[ संजय गुप्त ]: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के उपरांत पाकिस्तान जिस तरह बौखलाया और अमेरिका से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाने में जुटा, उसे देखते हुए भारत की ओर से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह संदेश देना जरूरी था कि कश्मीर भारत का अंदरूनी मामला है और भारतीय संसद के पास इस अनुच्छेद को हटाने का अधिकार था। भारतीय प्रधानमंत्री अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान इस उद्देश्य को पूरा करने में सफल रहे। इसका प्रमाण तब मिला जब उन्होंने ह्यूस्टन में हाउडी मोदी रैली में ट्रंप के समक्ष जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को भारतीय संसद का फैसला बताया।

सांसदों का अभिनंदन

उन्होंने रैली में मौजूद 50 हजार से अधिक लोगों से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के समर्थक सांसदों का अभिनंदन भी कराया। इस रैली की खूबी यह रही कि अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ कई अमेरिकी सीनेटर भी वहां उपस्थित हुए। उनकी उपस्थिति में मोदी ने यह सवाल उछाला कि आखिर 9-11 और 26-11 आतंकी हमले की साजिश रचने वाले कहां पाए गए? ह्यूस्टन अमेरिका के टेक्सास प्रांत में है और यह संयोग है कि उसका इतिहास भी काफी कुछ जम्मू-कश्मीर जैसा है।

मोदी की रैली में ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति का भारतीय प्रधानमंत्री की रैली में शामिल होकर संबोधन करना इसलिए ऐतिहासिक रहा, क्योंकि इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। इस रैली में ट्रंप ने चरमपंथी इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने की बात करते हुए सीमाओं की रक्षा को लेकर यह भी कहा कि भारत को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाने का अधिकार है।

ह्यूस्टन में मोदी की प्रशंसा, न्यूयॉर्क में भारत-पाक के बीच साधा संतुलन

अमेरिकी राष्ट्रपति ने ह्यूस्टन में तो प्रधानमंत्री मोदी की भूरि-भूरि प्रशंसा की, लेकिन न्यूयॉर्क में वह भारत-पाक के बीच संतुलन साधते दिखे। उन्होंने दोनों देशों के नेतृत्व को अपना मित्र बताते हुए कश्मीर का समाधान निकालने की अपील की। एक अमेरिकी मंत्री ने भी भारत से कश्मीर पर लगे प्रतिबंध जल्द हटाने की मांग की। ऐसा लगता है कि अफगानिस्तान और ईरान के हालात को देखते हुए अमेरिका ने पाकिस्तान को साधे रखने की नीति अपना रखी है। भले ही ट्रंप ने मोदी को राष्ट्रपिता की संज्ञा दी हो, लेकिन यह भी दिख रहा कि वह पाकिस्तान के लिए भी अपने दरवाजे खोले रखना चाहते हैं।

इमरान कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ उगल रहे जहर

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाकिस्तानी पीएम इमरान खान हर मंच पर भारत के खिलाफ जहर उगलने में लगे हुए हैं। उन्होंने यही काम अमेरिका में भी किया। हालांकि उन्हें निराशा ही हाथ लगी। अमेरिकी राष्ट्रपति ने साफ कर दिया कि वह कश्मीर पर मध्यस्थता तभी कर सकते हैं जब भारत भी राजी हो। इमरान यह मानने को मजबूर हुए कि दुनिया उनकी नहीं सुन रही है। यह वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती धाक का ही प्रमाण है। इमरान खान ने अमेरिका में यह स्वीकार कर पाकिस्तान को बेनकाब करने का ही काम किया कि उनकी सेना और खुफिया एजेंसी ने एक समय अलकायदा और ऐसे ही अन्य आतंकी संगठनों को प्रशिक्षण देने का काम किया था।

इमरान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में जिहादी मानसिकता का परिचय दिया

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर में कथित दमन का हवाला देते हुए भारत के खिलाफ जैसा जहर उगला उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इमरान ने कश्मीर को लेकर न केवल मनगढ़ंत आरोप उछाले, बल्कि परमाणु हमले की धमकी भी दे डाली। भारत को बदनाम करने के फेर में उन्होंने अपनी जिहादी मानसिकता का ही परिचय दिया। उन्होंने एक ओर यह कहा कि चरमपंथी इस्लाम नाम की चीज कहीं है ही नहीं और दूसरी ओर यह भी बोले कि पश्चिम के रवैये के कारण आम मुस्लिम चरमपंथी हो रहे हैं। उनकी मानें तो कश्मीर के हालात से शेष भारत के मुसलमान चरमपंथी बन सकते हैैं।

