[ डॉ. सुरजीत सिंह गांधी ] : कोरोना महामारी के बीच मानसून के इस मौसम में कहीं बादल फट रहे हैं, कहीं भूस्खलन हो रहा है तो कहीं शहर के शहर जलमग्न हो रहे हैं। बाढ़ तो इस देश की विशेषताओं में शामिल हो गई है। जलभराव की समस्या पहले गांवों तक ही सीमित थी, जिसने अब शहरों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। आज उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक लगभग प्रत्येक राज्य के शहर जलभराव की समस्या से जूझ रहे हैं। देश के विकसित शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, गुड़गांव, पटना, कानपुर, अंबाला, लुधियाना, अहमदाबाद, सूरत, कोलकाता आदि कुछ घंटों की बारिश से लबालब हो जाते हैं, जिससे जान के साथ माल का भी नुकसान होता है।

शहरीकरण एवं मानवजनित कारणों ने जलभराव की समस्या को बढ़ा दिया

शहरीकरण एवं मानवजनित कारणों ने इस समस्या को और अधिक बढ़ा दिया है। दिल्ली, मुंबई जैसे शहर भी असहाय से नजर आ रहे हैं। अफसोस कि इस समस्या का अभी तक कोई ठोस उपाय नहीं खोजा गया है। ऐसे में सरकार की प्रबंधन व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। जलभराव की समस्या से निपटने के लिए सरकारों द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। इसके बावजूद यह समस्या प्रतिवर्ष और अधिक गंभीर होती जा रही है। यद्यपि यह आकस्मिक समस्या नहीं है, परंतु इसके बावजूद सरकारें और उनके प्रशासन द्वारा इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया गया है। इस समस्या के निदान के लिए दीर्घकालीन ठोस नीति आज की पहली आवश्यकता है।

शहरों के विकास की प्रक्रिया में वर्षा जलनिकासी के ठोस तरीकों पर कार्य नहीं हो पा रहा है

बारिश के मौसम में लगभग प्रतिवर्ष होने वाला जलभराव शहरी नियोजन एवं शहरी रखरखाव में कमी को ही उजागर कर रहा है। पूरे देश में तेज गति से हो रहे शहरों के विकास की प्रक्रिया में कहीं भी वर्षा जलनिकासी के ठोस तरीकों पर कार्य नहीं हो पा रहा है। इसके कारण यह समस्या और गंभीर होती जा रही है। प्रशासनिक उदासीनता के कारण नगरों का ड्रेनेज सिस्टम अप्रभावी होता जा रहा है। शहर गांवों की तरफ बढ़ रहे हैं, लेकिन किसी नगरपालिका एवं नगर निगम के पास शायद ही इससे संबंधित डाटा होंगे कि शहरों में प्रतिवर्ष कितनी जनसंख्या बढ़ रही है एवं उसके लिए उन्होंने क्या तैयारी की है?

हर बड़े शहर में निचले इलाकों में कॉलोनियों को बढ़ावा मिल रहा है, जलनिकासी के ठोस उपाय नहीं

हर बड़े शहर में विकास प्राधिकरण एवं प्लानिंग बोर्ड होने के बावजूद निचले इलाकों में कॉलोनियों को बढ़ावा मिल रहा है। इसके परिणामस्वरूप न सिर्फ नालियों का अतिक्रमण हो रहा है, बल्कि नदियों-नालों का प्राकृतिक बहाव भी संकरा और बाधित होता जा रहा है जिससे बारिश के दिनों में इन निचले इलाकों में पानी भर जाता है। जलभराव की सबसे विकट समस्या नवविकसित कॉलोनियों में है जहां खेतों में प्लॉटिंग करके कॉलोनियां काटी गई हैं, परंतु जलनिकासी का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है। पॉलिथीन, मलबा और अन्य ठोस कचरे से नालियों के जाम हो जाने के कारण सड़कों पर पानी लंबे समय तक भरा रहता है तो कहीं नालियों के ढाल ठीक न होने की वजह से भी जलभराव होता है। इन परिस्थितियों में यह महत्वपूर्ण प्रश्न है कि आखिर इस समस्या का हल क्या है?

