[राजीव सातव]: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि अगर इन प्रांतों में उनकी सरकार बनी तो दस दिन के अंदर किसानों का कर्ज माफ करेंगे। कांग्रेस की सरकार बनी और महज दो दिन के अंदर उनके इस वादे को तीनों प्रांतों के मुख्यमंत्रियों ने पूरा कर दिखाया। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब चुनावी वादे इतने जल्दी पूरे कर दिए गए। इससे तीन बातें साफ हुई हैैं। पहली, कांग्रेस की नीति हमेशा किसानों के हितों के प्रति उन्मुख और गंभीर रही है। दूसरी, यह पार्टी अपनी कथनी और करनी में संतुलन रखती है और तीसरी, यह जुमले की राजनीति नहीं करती, झूठे प्रलोभन और सब्जबाग नहीं दिखाती। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि कांग्रेस की सरकार में किसानों का कर्ज माफ हुआ है। कांग्रेस की सरकारें चाहे केंद्र में रही हों या प्रांतों में किसान हमेशा प्राथमिकता में रहे हैं। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने 2008 में किसानों के करीब 60 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए। फिर उप्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब में भी किसानों के कर्ज माफ किए गए थे।

आज कुछ लोग किसान कर्ज माफी को अर्थव्यवस्था के लिहाज से गलत कदम बता रहे हैं, किंतु अर्थशास्त्र के जानकार इसकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे कि पिछले साढ़े चार साल में जिस तरीके से अर्थव्यवस्था को गंभीर स्थिति में पहुंचाया गया वह कई तरह से देश को बदहाली के कगार पर ले गया है। नोटबंदी के साथ ही सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति ने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचाया। ऐसे में किसान के पास बहुत सारे विकल्प समाप्त हो रहे हैं, जिसका खामियाजा आत्महत्या के रूप में सामने आया है। देश में उत्पादन के साधन कम हो रहे हैं, राष्ट्रीय बचत दर में खामी आ गई है और बेरोजगारी बढ़ी है। ऐसे में किसानों के हितों की रक्षा के लिए अल्पकालीन उपायों में इससे बेहतर विकल्प नहीं हो सकता। हां, यह अवश्य है कि यह रास्ता एकमात्र नहीं है और इसके लिए दीर्घकालीन नीतियां बनाने की जरूरत है। इस दिशा में कांग्रेस पार्टी काम कर रही है। हमें यह भी समझने की जरूरत है कि मौजूदा केंद्र सरकार ने किसान कल्याण के लिए किए अपने वादे को कहां तक पूरा किया है?

मोदी सरकार के कार्यकाल में (वर्ष 2014 से 2018) कृषि विकास दर कांग्रेस के शासनकाल (वर्ष 2004 से 2014) के 4.2 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 1.9 प्रतिशत पर आ चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे, किंतु यह वादा भी एक जुमला साबित हुआ, क्योंकि इसके लिए आवश्यक कंपाउंड वार्षिक ग्रोथ रेट (सीएजीआर) 10.4 प्रतिशत होनी चाहिए, जबकि यह 2.5 प्रतिशत है। चुनाव से पूर्व उन्होंने वादा किया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर निर्धारित किया जाएगा, लेकिन खरीफ सत्र में किसी भी फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में यह वादा पूरा नहीं किया गया।

देश के गन्ना किसानों की स्थिति तो और भी दयनीय है। प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था कि उनकी सरकार बनने के 14 दिन के अंदर गन्ना किसानों के बकाए का भुगतान किया जाएगा, किंतु वास्तविकता इसके विपरीत है। अभी तक गन्ना किसानों का बकाया 20,000 करोड़ रुपये है। यह स्थिति विगत साढ़े चार वर्षों में बनी है। इसके बावजूद कांग्रेस की नीतियों और योजनाओं की आलोचना से भाजपा चूकती नहीं। कभी उसे इन तथ्यों पर भी ध्यान देना चाहिए कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही भारत को एक कमजोर कृषि क्षेत्र विरासत में प्राप्त हुआ था। उसके समक्ष कई तरह की चुनौतियां थीं जिनसे निपटने के लिए प्रभावी और कुशल नीति की जरूरत थी। इस दिशा में कुशल तरीके से देश में काम किया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) के साथ कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देना शुरू किया गया। लगभग प्रत्येक पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कुछ न कुछ ठोस प्रावधान और उपाय किए गए।

1960 के दशक में हरित क्रांति के साथ कृषि क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात हुआ जिसने न केवल भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि भारत को एक खाद्यान्न निर्यातक देश के रूप में भी स्थापित किया। कांग्रेस सरकारों के शासनकाल में किसानों को आत्मनिर्भर और सबल बनाने की कई पहल की गईं। देश में दूसरी हरित क्रांति की नींव भी डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए डाली गई, किंतु मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों और गतिविधियों के कारण ही आज किसान आत्महत्या कर रहे हैं और परेशान होकर सड़क पर भी उतर रहे हैं। इस पर विडंबना देखिए कि जो वादे नरेंद्र मोदी जी ने चुनाव में किए थे उन्हें पूरा करने में लगातार नाकाम हो रहे हैं।

केंद्र सरकार केवल योजनाओं के उद्घाटन पर समय, संसाधन और ऊर्जा खर्च कर रही है। वह यह नहीं देख रही कि बीमा योजना और मृदा सुरक्षा योजना से किसानों को राहत नहीं मिल रही। उन्हें अपनी रोटी और रोजगार की चिंता है जिसे दूर करना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। नारे लगाने और घोषणा करने से जमीनी समस्या का निवारण नहीं किया जा सकता, बल्कि उन स्थितियों और समस्याओं पर व्यापक ध्यान दिए जाने की जरूरत है जो किसानों की बदहाली के लिए जिम्मेदार हैैं। इसमें सबसे जरूरी कदम है किसानों को उनकी उपज का सही और तार्किक मूल्य मिले तथा कृषि में अनिवार्य अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन दिया जाए, जो कि मोदी सरकार में बिल्कुल नहीं हुआ है। साथ ही कृषि को केवल जीवनयापन के साधन तक सीमित नहीं रखते हुए इसे उद्यम और रोजगारमूलक बनाया जाना जरूरी है।

मोदी सरकार जन-धन योजना लाकर वित्तीय समावेशन के लिए अपनी पीठ थपथपा रही है। इसके अलावा वह मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप योजना लेकर आई, जिसका कोई अपेक्षित लाभ नहीं दिखा है, लेकिन किसानों की ऋण आपूर्ति के लिए कोई बड़ी योजना नहीं ला पाई। देश में आज किसानों की ऋण समस्या सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। इसे देखते हुए सरकार किसानों को सस्ते और सरल ऋण सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कोई बड़ी पहल क्यों नहीं कर रही है? बैंकों द्वारा किसानों को ऋण सुविधा देने में भी पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैैं। साथ ही जो किसान ऋण चुका पाने में असमर्थ हैं उनके लिए ऋण माफी की भी कोई व्यवस्था पर्याप्त रूप से नहीं की गई।

(लेखक कांग्रेस के लोकसभा सदस्य हैैं)