इमरान ने कहा- कश्मीर में जब कर्फ्यू हटेगा तो विस्फोट होगा

उन्होंने पुलवामा जैसी घटना फिर होने का अंदेशा जताते हुए यह भी कह डाला कि कश्मीर में जब कर्फ्यू हटेगा तो वहां विस्फोट होगा। क्या इस कथित अंदेशे का कारण यह है कि पाकिस्तान कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है? ध्यान रहे सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने कहा है कि पांच सौ से अधिक आतंकी कश्मीर में घुसपैठ के लिए तैयार हैं। उनके अनुसार बालाकोट का आतंकी ठिकाना फिर से सक्रिय हो गया है। यह अच्छा हुआ कि इमरान के विष बुझे भाषण का भारत ने करारा जवाब दिया।

मोदी का सफल रहा अमेरिका दौरा

जब यह माना जा रहा कि मोदी का अमेरिका दौरा एक बड़ी हद तक सफल रहा तब कांग्रेस नकारात्मक रवैये का परिचय दे रही है। उसने हाउडी मोदी रैली की आलोचना पहले ही शुरू कर दी थी। जहां राहुल गांधी ने इस रैली को कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से जोड़ा, वहीं आनंद शर्मा ने यह नतीजा निकाला कि मोदी ने ट्रंप का चुनावी प्रचार कर विदेश नीति को नुकसान पहुंचाया। इस तरह की टिप्पणियां कांग्रेस की नकारात्मक सोच को ही जाहिर करती हैं। कांग्रेस यह भी प्रचार कर रही है कि कश्मीर के हालात सामान्य नहीं। यह तो वही काम है जो इमरान कर रहे हैं।

अनुच्छेद 370 हटाने का बड़ा फैसला

अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला एक बड़ा फैसला है। इस निर्णय के बाद कश्मीर में कुछ ऐसे प्रबंध करने आवश्यक थे जिससे वहां हालात बिगड़ने न पाएं। ऐसे प्रबंध इसलिए भी जरूरी थे, क्योंकि एक तो पाकिस्तान वहां आतंक फैलाने की कोशिश में है और दूसरे, पुरानी व्यवस्था का दुरुपयोग करने वालों को परेशानी हो रही है। अंदेशा है कि वे माहौल खराब कर सकते हैं। ये वही लोग हैं जो अनुच्छेद 370 के बहाने कश्मीर में मनमानी करने में लगे हुए थे। कांग्रेस उनके ही साथ खड़ी होना पसंद कर रही है। कश्मीर पर कांग्रेस की गैरजरूरी बयानबाजी से देश की अंतरराष्ट्रीय छवि प्रभावित होने के साथ भारत की ओर से किए जा रहे कूटनीतिक प्रयासों को भी धक्का लग सकता है।

कांग्रेस का पाकिस्तान के प्रति लचर रवैया

बेहतर हो, कांग्रेस यह देखे कि उसके शासनकाल में कश्मीर के हालात कैसे रहे और पाकिस्तान से किस तरह निपटा गया? सब जानते हैं कि कांग्रेस ने पाकिस्तान से निपटने के मामले में लचर रवैये का ही परिचय अधिक दिया और इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह रहा कि मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ कळ्छ नहीं किया गया। कांग्रेस सरकार केवल बयानों तक सिमटी रही। उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कारगिल संघर्ष में पाकिस्तान को धूल चटाने के समय भी भाजपा की ही सरकार थी।

पाक पर पहले सर्जिकल स्ट्राइक फिर एयर स्ट्राइक

मोदी सरकार ने भी पहले पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की और फिर एयर स्ट्राइक। विडंबना यह रही कि कांग्रेस ने इन दोनों सैन्य कार्रवाइयों के सुबूत मांगे। ऐसा करके उसने पाकिस्तान को ही बल प्रदान किया। ऐसा लगता है कि कश्मीर पर भाजपा की आक्रामक नीति से परेशान कांग्रेस अपनी झेंप मिटा रही है। जो भी हो, अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि जहां भाजपा राष्ट्रविरोधी ताकतों के प्रतिकार के लिए तत्पर रहती है वहीं कांग्रेस तुष्टीकरण की नीति के चलते पाकिस्तान के प्रति ढुलमुल रवैया अपनाती है। कम से कम अब तो उसे यह समझना चाहिए कि उसकी राजनीति राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने वाली न साबित हो।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]