नई दिल्ली [ आभा सिंह ]। काले हिरणों की हत्या के चर्चित मामले में जोधपुर की अदालत ने सलमान खान को पांच साल की सजा सुनाई और सोनाली बेंद्रे, सैफ अली खान, तब्बू और नीलम को बरी कर दिया। इन चारों कलाकारों के बरी होने का यह मतलब तो है कि अदालत को यह लगा कि ये चारों सलमान के साथ जिप्सी में नहीं थे, लेकिन यह नहीं है कि उन्हें बाइज्जत बरी किया गया है। सलमान खान को जमानत मिल सकती है। यह तब तक रहेगी जब तक उनकी अपील पर सेशन कोर्ट अपना फैसला नहीं सुना देता। जिस केस में दस साल से कम की सजा का प्रावधान होता है उसमें अमूमन जमानत मिल जाती है।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश हैं जिनमें कहा गया है कि बेल एंड नॉट जेल के आधार पर निर्णय लेना होता है। इस कारण भी सलमान को बेल मिलने के आसार हैं, लेकिन सजा स्थगन का फैसला देते वक्त अदालत को यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि चिंकारा मारने के केस में और मुंबई के हिट एंड रन केस में निचली अदालतों के फैसलों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल है। ये मामले यही बताते हैं कि सलमान में बार-बार अपराध करने की प्रवृत्ति है।

सलमान खान को वॉइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के सेक्शन 9 और 51 के तहत विलुप्त प्रजाति के दो वन्य प्राणियों के शिकार के लिए सजा सुनाई गई है। उन्हें सजा सुनाने वाले जज का कहना है कि सलमान एक पब्लिक फिगर हैं इसलिए उन्हें जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए था। एक पब्लिक फिगर होने के नाते जिसे एक आदर्श पेश करना चाहिए वह यदि आपराधिक प्रवृत्ति प्रकट करता है तो उसका गुनाह औरों के मुकाबले और अधिक गंभीर हो जाता है। अगर बचाव पक्ष के वकीलों को सेशन कोर्ट से राहत नहीं मिलती तो वे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अवश्य जाएंगे।

जाहिर है कि वहां उनकी यह दलील रहेगी कि जब चार अन्य को छोड़ दिया गया तो अकेले सलमान को कैसे सजा सुनाई जा सकती है, क्योंकि कानून सबके लिए बराबर होता है। कानून का एक सिद्धांत है कि सौ दोषियों को छोड़ सकते हैं, लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं दे सकते। इसी केतहत संदेह के लाभ का सिद्धांत उभरा।

सलमान के साथ जो चार अन्य कलाकार बरी किए गए उन्हें इसी सिद्धांत का लाभ मिला, लेकिन जब तक ऊपरी अदालतों का फैसला नहीं आता तब तक उन पर भी तलवार लटकती रहेगी। सलमान खान को सजा सुनाने के बाद एक ओर जहां यह कहा जा रहा कि आखिरकार कानून के लंबे हाथों ने उन्हें पकड़ा वहीं दूसरी ओर यह भी दलील दी जा रही कि करीब आठ सौ-हजार करोड़ रुपये दांव पर लगे हुए हैं, लेकिन इससे अदालतों को कोई मतलब नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए। चूंकि फौजदारी मामला कानूनी मसलों के आधार पर निस्तारित होता है इसलिए इस तरह की बातों का कोई मूल्य नहीं कि सलमान के जेल जाने से सैकड़ों करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।

अगर यह नुकसान वास्तव में होता है तो नुकसान उठाने वाले सलमान से हर्जाना मांग सकते हैं। यह हैरानी की बात है कि सलमान के गुनहगार सिद्ध होने के बाद एक तरह से पूरी फिल्म इंडस्ट्री उनके साथ खड़ी दिख रही है। जिस इंडस्ट्री को उनकी आलोचना करनी चाहिए वही उनके प्रति संवेदना जता रही है। मुझे लगता है कि ऐसे रवैये से इस इंडस्ट्री की छवि को सिर्फ नुकसान ही होगा।

एक गंभीर बात यह भी है कि सलमान के मामलों की तफ्तीश में पुलिस ने गलतियां की हैं। हिट एंड रन केस में हाईकोर्ट ने साफ कहा था कि पुलिस कई जगह चूक गई जिसके कारण आरोप साबित नहीं हो पाए। कई ऐसे गवाह थे जिन्हें पुलिस समन तक नहीं पहुंचा पाई। चिंकारा के केस में भी जो ड्राइवर अहम गवाह था उसने कहा था कि उसके ऊपर दबाव था। पुलिस को यह अच्छे से पता होता है कि यदि किसी केस के अहम गवाह पर दबाव हो या फिर उसे धमकियां मिल रही हों तो उसका लिखित बयान शुरू में ही मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत लिया जाना चाहिए। यदि पुलिस ने हिट एंड रन केस की तफ्तीश सही से की होती तो नतीजा कुछ और होता।

सलमान के मामलों ने जो सवाल खड़े किए हैं उन्हें देखते हुए न्यायिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ने का समय आ गया है। पुलिस किस तरह तफ्तीश में गड़बड़ी के साथ धारा 164 की अवहेलना करती है और किस प्रकार समय पर समन नहीं दिए जाते या गवाहों को डराया जाता है, इन सब की गंभीर विवेचना करते हुए कानून में बदलाव की जरूरत है। यदि किसी मामले में यह दिखे कि पुलिस ने तफ्तीश या फिर मुकदमे की पैरवी ठीक से नहीं की तो संबंधित पुलिस अधिकारी पर कड़ी विभागीय व कानूनी कार्रवाई होनी आवश्यक है।

(लेखिका पूर्व प्रशासक एवं बांबे हाईकोर्ट में वकील हैं)