नई दिल्‍ली [ लक्ष्मीकांता चावला ]। चंद दिनों पहले तक जम्मू के कठुआ जिले का जो रसाना गांव अपरिचित-अनजाना था वह आज देश भर में चर्चा में है। अफसोस यह है कि यह चर्चा किसी नेक काम के लिए नहीं, उस भयावह घटना के कारण हो रही है जो सभ्य समाज को शर्मिदा करने वाली है। 10 जनवरी को इस गांव की आठ साल की एक मासूम बालिका गुम हो गई। सात दिन बाद उसकी लाश मिली। आठ साल की बालिका ने कई दिनों तक वह यातना सही जिसे सुनकर किसी का भी कलेजा छलनी हो जाए। बालिका का शव बरामद होने के बाद जम्मू-कश्मीर की क्राइम ब्रांच की ओर से जो आरोप पत्र अदालत में पेश किया गया उसमें यह बात सामने आई कि उसे कई दिन बंदी बनाकर रखा गया और उससे कई लोगों ने दुष्कर्म किया। इस घटना पर केंद्रीय मंत्री वीके सिंह की टिप्पणी बहुत मार्मिक है। उन्होंने कहा, ‘मनुष्य और जानवर में फर्क होना चाहिए और है भी, लेकिन कठुआ में आठ साल की मासूम के साथ जो हुआ उससे लगता है कि इंसान होना गाली है। इससे तो जानवर कहीं अच्छे हैं। जो लोग अपराधियों को धर्म की आड़ में शरण देना चाहते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि वे भी अपराधी ही माने जाएंगे। यह याद रखना चाहिए कि बेटी बेटी है, अपराध अपराध है। उसका किसी भी धर्म संप्रदाय से संबंध नहीं।’

उन्नाव दुष्कर्म मामले में विधायक गिरफ्तार

कठुआ की भयावह घटना के सामने आने के दौरान ही उन्नाव की एक किशोरी से दुष्कर्म का आरोप भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर लगा। शिकायत दर्ज होने के आठ माह बाद सजा पीड़ित किशोरी के पिता को मिली। विधायक के भाई ने उन्हें बुरी तरह पीटा और फिर भी पुलिस ने उन्हें ही जेल में डाल दिया, जहां उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के बाद पीड़िता के परिवार की चीख-पुकार मीडिया के सहयोग से सरकार के कानों तक पहुंची और आखिरकार सरकार के साथ न्यायपालिका भी सक्रिय हुई। इस सक्रियता के बीच मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई, जिसने विधायक को गिरफ्तार कर लिया। दुर्भाग्य से कठुआ और उन्नाव के मामले अपवाद नहीं।

देश में बढती दुष्कर्म की घटनाएं

अपने देश में प्रतिदिन बच्चियां, किशोरियां और महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। चंद दिन पहले झारखंड में महिला और उसकी बेटी से दुष्कर्म हुआ। गुजरात के सूरत में 11 साल की लड़की दरिंदों का शिकार होकर मौत के मुंह में चली गई। हरियाणा के रोहतक में गंदे नाले से एक बैग मिला, जिसमें आठ- दस वर्षीय बालिका की लाश मिली। संदेह है कि उससे दुष्कर्म किया गया। आखिर हमारा समाज इतना कैसे गिर सकता है कि तीन-चार साल की छोटी बच्चियों से लेकर वृद्धा तक को वासना का शिकार बनाया जा रहा है?

