जागरण संपादकीय: उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर बुजुर्ग, समाज और राष्ट्र का भविष्य होते हैं वरिष्ठजन
अमेरिका कनाडा यूरोप और एशिया के विभिन्न देशों में आम नागरिकों को श्रेष्ठ चिकित्सा सुविधाएं मिलने से वहां की औसत आयु 80 वर्ष को भी पार कर गई है। इसमें कोई संदेह नहीं कि वरिष्ठ नागरिकों के पास एक लंबा कौशल और अनुभव होता है परंतु हमने उन्हें निरर्थक एवं अनुपयोगी समझकर अपनी सामाजिक पूंजी से अलग कर दिया है।
डॉ. विशेष गुप्ता। देश के सत्तर साल से अधिक उम्र के सभी बुजुर्गों को बीते दिनों सरकार ने आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने का निर्णय लिया। इसके तहत करीब छह करोड़ वरिष्ठजनों को पांच लाख रुपये का बीमा कवरेज मिलेगा। बुजुर्गों के लिए केंद्र सरकार की यह योजना अनायास नहीं है। हाल में प्रकाशित चार रिपोर्टों में देश में बुजुर्गों की तेजी से बढ़ती आबादी का आकलन किया गया है। इन सभी ने केंद्र सरकार का भी ध्यान खींचा है।
इनमें पहली रिपोर्ट कुछ भारतीय और अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन पर आधारित है। उनका यह अध्ययन प्लस वन नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इससे पता चलता है कि आज देश का हर चौथा बुजुर्ग स्मृति लोप, भाषा का ठीक से प्रयोग न करने, सोचने-समझने एवं निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाने तथा अपने दैनिक कामों में समस्या का अनुभव करने जैसी दिक्कतों से जूझ रहा है।
दूसरी रिपोर्ट एसबीआइ की है जिसमें कहा गया है कि भारत की कामकाजी आबादी की औसत आयु 2021 में 24 वर्ष के मुकाबले 2024 में बढ़कर 28-29 वर्ष होने की संभावना है। आज चीन की कामकाजी औसत आयु 39.5 साल है। वहीं यूरोप में यह 42 साल, उत्तरी अमेरिका में 38 साल तथा एशिया में 32 साल है। वैश्विक स्तर पर यह औसत आयु 30.4 वर्ष है। वर्ष 2001 में बुजुर्गों की जो आबादी 7.9 करोड़ थी, वह 2024 में बढ़कर 15 करोड़ हो गई है।
बुजुर्गों की यह आबादी देश की कुल जनसंख्या का 10.7 प्रतिशत है। इनमें 7.7 करोड़ पुरुष तथा 7.3 करोड़ महिलाएं हैं। 2001 में जो कामकाजी आबादी 58.6 करोड़ थी, 2024 में इसके 91 करोड़ रहने की संभावना है। इस प्रकार जल्द ही देश की कुल आबादी में 67 प्रतिशत हिस्सेदारी कामकाजी लोगों की होगी।
इस कड़ी में मेन एंड वीमेन नामक तीसरी रिपोर्ट केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की है। यह बताती है कि 2036 तक देश में बच्चों एवं किशोरों की आबादी में तेजी से गिरावट आएगी। दूसरी ओर बुजुर्गों और मध्यम उम्र के लोगों की संख्या बढ़ेगी। वर्तमान आबादी में 60 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों का प्रतिशत 9.5 है। वहीं 2036 में बुजुर्गों की आबादी बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो जाएगी। चौथी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की भारत प्रमुख एंड्रिया वोजनार के एक साक्षात्कार में दिए गए बयान से जुड़ी है।
उनके अनुसार भारत में अगले 25 वर्षों में देश की आबादी में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या बढ़कर 20.8 प्रतिशत हो जाएगी। अर्थात देश में हर पांचवां व्यक्ति बुजुर्ग होगा। यूएनएफपीए के अनुसार 2024-2050 के बीच देश की कुल आबादी 18 प्रतिशत ही बढ़ेगी, मगर वृद्ध जनसंख्या में 134 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होगी। देश की आबादी में जिस प्रकार बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ रही है उससे देश में कामकाजी युवाओं और वृद्धजनों के बीच असंतुलन आने के आसार बढ़ रहे हैं।
एक खास बात यह भी है कि विकसित देशों मसलन जापान, फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन जैसे देशों में जनसंख्या के बढ़ने का स्तर अमूमन शून्य हो चुका है। निःसंदेह भविष्य में वहां वृद्धजनों की संख्या बढ़ेगी और कार्यशील जनसंख्या कम होती जाएगी जिससे उत्पादन स्वतः ही घटेगा। हालांकि भारत में ऐसा नहीं है।
उपरोक्त चारों रिपोर्टों का सार यह है कि यहां अगर बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है तो उससे कहीं बढ़े हुए अनुपात में कामकाजी युवक-युवतियों की संख्या भी बढ़ रही है। आज ब्राजील, रूस, भारत और चीन में जन्म दर और जनसंख्या वृद्धि दर लगातार घट रही है। भविष्य में केवल भारत देश ही ऐसा होगा, जहां की कार्यशील और ज्ञानाश्रित युवा जनसंख्या संपूर्ण विश्व में अपना परचम फहराएगी।
आज देश में बुजुर्गों से जुड़े सामाजिक ढांचे तथा युवाओं और वरिष्ठजनों के बीच बढ़ रहे पीढ़ीगत अंतराल और जनसंख्यात्मक असंतुलन को लेकर चिंता अधिक है। यदि देश के युवाओं की ऊर्जा, शक्ति, उत्साह और सामर्थ्य देश के काम आएगा तो उसी अनुपात में देश के वरिष्ठजनों का लंबा अनुभव भी इन युवाओं की सुरक्षा में ढाल का कार्य करेगा।
किसी भी देश को महान वहां के रहने वाले लोग बनाते हैं और यही लोग आगे चलकर उस महान देश के महत्वपूर्ण नागरिक बन जाते हैं, परंतु भारत जैसे सुसंस्कृत देश के बुजुर्ग नागरिक यहां उपेक्षित जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। अमेरिका और यूरोप में किसी भी राजनीतिक दल में इतना साहस नहीं है कि वे वहां के वरिष्ठ नागरिकों की अनदेखी कर सकें। यूरोप और अमेरिका के बजट का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण पर खर्च होता है।
आवश्यकता है कि जहां सरकारों द्वारा उनकी पेंशन राशि में बढ़ोतरी हो, वहीं रेल एवं हवाई यात्रा में छूट तथा स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार और एक गरिमापूर्ण जीवन जीने की सुलभता के साथ-साथ उनकी सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम हों।
याद रहे कि जो समाज एवं राष्ट्र अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करता है वह वर्तमान के साथ सुनहरे भविष्य के लिए भी अपनी सामाजिक पूंजी को सहेजकर रखता है। वर्ष 2047 तक हम जिस विकसित भारत की कल्पना कर रहे हैं वह वरिष्ठ नागरिकों के बढ़ते संख्यात्मक बल से जुड़े लंबे अनुभव और युवाओं की कार्यात्मक ऊर्जा एवं शक्ति के मध्य सहक्रिया के सेतु पर संतुलित पदचापों से ही पूरी हो पाएगी।
(लेखक उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष हैं)