[ हृदयनारायण दीक्षित ]: अस्तित्व सत्य है। सत्य अस्तित्व का रस है। सत्य का रस वाणी है। वाणी का रस संवाद है। संवाद वाणी का छंद है। संवाद सत्य प्राप्ति का अधिष्ठान है। संवाद ही निष्कर्ष तक ले जाने वाला माध्यम है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को लेकर वास्तविक संवाद नहीं हुआ। बाबर द्वारा मंदिर गिरवाने के समय से संघर्ष है। 1992 की घटना आहत मन का परिणाम थी। एएसआइ की खोदाई से प्राप्त तमाम तथ्यों के बावजूद दुराग्रह रहा। कुछ समय पहले न्यायालय ने परस्पर संवाद का अंतिम अवसर दिया, लेकिन संवाद नहीं हुआ। संवाद से हल निकलता तो सभी पक्ष प्रसन्न होते। दुराग्रही वाद वास्तविक समाधान नहीं देते। वाद हमेशा एक पक्ष होता है और विवाद वाद का ही दूसरा पक्ष। प्रख्यात दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन में ‘वाद’ के सत्य से भटक जाने का उल्लेख किया है, ‘यह प्राय: बिगड़कर जल्प (आधारहीन) के रूप में बदल जाता है। इसका लक्ष्य जीतना हो जाता है। तब यह ‘वितंडा’ कहलाता है।’ ‘वाद-विवाद’ स्वपक्षीय आग्रह होते हैं और संवाद सर्वमान्य यथार्थ तक ले जाने वाली तीर्थ यात्रा है।

भारत में संवाद की अति प्राचीन परंपरा है

संवाद सभ्यता का पैमाना है। तनावग्रस्त विश्व में सभ्यताओं के मध्य भी संवाद की दरकार है। अमेरिकी विचारक सैमुअल हंटिंगटन ने ‘क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन’ में सभ्यताओं के संघर्ष की आशंका जताई थी। इस्लामी स्टेट का रक्तपात प्रत्यक्ष है। ‘आस्था और विश्वास’ से भी संवाद का समय आ गया है। दुनिया का बड़ा भाग पंथ विश्वासी है। भारतीय दर्शन और संस्कृति सत्य खोजी हैं। भारत में संवाद की अति प्राचीन परंपरा है। ऋग्वेद का यम यमी संवाद तत्कालीन समाज के आदर्श व मानवीय कमजोरियों का चित्रण है।

विश्वामित्र का नदी संवाद

विश्वामित्र का नदी संवाद सुंदर भावाभिव्यक्ति है। उपनिषद उत्तर वैदिक काल की रचना हैं। प्रश्नोपनिषद छह जिज्ञासुओं व पिप्पलाद ऋषि के मध्य हुआ संवाद है। वृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य के साथ जनक, शाकल्य, मैत्रेयी, गार्गी आदि के संवाद पठनीय हैं। छांदोग्य उपनिषद में श्वेतकेतु व उसके पिता के संवाद सहित ढेर सारे संवाद हैं। कठोपनिषद के यम नचिकेता संवाद में आस्था पर भी तर्क हैं। महाभारत संवादों से भरीपूरी है जिसमें समाज विज्ञान, अर्थशास्त्र व ब्रह्मांड विज्ञान के महत्वपूर्ण विवरण हैं।

ज्ञान के सभी क्षेत्रों में संवाद

भारत में ज्ञान के सभी क्षेत्रों में संवाद था। संवाद ज्ञान का उपकरण था। उसे व्यवस्थित करने वाले नियम भी थे। यहां लोकप्रिय आठों दर्शन न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्व मीमांसा, वेदांत व बौद्ध, जैन में लगभग एकसमान तर्क पद्धति है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार गौतम का ‘न्याय दर्शन’ संवाद के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति की विस्तृत व्याख्या करता है। न्याय शब्द का अर्थ निष्कर्ष तक पहुंचाने वाली गतिविधि है। निष्कर्ष के लिए संवाद विधि का पालन जरूरी था। संवाद कर्म के लिए न्याय दर्शन की सूची में प्रमाण, प्रमेय अर्थात ज्ञान के विषय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, मान्य सिद्धांत, विषय के अवयव या घटक, तर्क अर्थात अप्रत्यक्ष प्रमाण व निर्णय सहित प्रमुख नौ विषय हैं। इसके अलावा ‘वाद, निराधार कथन, वितंडा, हेत्वामास अर्थात दोषपूर्ण उदाहरण, छल, निरर्थक आपत्तियां और दोषारोपण सहित सात रोचक निषेध तत्व भी हैं।

