए। इसी अपेक्षा के साथ भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा सुप्रीम कोर्ट गई थीं। उन पर टीवी चैनल की एक बहस के दौरान पैगंबर मोहम्मद साहब पर अवांछित टिप्पणी करने का आरोप है। उनके खिलाफ दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र, बंगाल, तेलंगाना, असम, कर्नाटक, राजस्थान और आंध्र आदि राज्यों में करीब दस एफआइआर दर्ज हैं। दिल्ली पुलिस ने उनसे पूछताछ की है और कोलकाता पुलिस ने उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया है, क्योंकि वह 20 जून को संबंधित थाने नहीं पहुंचीं। आमतौर पर लुकआउट नोटिस उनके खिलाफ जारी किया जाता है, जिन पर देश छोड़कर भागने का अंदेशा हो। यह कोलकाता पुलिस ही बता सकती है कि उसे नुपुर के देश छोड़कर भागने का अंदेशा क्यों है, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि उनकी जान जोखिम में है। उनका सिर तन से जुदा करने की मांग के साथ और उनका सिर कलम करने वालों को इनाम देने की घोषणाएं हो रही हैं।

नुपुर शर्मा के खून के प्यासे लोग किस कदर उन्माद से भरे हुए हैं, इसका अनुमान अमरावती के उमेश कोल्हे और उदयपुर के कन्हैयालाल दर्जी की बर्बर हत्या से लगाया जा सकता है। इन लोगों ने वैसा कुछ नहीं कहा था, जैसा नुपुर शर्मा ने कहा था। इनका 'अपराध' तो केवल यह था कि इन्होंने फेसबुक या वाट्सएप में नुपुर का समर्थन भर किया था। जिन अन्य लोगों ने ऐसा किया, उन्हें भी धमकियां मिल रही हैं। इन धमकियों से डरे लोग या तो माफी मांग कर अपनी जान बचाने में लगे हुए हैं या फिर शहर छोड़कर ही भाग जा रहे हैं।

नुपुर शर्मा का कहना है कि वह अपनी सुरक्षा के भय से कोलकाता नहीं गईं। पता नहीं उनका यह भय कितना सही है, लेकिन यह एक तथ्य है कि बंगाल विधानसभा में उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित हो चुका है। पता नहीं कि इस प्रस्ताव की क्या अहमियत है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों सूर्यकांत और जेबी पार्डीवाला ने नुपुर शर्मा को जैसी फटकार लगाई, वह उनके खिलाफ न केवल एक तरह का निंदा प्रस्ताव है, बल्कि उन तत्वों का दुस्साहस बढ़ाने वाला भी है, जो 'सिर तन से जुदा' का नारा बुलंद करने में लगे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने नुपुर शर्मा को हाई कोर्ट जाने की जो सलाह दी, उसमें हर्ज नहीं, लेकिन उसने उन्हें कन्हैयालाल की हत्या का जिम्मेदार ठहराकर उसी लक्ष्मण रेखा को झकझोर कर रख दिया, जिसका विभिन्न न्यायाधीश रह-रहकर उल्लेख करते रहते हैं।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)