कोई भी अपराधी हो, बचेगा नहीं: प्रधानमंत्री

कठुआ और उन्नाव की घटनाओं और उन पर आम लोगों के रोष के बाद केंद्रीय गृहमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक ने भरोसा दिलाया कि कोई भी अपराधी हो, बचेगा नहीं। जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी कठुआ कांड के मामले में जल्द न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के लिए राज्य के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा है। मुख्यमंत्री चाहती हैं कि इस मामले की नियमित सुनवाई हो और दोषियों को जल्द दंड दिया जाए। दरअसल ऐसा दुष्कर्म के सभी मामलों में होना चाहिए।

दुष्कर्मियों को मौत की सजा

महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा है कि 12 वर्ष से कम आयु की बच्चियों से दुष्कर्म के अपराधियों को मौत की सजा दी जा सके, इसके लिए संबंधित कानून में संशोधन किया जाएगा। अगर यह काम हो भी जाए तो भी जब तक पुलिस और जांच एजेंसियों का काम-काज नहीं सुधरता तब तक कुछ ठोस शायद ही हासिल हो। आखिर हम यह कैसे भूल सकते हैं कि हरियाणा में एक स्कूल के छात्र की हत्या में पुलिस ने किस तरह स्कूली बस के एक कर्मचारी को हत्यारा बता दिया था और यह दावा किया था कि उसे पर्याप्त प्रमाण भी मिल गए हैं।

निष्पक्ष जांच की मांग

गनीमत रही कि मामले की जांच सीबीआइ ने की और उस गरीब की जान बची। कुछ इसी तरह का एक मामला पंजाब में देखने को मिला। फिल्लौर में एक संदिग्ध अपराधी से नशे का धंधा कबूल करवाने के लिए उसके मुंह में तेजाब डाल दिया गया। दरअसल यक्ष प्रश्न यही है कि क्या हम निष्पक्ष जांच की व्यवस्था कर पाएंगे? कहीं बेकसूर और कमजोर लोगों के गले में ही तो फांसी का फंदा नहीं डाल दिया जाएगा? क्या कोई सरकार, समाज सुधारक, विचारक इस बारे में सोचेगा कि समाज में अंधवासना की प्रवृत्ति क्यों बढ़ती जा रही है? जिस देश में साबुन की एक टिकिया बेचने के लिए भी अर्धनग्न लड़कियों का प्रदर्शन किया जाए और अन्य विलासी चीजों को बेचने के लिए कामुकता की आग में घी डालने वाले विज्ञापन प्रचारित-प्रसारित किए जाएं तथा मादक पदार्थो की खुलेआम बिक्री पर रोक लगाने के उपाय न किए जाएं वहां क्या महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर लगाम लग सकती है? क्या ऐसे देश में महिलाओं को आदर से देखा जा सकता है? यह भी ध्यान रहे कि नैतिक शिक्षा को हाशिये पर ठेला जा रहा है और यहां तक कि स्कूली पाठ्यक्रमों से महापुरुषों के जीवन चरित्र गायब हो रहे हैं।

समाज को सुधारने की जरूरत

आखिर हम समाज को चरित्रवान और नैतिक बनाने के लिए कुछ क्यों नहीं करना चाहते? आज की जरूरत नेताओं के पंजे से पुलिस को मुक्त करके स्वतंत्र कार्य का अवसर देना तो है ही, भावी पीढ़ी को नैतिक शिक्षा से लैस करने की भी है। अच्छा हो कि हमारे शिक्षाशास्त्री, हमारे धर्म गुरु, हमारे समाज सुधारक अपने घरों-दफ्तरों से बाहर निकलें और समाज को सुधारने का काम अपने हाथ में लें। और भी अच्छा तो यह होगा कि हमारे धर्मगुरु कुछ समय के लिए मोक्ष-मुक्ति का रास्ता बताने के स्थान पर लोगों को यह बताएं कि समाज सदाचारी कैसे बने? वे लोगों को समझाएं कि स्वस्थ समाज कैसे बनता है? हमें यह भी समझना होगा कि दुष्कर्म जैसे अपराधों पर लगाम लगाने का काम केवल कानूनों को कठोर बनाते जाने से नहीं होने वाला। आखिर यह एक तथ्य है कि निर्भया प्रकरण के बाद महिला अपराध संबंधी कई कानून कठोर किए गए, लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि उसके बाद से महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लगी है?

[ लेखिका पंजाब सरकार की पूर्व मंत्री हैं ]