[ प्रदीप सिंह ]: भारत एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य है। इमरजेंसी के दौरान संविधान की संशोधित प्रस्तावना में यही तो लिखा है, मगर देश में अक्सर धर्मनिरपेक्षता और इस्लाम दोनों एक साथ खतरे में पड़ जाते हैं। दुनिया में करीब 52 इस्लामिक देश हैं। कोई धर्मनिरपेक्ष नहीं है। इसके बावजूद इस्लाम कहीं खतरे में नहीं है। भारत में इस्लामिक राज नहीं है इसलिए धर्मनिरपेक्षता और इस्लाम के खतरे में होने का नारा जब तब क्यों बुलंद किया जाता है? उसका एक ही मकसद है इस्लाम की बुराइयों पर पर्दा डालना।

दुनिया में हिंदू बहुल देश तो भारत और नेपाल

आप इस्लामिक आतंकवाद का मुद्दा उठाइए तो फरजी हिंदू आतंकवाद का विमर्श खड़ा कर दिया जाता है। दुनिया में हिंदू बहुल देश तो भारत और नेपाल ही हैं। फिर पूरी दुनिया इस्लामिक आतंक से क्यों परेशान है। ये जो तमाम आतंकी संगठन दुनिया में हैं क्या ये कथित हिंदू आतंकवाद के जवाब में बने हैं। भारत में कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों की एक बिरादरी है जो इस्लाम और आतंकवाद के बचाव में हिंदू विरोधी अभियान चलाती है। दुनिया की बात फिलहाल छोड़ देते हैं और सिर्फ भारत की बात करते हैं। भारत पर बहुत आक्रमण हुए। पहले मुस्लिम शासकों और फिर ईसाई शासकों ने देश की संस्कृति यानी हिंदू-सनातन संस्कृति को खत्म करने की कोशिश की, परंतु कभी कर नहीं पाए। कोई तो कारण होगा।

जितने मजहब भारत में हैं, उतने दुनिया के किसी देश में नहीं

भारतीय संस्कृति कहें, हिंदू संस्कृति कहें या सनातन, इसकी अंतर्निहित शक्ति है सहिष्णुता और समावेशी होना। जितने मजहब भारत में हैं, उतने दुनिया के किसी देश में नहीं। मुस्लिम शासकों ने तमाम मंदिर तोड़े, जबरन मतांतरण करवाया, हत्या और दुष्कर्म सहित तमाम जुल्म किए। इसके बावजूद हिंदुओं को असहिष्णु कहना प्रायोजित एजेंडे के अलावा और क्या है। ये लोग इतिहास से भी कोई सबक नहीं लेते। हिंदू असहिष्णुता का विमर्श खड़ा करके ये लोग हिंदुओं से ज्यादा मुसलमानों का नुकसान कर रहे हैं। मुसलमानों को यह अहसास ही नहीं होने देते कि उन्हें किन सुधारों की जरूरत है। मुस्लिम समुदाय की दूसरी समस्या यह है कि उसके खैरख्वाह और मुल्ला-मौलवी उसे अतीत के अंधेरे से निकलकर वर्तमान की रोशनी में आने ही नहीं देते। इससे सुधार की गुंजाइश नहीं बचती।

सनातन धर्म और इस्लाम में बड़ा फर्क

दरअसल सनातन धर्म और इस्लाम में एक बड़ा फर्क यह है कि सनातन धर्म के लोगों ने समय के साथ आंतरिक सुधार किए। जाति प्रथा को खत्म करने का अभियान समाज के भीतर से ही चला। जब दुनिया के तमाम देश और मजहब महिलाओं को बराबरी का हक देने के बारे में विचार कर रहे थे, सनातन संस्कृति में महिलाओं को बराबरी ही नहीं, बल्कि सम्मान का दर्जा हासिल था। समय-समय पर इसमें बुराइयां आती रहीं तो साथ ही साथ उनमें सुधार का अभियान भी चलता रहा। उसी का नतीजा है कि भारत की बेटियां जीवन के हर क्षेत्र में देश और समाज का नाम रोशन कर रही हैं।