शहरों में जलभराव की समस्या की रोकथाम के लिए ढांचागत सुधारों की आवश्यकता

शहरों में जलभराव की समस्या की रोकथाम के लिए अनेक ढांचागत सुधारों की आवश्यकता है। यदि सुनियोजित तरीके एवं गंभीरता से काम किया जाए तो इस समस्या से उबरा जा सकता है। सरकारें और उत्तरदायी एजेंसियों को उदासीनता की चादर से बाहर निकलकर सबसे पहले उन क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा जहां मूल संरचना में हम अधिक परिवर्तन नहीं कर सकते। ऐसे क्षेत्रों में सीवर और सीवेज शोधन संयंत्रों पर अधिक फोकस करना होगा। जलभराव वाले क्षेत्रों की पहचानकर उस क्षेत्र विशेष के नाले एवं नालियों की सफाई, कचरे को निकालना, सीवरेज व्यवस्था को सुधारना, नालों के अतिक्रमण को हटाना आदि कार्य मानसून शुरू होने से पहले ही कर लिए जाने चाहिए।

शहरों की प्राकृतिक जलनिकासी तंत्र पर अतिक्रमण नहीं होना चाहिए

चिन्हित जलभराव वाले क्षेत्र विशेष के लिए एक नोडल अधिकारी बनाया जाना चाहिए और उसे इसके लिए जिम्मेदार भी बनाया जाना चाहिए। मौजूदा जलनिकासी के मार्ग ही ठीक नहीं होने चाहिए, बल्कि शहरों की प्राकृतिक जलनिकासी तंत्र पर भी अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। शहरों की जलनिकासी प्रणाली की पुरानी व्यवस्था में सुधार कर, आधुनिक मॉडल के साथ तालमेल बिठाकर, नए एवं पुराने मार्गों को आपस में जोड़कर, सीवर एवं पानी के अलग-अलग निकासी मार्ग बनाकर जलभराव की इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। इससे बरसात के पानी की भी तुरंत निकासी हो सकेगी।

निर्माण कार्यों से शहर के प्राकृतिक जलनिकासी मार्ग बाधित नहीं होने चाहिए

लगातार होने वाले निर्माण कार्यों जैसे पुलों, उपरिमार्गों, मेट्रो परियोजनाओं आदि की शहरी प्राधिकारण द्वारा इस बात की जांच भी की जानी चाहिए कि ये शहर के प्राकृतिक जलनिकासी मार्गों को तो बाधित नहीं कर रहे हैं?

नए घरों, कॉलोनियों, सोसायटियों में वॉटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिए

शहरों में बनने वाले नए घरों, कॉलोनियों, सोसायटियों आदि में वॉटर हार्वेस्टिंग की अनिवार्य व्यवस्था होनी चाहिए। इससे न सिर्फ जलभराव की समस्या से निजात मिलेगी, बल्कि बारिश के पानी का संचय होने से भूमि के जल स्तर में भी वृद्धि होगी।

शहरों में जलभराव की समस्या से छुटकारा दिलवाने में स्मार्ट शहर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं

शहरों में जलभराव की समस्या से छुटकारा दिलवाने में स्मार्ट शहर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। एक ऐसा शहर ही स्मार्ट शहर होगा जहां हरियाली होगी एवं ठोस कचरा प्रबंधन सहित स्वच्छता की समुचित व्यवस्था होगी, जिसका विकास चार स्तंभों संस्थागत, भौतिक, सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना पर आधारित होगा।

पीएम मोदी की स्मार्ट शहर बनाने की साहसिक पहल से जलभराव की समस्या से मिलेगी मुक्ति

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस साहसिक पहल की शुरुआत 2015 में की गई थी। इसके अंतर्गत पहले चरण में 2015 से 2020 तक 59 शहरों को स्मार्ट शहर बनाया जाना था, परंतु इस क्षेत्र में मात्र 30 प्रतिशत ही कार्य पूर्ण हो सका है। यदि इन शहरों में कार्य की गति को तेज कर उसे जल्द से जल्द पूरा कर लिया जाए तो काफी हद तक जलभराव की समस्या से मुक्ति मिलेगी। शर्त बस इतनी सी है कि इस संबंध में प्रयास गंभीरता से होने चाहिए।

( लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं )