[ जीएन वाजपेयी ]: बीते साल के आखिरी दिन 31 दिसंबर को राजधानी दिल्ली में तापमान लगभग 2.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। हाड़ कंपा देने वाली ऐसी सर्दी में सबसे ज्यादा आफत बेघर लोगों पर ही आती है। बेरहम सर्दी से बचने के लिए उनके पास रैनबसेरों में आसरा लेने के अलावा और कोई चारा नहीं होता। मगर रैनबसेरों में भी लोगों का अंबार लगा रहता है। यहां तक कि इन रैनबसेरों में भी सुविधाओं का नितांत अभाव होता है। वहां रहने वालों को भी बहुत संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन उनकी मजबूरी है, क्योंकि उनके लिए किराये पर घर लेना संभव नहीं है। जब राजधानी दिल्ली की स्थिति ऐसी है तो फिर दूरदराज के इलाकों के हालात की बस कल्पना ही की जा सकती है। वहां तो रैनबसेरों का कोई अस्तित्व ही नहीं दिखेगा। इसकी वजह से भीषण गर्मी या सर्दी के प्रतिकूल मौसम में तमाम लोगों की मौत तक हो जाती है। भारत में लोगों के पास घर न होना एक बड़ी समस्या है। अधिकांश अनुमानों के अनुसार भारत में करीब दो करोड़ घरों की कमी है।

पीएम आवास योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2015 को लालकिले की प्राचीर से एलान किया था कि वर्ष 2022 तक देश में प्रत्येक व्यक्ति को मकान उपलब्ध कराया जाएगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। इनमें किफायती मकानों के निर्माण से लेकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए ब्याज दरों में छूट दी जा रही है। सरकार की तमाम योजनाओं और उन्हें सिरे चढ़ाने के लिए किए जा रहे गंभीर प्रयासों से इस लक्ष्य प्राप्ति में उसकी ईमानदारी झलकती है। केंद्रीय शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही में योजना के तहत 72.66 लाख मकानों को मंजूरी दी गई। योजना के तहत काफी संख्या में मकानों का निर्माण हो चुका है और उनमें से तमाम मकान लोगों को आवंटित भी हो चुके हैं। प्रत्येक बेघर और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों को मकान जैसी सुविधा उपलब्ध कराने से उनका जीवन स्तर बेहतर होगा, उनके जीवन में खुशियां बढ़ेंगी और इसका सीधा असर बेहतर उत्पादकता में भी नजर आएगा। वहीं यह भी एक सकारात्मक पहलू है कि मकानों की कमी में अंतर की भरपाई के लिए होने वाली इस कवायद से जुड़ी गतिविधियों के कारण सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी को रफ्तार मिलेगी और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।

कंस्ट्रक्शन में निवेश

भारत में कृषि के बाद भवन निर्माण यानी कंस्ट्रक्शन ही सबसे बड़ा रोजगारप्रदाता क्षेत्र है। इसमें कच्ची सामग्री से लेकर विनिर्मित उत्पादों से संबंधित करीब 269 छोटे-बड़े उद्योग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। इसमें इस्पात, सीमेंट, पेंट, फर्नीचर से लेकर तमाम छोटे उद्योगों के उत्पादों की बड़ी भूमिका होती है। अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले 14 बड़े उद्योगों की सूची में कंस्ट्रक्शन तीसरे पायदान पर आता है। कंस्ट्रक्शन में निवेश होने वाले प्रति एक रुपये से जीडीपी में 78 पैसों का जुड़ाव होता है। अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव के मामले में भी कंस्ट्रक्शन परिवहन एवं कृषि जैसे क्षेत्रों की तुलना में कहीं आगे है और इस पैमाने पर चौथे स्थान पर आता है।