मैं संवाद को तैयार हूं

यहां संपूर्ण संवाद विज्ञान है। वादी प्रतिवादी के प्रति आदर भाव की अनिवार्यता है। संवाद में आस्था पर भी तर्क हैं। न्याय दर्शन के अनुसार सर्वप्रथम विषय की स्थापना फिर विवेचन में प्रयुक्त शब्दों की परिभाषा होनी चाहिए। न्याय भाष्य में ‘किसी पदार्थ को समान सादृश्यों वाले पदार्थों से भिन्न दिखाना परिभाषा’ बताया गया है। जर्मन दार्शनिक वाल्टेयर ने भी कहा है कि ‘मैं संवाद को तैयार हूं, लेकिन पहले तुम अपने शब्दों की परिभाषा करो।’

संवाद का प्रभाव सर्वव्यापी है

संवाद का प्रभाव सर्वव्यापी है। संवाद के अभाव की परिणिति अराजकता में होती है। रामकथा में अंगद-रावण संवाद है। संवाद असफल हुआ तो युद्ध। प्राक्भारतीय साहित्य के सैकड़ों प्रसंगों में उमा और शिव परस्पर संवादरत हैं। संवाद में ‘प्रमाण’ का शीर्ष महत्व है। महाभारत में नारद को तर्क संवाद का विशेषज्ञ कहा गया है। नारद प्रमाण के आधार पर ही निष्कर्ष निकालते थे। भारत में नाट्यकला के आविष्कारक भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में नाटक का प्राण तत्व संवाद हैं। शेक्सपियर के नाटकों के पात्र प्रभावी संवादी हैं। राजनीति संवाद का ही लोकमत निर्माण क्षेत्र है, लेकिन राजनीति में संवाद की जगह कटुतापूर्ण वाद-विवाद हैं। संवाद शून्य है। मोनोलाग या स्वकथन ज्यादा हैं।

आयुर्विज्ञान का विकास व्यापक संवाद से हुआ

यूनानी दर्शन संवादी है। अरस्तू ने कहा था कि ‘कुछ व्यक्ति विषय के एक पहलू को देखते हैं और अन्य दूसरे पहलू को, लेकिन सब मिलकर सभी पहलुओं को देख सकते हैं।’ अरस्तू ने संवाद के तत्वों को नियमबद्ध किया था। सुकरात सत्य के अन्वेषण के लिए वाद, विवाद और संवाद का सदुपयोग करते थे। अरस्तू की दो पुस्तकें ‘टॉपिक्स’ और ‘सोफिस्टिकल रिफयूटेशंस’ संवाद शास्त्र की अप्रतिम अभिव्यक्ति हैं। भारत में बहुत पहले ही संवाद अनुशासन के तत्वों की सूची का विकास हुआ था। न्याय दर्शन व वैशेषिक दर्शन में संवाद के सभी पहलुओं का विवेचन है। आयुर्विज्ञान का विकास व्यापक संवाद से हुआ। आयुर्वेद के दो बड़े ग्रंथों चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में संवाद नियमों का विस्तृत उल्लेख है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में संवाद के 32 पारिभाषिक शब्दों की सूची दी है। संवाद के सुनिश्चित नियमों के कारण प्राचीन विद्वानों ने संवाद विज्ञान को वेद की संज्ञा दी थी।

आचार्य शंकर दुनिया के सबसे बड़े संवादी थे

आचार्य शंकर दुनिया के सबसे बड़े संवादी थे। उन्होंने ज्ञान के तीन स्नोत बताए। पहला प्रत्यक्ष, दूसरा अनुमान और तीसरा प्राचीन सिद्ध कथन। संवाद के यही मूलाधार हैं। वह अद्वैत वेदांती दार्शनिक थे। तमाम द्वैतवादी विद्वानों से उनका संवाद हुआ। मंडन मिश्र के साथ उनके संवाद की लोककथा है। मंडन ने संवाद में पराजय मानी। उनकी पत्नी भारती ने मोर्चा संभाला। भारती ने स्त्री विषयक प्रश्न पूछा। शंकराचार्य ने उत्तर के लिए समय मांगा। सही बात है। प्रामाणिक जानकारी के बिना संवाद का क्या अर्थ? उन्होंने सम्यक अध्ययन व जानकारी के बाद ही उत्तर दिया।

संसद वाद-विवाद संवाद की संवैधानिक संस्था है

संसद व विधानमंडल वाद-विवाद संवाद की संवैधानिक संस्थाएं हैं। लोकसभा में बीते बीसेक साल से शोरगुल और हुल्लड़ ने प्रेमपूर्ण संवाद को बाहर कर दिया। संप्रति वाद-विवाद के साथ संवाद की भी आशाप्रद स्थिति है तो भी विधानमंडलों की स्थिति निराशाजनक है। टीवी चैनलों की बहसों में भी आरोप-प्रत्यारोप का शोर है। जोर से बोलने और चिल्लाने की प्रतिस्पर्धा है। संवाद का अता-पता नहीं। संवाद की महत्ता स्वयं सिद्ध है। संवाद से सभ्यता है, संवाद से संस्कृति है और संवाद में ही भारत के आनंदमगन होने की नियति है।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )

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