[ उपेंद्र सिंह ]: यह अर्धरात्रि में उस वक्त का वाकया है जब गहरी निद्रा की अवस्था से यकायक उठकर मैं बिस्तर पर ही बैठ गया। असल में यह खर्राटों की थरथराती आवाज थी जो रात में किसी किसी जंगल के शेर के मानिंद थरथराने के लिए काफी थी। घुप्प अंधेरे में आंखें फाड़-फाड़कर देखने के बावजूद कमरे में कुछ नजर नहीं आ रहा था। कांपते हाथों से जब बिस्तर के सिरहाने लगे स्विच को दबाया तो भक्क से चीख की आवाज के साथ बल्ब अपने प्राण त्याग चुका था। अब तो मेरी घिघ्घी ही बंध गई। ऐसा अनिष्ट? अपने खर्राटों को लानत देते हुए सोचा, इससे भला तो सोया ही रहता, कम से कम अपने ही घर में इस भुतहे बियावान का सामना तो नहीं करना पड़ता।

अब बारी थी मेरे नेत्रों के सिनेपटल पर चल रहे स्वप्न को याद करने की। अवश्य कोई भयानक सपना देखा होगा, परंतु तभी स्वप्न पर शोध कर चुके एक पश्चिमी विद्वान का ‘इति सिद्धम’ निष्कर्ष याद आया कि खर्राटे सिर्फ और सिर्फ गहरी नींद में ही आते हैं। अमूमन ऐसा माना जाता है कि खर्राटे मनुष्य बहुत गहरी नींद में ही लेता है और गहरी नींद में उनींदे होने की संभावना कम होती है यानी उनींदी आंखों से हल्के-फुल्के सपने नहीं देखे जा सकते। प्रगाढ़ निद्रा में एक सब्सटेंस यानी कुछ ठोस होता है जिसके मायने हैं कि सुंदर, सलोना मदहोश कर देने वाला स्वर्गिक अनुभव।

कुछ लोग मुझे यह कहकर डरा चुके हैैं कि कई बार दंपतियों के बिछोह में इस अदना से लगने वाले रोग का सक्रिय हाथ देखा गया है। सच मानिए कि इन दिनों मैं अपनी पत्नी के प्रति कुछ ज्यादा ही विनम्र हो गया हूं, क्योंकि मेरे खर्राटों से परेशान उसने कई बार अर्धरात्रि में मुझे झंझोड़ते हुए उठाया है। और संभवत: मेरी इस बेचारगी के पीछे मेरे वैचारिक अवचेतन में तलाक तक पहुंचे ऐसे खुर्राट खर्राटों का ही प्रताप है।

खर्राटे कौन नहीं लेता? मैंने अपने मन को समझाया ताकि मैं अपनी हीन भावना पर कुछ काबू पा सकूं। मैंने मवेशियों, जानवरों से लेकर मानव शिशुओं तक को इस बाहुबली के सामने बेबस देखा है। हां यह और बात है कि एक आदमी खर्राटे लेते हुए जितना वीभत्स दिखाई देता है, एक शिशु इस अवस्था में अप्रतिम रूप से उतना ही प्यारा लगता है।

बताने वाले बताते हैं कि रामायण के अमर पात्र कुंभकरण की नींद और उसके खर्राटों से लंका के अनेक स्वनामधन्य निशाचरों की नींद उड़ी रहती थी। रावण के कई सलाहकारों का मत था कि यदि कुंभकरण को युद्ध के लिए जगाया न जाता तो वानर सेना उसके खर्राटों से भयाक्रांत होकर लंका में घुसने का साहस ही न जुटा पाती।

कुछ बरस पहले हमने भी एक श्वान को इस गरज से पाला था कि रात में चोरों से निश्चिंत होकर हम अपनी नींदें पूरी कर सकेंगे। मगर हमारे लाड़-प्यार ने उस चौपाये को इतना मदमस्त बना दिया कि साहब दिया बाती होते ही नींद के आगोश में चले जाते और उनके लापरवाह खर्राटों से उल्टे हम सब जनों की नींदें उड़ी रहती थीं। मैंने अपने गहन शोध से पाया कि खर्राटे प्राणिमात्र के बीच बराबरी का संदेश देने के साथ ही धर्मनिरपेक्ष भी होते हैैं और उनकी कोई जात-पांत नहीं होती। वे तो बहुजन हिताय को समर्पित हैैं। हां, उनके कारण कई बार नींद के ‘लॉ एंड आर्डर’ को बिगड़ते हुए अवश्य देखा गया है।

विश्व इतिहास में अनगिनत घटनाएं दर्ज हैं जहां खर्राटों ने मारपीट, हिंसा तक को अंजाम दिया है। खर्राटे आरामतलब भी नहीं होते। मीठी नींद को तरस रहे एक थके हारे हुए प्राणी को जहां सुभीता मिला, वह बेचारा वहीं लेट गया। ऐसे में खर्राटे सोने वाले की पात्रता के अनुसार अनुकूल वातावरण पाते ही उसकी छाती पर चढ़ उसके नथुनों को ब्लॉक कर देते हैं। इस प्रकार से देखा जाए तो खर्राटों को अपना मकसद पूरा करने में काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। परंतु आखिरकार इस कड़ी मशक्कत के बाद विजयश्री उनका ही वरण करती है।

बहरहाल, अब मैं अपनी उस रात का अधूरा किस्सा पूरा करूं। स्विच दबाते ही बल्ब तो शहीदों में अपना नाम दर्ज करा चुका था। सो थरथराते हुए पांव धरती पर टिकाते ही कुछ राहत मिली। उधड़े फर्श ने बता दिया था कि मैं अपने ही घर में हूं। नींद कुछ ज्यादा ही गहरी लग गई थी। पांवों पर जोर डाला ही था कि गुर्र-घुर्र की आवाज ने मेरे कानों को भेदा। दिल की धड़कन भी गीयर बदलकर तेज दौड़ने लगी। ऐसा लगा कि कोई मेरे पास ही फुंफकार रहा है। घबराहट में सांसे भी ऐसे भारी होने लगीं कि मानो उन्हें किसी फ्लाइओवर पर चढ़ना पड़ रहा हो। पलंग से तुरंत उतरने का साहस नहीं हुआ तो आधे घंटे बिस्तर पर ही पैर लटकाए बैठा रहा। कुछ पौ फटी और उजाला कमरे में नमूदार हुआ तो देखा हमारा अपना टॉमी मुस्कराते हुए खर्राटे ले रहा था। उसके फड़फड़ाते हुए नथुनों की गूंज ने मुझे यह सोचने पर विवश कर दिया कि सचमुच मेरी नींद मेरे अपने खर्राटों से टूटी थी या टॉमी के। अब यह एक नई जांच का विषय है।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]