संगठित करने की कवायद

परंपरागत रूप से कंस्ट्रक्शन असंगठित, छितरा हुआ और टुकड़ों में बंटा हुआ कारोबार रहा है जिसे संगठित करने की कवायद में सामने आनी वाली संक्रमणकालीन चुनौतियों के चलते इसकी रफ्तार कुछ सुस्त पड़ गई है। निर्माण गतिविधियों में आए इस ठहराव से रोजगार के अवसरों पर भी बुरा असर पड़ा। हालांकि सुधारों की यह प्रक्रिया लगभग आकार ले चुकी है और यह उद्योग भी अब इससे संभलकर फिर से रफ्तार पकड़ रहा है। असल में कंस्ट्रक्शन उद्योग से जुड़े सभी अंशभागियों जैसे निवेशकों, खरीदारों और कर्जदाताओं सभी के हितों को सुरक्षित रखने के लिए ये सुधार अपरिहार्य ही नहीं अनिवार्य हो चले थे। इन सुधारों से ही प्रत्येक परिवार के लिए घर के राष्ट्रीय सपने का साकार होना संभव है। सुधारों की प्रक्रिया में महसूस हुआ कुछ दर्द भी ऊंची वृद्धि के मरहम से जल्द ही हवा होने वाला है। इससे आर्थिक समृद्धि के नए द्वार खुलेंगे।

‘घरेलू वृद्धि का इंजन’

दुनिया को हतप्रभ कर देने वाली चीन की तेज रफ्तार आर्थिक वृद्धि में कंस्ट्रक्शन उद्योग की बेहद अहम भूमिका रही है। वास्तव में रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन की चीन के जीडीपी में 15 प्रतिशत और कुल रोजगार में 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। एक अनुमान पर गौर करें तो 50 लाख लोगों के लिए घर जीडीपी में कम से कम एक प्रतिशत का इजाफा कर सकते हैं। केवल कंस्ट्रक्शन उद्योग में ही सालाना 50 लाख लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है। कंस्ट्रक्शन के विभिन्न स्तरों पर लगे कामगारों के अलावा प्रॉपर्टी सलाहकारों से लेकर होम डेकोरेटर्स जैसे तमाम पेशेवरों के लिए इससे रोजगार मिलेगा। कंस्ट्रक्शन को अक्सर ‘घरेलू वृद्धि का इंजन’ भी कहा जाता है।

सिंगल विंडो व्यवस्था

हालांकि इस लक्ष्य को हासिल करने में आने वाले अवरोधों को दूर करने के लिए तत्काल कुछ कदम उठाने की आवश्यकता है। कंस्ट्रक्शन गतिविधियों की स्वीकृति के लिए सिंगल विंडो वाली व्यवस्था बनानी होगी। कर्ज के लिए आसान और लचीली व्यवस्था बनाकर उसे प्रभावी रूप से लागू करना होगा। निजी क्षेत्र को करों में कुछ छूट भी देनी होगी। इसके अलावा निजी कंस्ट्रक्शन कंपनियों के लिए व्यावसायिक पैमाने पर नई रणनीतिक विचार प्रक्रिया भी विकसित करनी होगी ताकि उन्हें वित्तीय संसाधन सुलभ हों। इसमें उन्हें दिए गए कर्ज की वापसी और ब्याज की अदायगी भी सुनिश्चित करनी होगी। वास्तव में वाणिज्यिक बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को एक अलग श्रेणी बनाकर कंस्ट्रक्शन उद्योग को कर्ज देने के मामले में दीर्घावधिक देनदारी का खाका तैयार करना चाहिए। फिलहाल इसमें कंपनियों को तीन साल तो उपभोक्ताओं को 20 साल की मियाद मिलती है। इससे कर्जदाताओं के लिए परिसंपत्ति-देनदारी की गुत्थी सुलझ जाएगी और उनकी आगे की राह आसान होगी।

बेहतर समन्वय

रेरा, जीएसटी और आरईआइटी जैसे तमाम सुधारों में कंस्ट्रक्शन उद्योग को वह शक्ति देने की क्षमता है जिसमें वे विकसित देशों की कंपनियों की तर्ज पर काम कर सकती हैं। हालांकि तेज वृद्धि के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कोशिशों के बीच बेहतर समन्वय के लिए शुरुआती प्रोत्साहन की आवश्यकता होगी। शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय ने एक लक्ष्य तय कर लिया है जिसमें सभी अंशभागियों के हितों को ध्यान में रखते हुए गंभीरता के साथ आगे बढ़ना होगा।

( लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं )