[डॉ. दर्शनी प्रिय]। Education Lockdown Crisis: आज समूचा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है। दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी लॉकडाउन जैसे हालातों से जूझ रही है। वैश्विक आबादी धीरे-धीरे आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है। हजारों लोग इस वायरस से अपनी जान गंवा चुके हैं। प्रभावितों की संख्या चार लाख के ऊपर पहुंच गई है। इसके चलते सामाजिक, औद्योगिक और आर्थिक संकट गहराने के पूरे आसार हैं। वहीं शैक्षिक क्षेत्र की तालाबंदी भी एक महती मुसीबत पैदा होने का आभास करा रही है। पहले से ही संसाधन की भारी कमी झेल रहे एजुकेशन सेक्टर को अब इससे दोहरी मार झेलनी होगी।

कोरोना के संकट के चलते देश भर के शैक्षिक संस्थानों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया है। इससे लाखों छात्रों के पठन-पठन में बाधा पैदा हुई है। एक तरफ जहां दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं, वहीं अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं को भी आगे के लिए टाल दिया गया है। एक डाटा के अनुसार दसवीं और बारहवीं के क्रमश: 18.89 लाख और 12 लाख छात्र इससे प्रभावित होंगे। वहीं देश भर के 20,300 सरकारी स्कूलों में नौनिहालों का बस्ता बंद कर दिया गया है। इस महामारी ने आंगनबाड़ी के उन 13.63 लाख केंद्रों में बच्चों के पोषण और देखभाल के साथ शैक्षिक कार्यक्रमों को भी झटका दिया है।

इस अकल्पनीय स्वास्थ्य आपदा ने शिक्षा प्रणाली के ढांचे को चरमरा कर रख दिया है। प्रभाव इतना गहरा है कि कई राज्यों में मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस की कक्षाएं बंद कर दी गई हैं। उच्च शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, बेसिक शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा एवं बाल विकास कार्यक्रमों के तहत दी जाने वाली सभी प्रकार की कक्षाएं रद की जा चुकी हैं। अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र भी पूरी तरह से लॉकडाउन की मार झेल रहा है। कमोबेश यही हाल उच्च शिक्षा केंद्रों का भी है। करीब 38,500 कॉलेज और 760 विश्वविद्यालयों पर ताला बंदी से उच्च शिक्षा पूरी तरह से प्रभावित होगी। वहीं लाखों निजी कोचिंग सेंटर इसके प्रभाव की जद में हैं। देश भर में उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकन प्रक्रिया ठप है। छात्रावासों के खाली होने और उसके चलते छात्रों के घर लौट जाने से नियत समय पर होने वाली उनकी परीक्षाएं अनिश्चित काल के लिए टाल दी गई हैं।

जेपी मॉर्गन की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सोशल डिस्टेंसिंग के बाद समुद्री पर्यटन, एयर लाइंस, होटल्स, खेलों के कार्यक्रम, मूवीज, रेस्टोरेंट और अन्य उद्योगों पर इसका गहरा प्रभाव होगा। ओईसीडी यानी ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट ने अंतरिम समीक्षा रिपोर्ट में कोविड-19 के कारण वैश्विक जीडीपी में 50 आधार अंक की गिरावट की आशंका जताई है। उल्लेखनीय है कि 100 आधार अंक एक प्रतिशत के बराबर होता है। यानी वैश्विक जीडीपी में आधे प्रतिशत की कमी आ सकती है। साफ है कि इससे शिक्षा क्षेत्र को भी झटका लग सकता है। इसका एक व्यापक असर देश के बाहर पढ़ने वाले छात्रों पर भी होगा। इस महामारी के मद्देनजर दुनिया भर से हजारों छात्र भारत वापस आ चुके हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया और यूरोप के देशों में करीब पांच लाख भारतीय छात्र अध्ययनरत हैं। अकेले चीन के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हजार से भी ज्यादा छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। इसी तरह से इटली में करीब एक हजार, ईरान में 1,500 और स्पेन में 200, जबकि अमेरिका में एक लाख 86 हजार भारतीय छात्र अध्ययनरत हैं। बढ़ते खतरे को देखते हुए कोरोना प्रभावित इन देशों से भारी संख्या में छात्र स्वदेश लौट आए हैं। इससे परोक्ष रूप से उन्हें शैक्षिक नुकसान झेलना होगा। पाठ्यक्रमों के अनियमित होने, परीक्षा में अकारण देरी, हॉस्टल के बढे़ हुए खर्च और आवागमन के चलते छात्रों के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंच सकता है।

भारत जहां पहले से ही शिक्षा में आधारभूत कमियों की भारी कमी झेल रहा है, ऐसे में शैक्षिक लॉकडाउन उसे विपदा में डाल सकती है। स्कूली स्तर पर शिक्षा के प्रभावित होने की बात करें तो भारत अपने 1.50 लाख स्कूलों और 260 लाख छात्रों के साथ चीन के बाद दूसरा सबसे व्यापक शिक्षा हब माना जाता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने व्यापक पैमाने पर छात्र इस लॉकडाउन से प्रभावित होंगे। नि:संदेह शैक्षिक अव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तमाम संबंधित संस्थानों, शैक्षिक मानव बलों और सरकारों को मिलकर तेजी से काम करने होंगे। तभी इस रिक्तता को पाटा जा सकेगा। इस वैश्विक महामारी के गहरे शैक्षिक कुप्रभाव होंगे। इससे निपटने में सभी निकायों को तत्परता दिखानी होगी।

मजबूत शैक्षिक संकल्पों से इस दशा से उबरने में मदद मिलेगी, क्योंकि सवाल देश के नौनिहालों की बुनियाद का है। सभ्य समाज की बुनियाद सबल शिक्षा प्रणाली मानी जाती है। समय आ गया है कि शिक्षा के वैकल्पिक साधनों पर नए सिरे से विचार किया जाए और उन्हें पारंपरिक शिक्षा में समावेशी बनाया जाए। मुख्यधारा की शिक्षा से उलट होम बेस्ड, ओपन क्लास रूम और ई-लर्निंग कक्षाओं को वैकल्पिक रूप में इस्तेमाल कर ऐसे संकटकालीन हालातों से निपटा जा सकेगा।

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