राज्यों की सीमाओं के पुनर्गठन की सिफारिशों के लिए 1953 में केंद्र सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) का गठन किया था।

* दो साल के अध्ययन के बाद 1955 में आयोग ने सुझाव दिया कि राज्यों की सीमाओं का पुनर्गठन करते हुए 16 नए राज्य और तीन केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया जाना चाहिए।

* इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि केवल भाषा या संस्कृति के एकल पैमाने पर नए राज्य का गठन न ही संभव है और न ही वांछनीय। राष्ट्रीय हितों को देखते हुए इस मसले पर संतुलित नजरिए की जरूरत है।

* फजल अली, केएम पणिक्कर और एचएन कुंजरू एसआरसी के सदस्य थे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज फजल अली अध्यक्ष थे। उनके कुछ सुझावों को 1956 के राज्य पुनर्गठन एक्ट में शामिल किया गया था।

पृष्ठभूमि

* आजादी से पहले ब्रिटिश भारत की प्रांतीय सीमाएं ऐतिहासिक, राजनीतिक, सैन्य और अंग्रेजों की रणनीति पर आधारित थी। आजादी के बाद प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्यों की सीमाओं के पुनर्गठन की जरूरत महसूस हुई लेकिन इसके आधार पर सहमति नहीं थी।

* एक प्रस्ताव भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित था। 1920 में भी कांग्रेस ने इस आधार पर राज्यों के गठन को पार्टी के राजनीतिक लक्ष्यों में शामिल किया था। उसी साल से पार्टी की प्रांतीय कमेटियों का गठन भी इसी आधार पर किया जाने लगा। 1945-46 के चुनावी घोषणापत्र में भी पार्टी ने अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की, लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को लगा कि भाषाई आधार पर राज्यों के गठन से राष्ट्रीय एकता पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

डार कमीशन

* 1948 में डार कमीशन का गठन यह सिफारिश देने के लिए किया कि क्या भाषाई आधार पर रज्च्यों का गठन उपयुक्त होगा? इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि केवल भाषा के आधार पर रज्च्यों का गठन देश के राष्ट्रीय हितों के लिए उपयुक्त नहीं होगा।

* 1952 में मद्रास रज्च्य के तेलुगु भाषी क्षेत्रों में अलग रज्च्य की मांग जोर पकड़ने लगी। मांग करने वाले प्रमुख लोगों में से पोट्टी श्रीरामुलु की अनशन के दौरान मौत हो गई। इसकी परिणति 1953 में तेलुगु बहुसंख्यक आंध्र रज्च्य के गठन से हुई। इससे भाषाई आधार पर रज्च्य की मांग को लेकर देशभर में व्यापक प्रदर्शन शुरू हो गए। लिहाजा सरकार को एसआरसी का गठन करना पड़ा।

रज्च्य पुनर्गठन एक्ट, 1956

एसआरसी की सभी सिफारिशों को न मानते हुए उनमें से कुछ को इस एक्ट में शामिल किया गया। रज्च्यों की सीमाओं में आजादी के बाद सबसे बड़ा फेरबदल इसी एक्ट के चलते हुआ। प्रमुख रूप से भाषाई आधार पर रज्च्यों का गठन हुआ।

पढ़े: रसताल में रसूख