[ सूर्यकुमार पांडेय ]: ‘अर्जुन! पुत्र-मोह से बड़ा कोई मोह नहीं होता है। यह सारी धन-दौलत, उलटी-सीधी कमाई, ये सब हम अपनी संतानों के लिए ही तो बटोरते हैं। अगर बच्चे की जिद है और वह मैदान में उतरने और लड़ने को उद्यत है तो उसकी इस जिद का लालन-पालन भी तुम्हारा राजनीतिक धर्म है। तुम एक प्रसिद्ध धुरंधर हो। तुम्हारे लिए क्या कठिन है? तुम किसी भी चुनावी समर भूमि में उतरकर विजयश्री का वरण करने में सक्षम हो। अब समय आ गया है। युवाशक्ति को बढ़ाओ। अपनी वर्तमान सीट का, किसी और के लिए नहीं, अपने बेटे के लिए त्याग करो। उसे भी सांसद पद का सुख भोगने का अवसर दो और लोकतंत्र में यश के भागी बनो। आज के युग का यही यथार्थ है। इतिहास में अनेक राजपिताओं ने अपने पुत्र-पुत्रादिकों के लिए सिंहासन खाली किए है। जो नहीं कर पा रहे हैं, वे भविष्य में करेंगे।’ अर्जुनलाल के राजनीतिक सलाहकार और चुनाव सारथी किशनलाल उसे समझाते हैं।

अर्जुनलाल अपनी वर्तमान सीट को लेकर मोहग्रस्त है। वह दल के प्रमुख की ओर से समरभूमि में उतरने का प्रवेशपत्र, जिसे जनभाषा में टिकट कहा जाता है, प्राप्त कर चुका है। उधर उसकी अपनी संतान जिद पर अड़ी हुई है और वह भी उसी पुराने क्षेत्र से चुनावी समर में उतरने की आकांक्षा पाले हुए है। हालांकि अर्जुनलाल को ईश्वर ने चतुर खोपड़ी का स्वामी बना रखा है फिर भी आज उसकी बुद्धि चकराई हुई है। तरकश के सारे तीर कुंद पड़े हुए हैं। जो किसी से पराजित नहीं होता है, वह अपनी ही संतान से हारता है।

अर्जुनलाल अपने राजनीतिक जीवन में न जाने कितने सूरमाओं को धूल चटा चुका है। एक से बढ़कर एक महारथी उसके प्रहार से मटियामेट हो चुके हैं। विजयश्री ने हर बार उसका वरण किया है, लेकिन आज अर्जुनलाल किंकर्तव्यविमूढ़ है। अर्जुनलाल का कुल जमा परिचय यह है कि वह अपने क्षेत्र का धनीमानी व्यक्ति है। निवर्तमान सांसद है। आर्थिक तौर पर भरपूर संपन्न है इसलिए राजनीति में भी सफल है। अर्जुनलाल के पास करोड़ों की घोषित संपत्ति है। जो राजनीति का नामी इंसान हो उसके पास बेनामी संपत्ति न हो, ऐसा न संभव है और न ही विश्वास योग्य। अर्जुनलाल और उसके सगे-संबंधियों ने अरबों का अघोषित साम्राज्य खड़ा कर रखा है। जो ऐसा वैभव खड़ा कर सकता है, चुनाव में खड़ा होना उसके लिए बाएं हाथ का खेल होता है। जैसे पंख के बिना कौआ उड़ नहीं सकता है वैसे ही बिना धन के आज राजनीति नहीं सधती है।

अर्जुनलाल का इकलौता पुत्र अभी-अभी चुनाव योग्य जवान हुआ है। उसका नाम अभिमन्युलाल है। इस बात की तस्दीक आए दिन इलाके के पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होते उसके कारनामों को पढ़कर की जा सकती है। इन दिनों वह अपने पिताश्री का नाम सार्थक कर रहा है। जब बाप का नाम अर्जुन हो तो बेटे का नाम अभिमन्यु होने में ही सार्थकता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि अर्जुनलाल की ज्ञात पत्नियों में से एक का नाम श्रीमती सुभद्रादेवी है। अभिमन्यु इसी माई का लाल है।

एक दिन अभिमन्युलाल ने कहा, ‘पिताश्री, इस बार मैं भी चुनावी चक्रव्यूह में कूदना चाह रहा हूं। आपका आशीर्वाद चाहिए।’ अर्जुनलाल बेटे की कामना से अभिभूत होते हुए बोले, ‘अभिमन्यु, अभी तुम नए हो। राजनीति के दावपेंचों से अनभिज्ञ हो। राजनीति में एक से एक घाघ हैं। अपने चाचा श्री दुर्योधनलाल को ही देख लो। वह कितने घुटे हुए हैं! वह भी चुनाव मैदान में हैं। भला तुम चुनावी रणभूमि में उतर चुके उन और उनके ही जैसे महारथियों से किस तरह मुकाबला कर पाओगे।

अभिमन्युलाल अपनी नवागत मूंछों पर ताव देते हुए बोला, ‘आपको कदाचित मेरे पराक्रम, बाहुबल और क्षेत्र में मेरी लोकप्रियता और संगठन क्षमता का भान नहीं है। यदि आप आशीर्वाद दे दें तो आपके स्थान पर मैं इस बार चुनावी चक्रव्यूह भेदना चाहूंगा। युवाशक्ति मेरे साथ है। आपको कदापि भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। राजनीति मेरे रक्त में है।’ अर्जुनलाल को काटो तो खून नहीं। वह उसी तरह विवश दिखे जिस तरह कभी मां कुंती के सामने कवच और कुंडल मांगते समय कर्ण हुआ होगा। यद्यपि अर्जुनलाल ने अपने प्रचार-प्रसार के लिए पर्याप्त धन व्यय किया हुआ था तथापि उन्होंने अपने सगे भाइयों और शुभचिंतकों से मंत्रणा की। किशनलाल की सलाह उन्हें अच्छी लगी, ‘मित्र, तुम अपना रणक्षेत्र बदल लो। मैं तुम्हारे साथ अकेला चलूंगा। तुम्हें अपने प्रबंधन कौशल से विजयश्री दिलवाऊंगा।’

अर्जुनलाल ने अपने दल के प्रमुख पर दबाव बनाकर अपने स्थान पर अपने सुपुत्र अभिमन्युलाल को चुनावी समर में उतार दिया है। स्वयं सुदूर दूसरे क्षेत्र में लड़ने चले गए हैं। इधर अभिमन्युलाल चक्रव्यूह में फंस चुका है। चक्रव्यूह का प्रथम द्वार टिकट तो पिता ने पार करा दिया। अब विजयश्री का अंतिम द्वार तो उसे खुद ही तोड़ना होगा। सामने उसके चाचा दुर्योधनलाल ने अपनी ओर से चाल चलते हुए अपने विश्वस्त सहयोगी जयद्रथसेन को दल-बल सहित समर भूमि में उतार दिया है।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]