लड़कियों और लड़कों के स्कूल अलग-अलग होने चाहिए

इसके विपरीत इस्लाम के अनुयायियों को देखिए। देश में जमात-ए-इस्लामी नाम का एक बड़ा संगठन है। उसके मुखिया हैं अरशद मदनी। अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद वह जोश में आ गए हैं। कह रहे हैं कि लड़कियों और लड़कों के स्कूल और कालेज अलग-अलग होने चाहिए। दोनों के साथ पढ़ने से समाज में खराबी आती है। इस संगठन के एक वकील भी हैं। वह एक कदम आगे बढ़ गए। कहा कि लड़के और लड़कियां आग और लकड़ी की तरह हैं। अब आप ही सोचिए कि इनके और तालिबान के सोच में क्या अंतर है? तालिबान की तो पैदाइश ही इसी सोच का नतीजा है। और इनकी? ये तो एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, जनतांत्रिक गणराज्य में पैदा हुए। उसी में पले बढ़े हैं। फिर भी इनके सोच में कोई बदलाव नहीं आया है। अलग स्कूल-कालेज में ये लड़कियों को मजहबी तालीम देना चाहते हैं। वही तालीम जिससे इनकी ऐसी मानसिकता बनी है।

धर्मनिरपेक्ष देश में मदरसे क्यों होने चाहिए

धर्मनिरपेक्षता के अलंबरदारों से एक सवाल है। दुनिया के किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश में मदरसे क्यों होने चाहिए। मदरसों से कौन और कैसे लोग निकल रहे हैं, यह पूरी दुनिया जानती है। हर आतंकी संगठन का उनसे कोई न कोई संबंध क्यों निकल आता है। इन सवालों पर मुस्लिम समाज को गंभीरता से विचार करना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि मदरसों के पक्ष में खड़े होने वाले उनके दोस्त नहीं, बल्कि दुश्मन हैं। उन्हें आपके मजहब या आपके जीने-मरने से कोई मतलब नहीं है। उन्हें सिर्फ आपके वोट से मतलब है। राजनीतिक दलों में कांग्र्रेस पार्टी इसमें अग्रणी है।

आजादी के आंदोलन के दौरान कांग्रेस को हिंदू पार्टी समझा जाता था

आजादी के आंदोलन के दौरान कांग्रेस को हिंदू पार्टी समझा जाता था। आजादी के बाद वह धर्मनिरपेक्ष हो गई। उसकी धर्मनिरपेक्षता हिंदू विरोध की जमीन पर खड़ी है। नतीजा यह हुआ कि आज कांग्र्रेसी ही कह रहे हैं कि उनकी पार्टी मुस्लिमपरस्त हो गई है। जब हिंदू पार्टी थी तो आजादी दिलाने का श्रेय मिला और मुस्लिमपरस्त दल की पहचान से हाशिये पर सिमट रही है। कांग्र्रेस और लेफ्ट लिबरल बुद्धिजीवी कमोबेश वही कर रहे हैं जो औरंगजेब ने किया। रामधारी सिंह दिनकर ने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पुस्तक में लिखा है, ‘पृथकता की जिस भावना की बाढ़ ने 1947 में आकर भारत के दो टुकड़े बना दिए, उस भावना का जोरदार प्रचार शेख अहमद सरहिंदी ने आरंभ किया था। बदकिस्मती की बड़ी बात यह हुई कि औरंगजेब का गुरु शेख सैफुद्दीन इसी सरहिंदी का पौत्र था। अतएव, शेख सरहिंदी के दर्शन को कार्य का रूप देने का बीड़ा औरंगजेब ने उठाया और प्रेम के बदले घृणा का प्रचार करके उसने मुगल राज्य की नींव उखाड़ दी।’

मदनी जैसे लोग मुसलमानों ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का अहित करने पर आमादा

दरअसल अरशद मदनी जैसे लोग मुसलमानों ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का अहित करने पर आमादा हैं। समाज को अंधेरी गली में ले जाना चाहते हैं। उनके बयानों को नजरअंदाज करने से बात और बिगड़ेगी। ऐसे लोगों का हर स्तर पर और हर तरह से विरोध होना चाहिए, जिसमें मुस्लिम समुदाय को ही आगे आना होगा। भारत के मुसलमानों को एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि मुसलमान भारत से ज्यादा सुरक्षित दुनिया में और कहीं नहीं हैं। वहां भी नहीं जहां निजाम-ए-मुस्तफा है। यह निजाम भी मुसलमानों को सुरक्षा की गारंटी नहीं दे पाया। धर्म के आधार पर देश का बंटवारा करने के बाद भी भारत के मुसलमानों के लिए सनातन संस्कृति से बड़ा सुरक्षा कवच दूसरा नहीं है। इस वास्तविकता को जितनी जल्दी स्वीकार कर लें उतना अच्छा।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं )