[ संतोष त्रिवेदी ]: चित्रगुप्त बहुत चिंतित नजर आ रहे थे। बार-बार बहीखाता झांक रहे थे। उनके चेहरे पर ‘मंदी’ का असर दिख रहा था। भारतवर्ष की सड़कों से आत्माओं की आवक अचानक कम हो गई थी। ‘अभी तक सबसे अधिक आपूर्ति वहीं से हो रही थी। आदमी सड़क पर नहीं मरेंगे तो यमलोक का ‘टारगेट’ कैसे पूरा होगा?’ चित्रगुप्त मन ही मन बड़बड़ा रहे थे कि तभी यमराज प्रकट हुए। ‘क्या बात है चित्रगुप्त? पृथ्वीलोक की कोई आत्मा कष्ट दे रही है क्या?’ यमराज ने पूछा। ‘नहीं प्रभु! चिंता की बात है कि हमारे यहां भी मंदी छाने का अंदेशा है। भारत ने हमें सहयोग देना बंद कर दिया है। यही सब चलता रहा तो हमारी व्यवस्था चौपट हो जाएगी। काम न मिलने की वजह से यमदूतों में असंतोष बढ़ रहा है।’ चित्रगुप्त ने चिंता जाहिर की।

आर्थिक मंदी छाने का अंदेशा

यह सुनकर यमराज हैरत में पड़ गए। कहने लगे, ‘हमारे प्रयासों में कहां कमी रह गई? अगर ऐसा है तो बेहद चिंताजनक है। पहले तुम प्रोत्साहन का एलान करो, फिर मृत्युलोक में एक वरिष्ठ यमदूत भेजकर इस क्षति का वास्तविक कारण पता लगाओ।’ चित्रगुप्त ने तुरंत वरिष्ठ यमदूत को तलब किया। यमदूत पर्याप्त वरिष्ठ था। आते ही चित्रगुप्त ने उसे काम सौंप दिया। उसने केवल एक शर्त रखी कि वह ‘मिशन’ पर एक सहायक के साथ जाएगा। इससे उसका मन लगा रहेगा और उसे लगातार वरिष्ठता का अहसास भी होता रहेगा। चित्रगुप्त ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उन्होंने एक उभरते हुए दूत को उनके साथ भेज दिया।

हम सरकार को रोजगार नहीं छीनने देंगे

अगले पल दोनों भारत की राजधानी में थे। सड़क पर ही पंचायत लगी थी। रफ्तार के सभी खिलाड़ी वहां मौजूद थे। माहौल बड़ा गर्म था। बुज़ुर्ग ट्रक की अपील जबरदस्त थी। वह जोर से भरभराने लगा,‘हम सड़क के राजा हैं। जब हम ओवरलोड होते हैं, तभी हमारा और हमारे मालिक का ‘मौसम’ बनता है। सड़क रौंदने के बाद ही हम में दम आता है। इससे पीडब्ल्यूडी वालों को भी काम मिलता है। फिर भी सरकार हम पर जुर्माना ठोंक रही है। ठोंकने का काम तो हमारा है भाइयों-बहनों! हम सरकार को रोजगार नहीं छीनने देंगे।’

मोबाइल देखने तक की मनाही

ऐसा संदेश पाकर भीड़ में जान आ गई। इससे दूसरों की जान लेने का जज्बा और मजबूत हो गया। पंचायत में मौजूद रंगीनमिजाज ट्रैक्टर से रहा नहीं गया। अपनी ट्राली की ओर देखते हुए वह बोला, ‘जुताई-बुआई में वह रोमांच कहां। इसलिए हम सड़कों पर निकलते हैैं। यह भी इस सरकार से सहन नहीं हो रहा।’ इतना सुनते ही चारों ओर से हूटर बजने शुरू हो गए। इसी शोर में नए मॉडल की कार ने एक्सिलरेटर लहराते हुए कहा, ‘हमें मोबाइल देखने तक की मनाही है। चैटिंग और स्टेटस अपडेट करते हुए क्या-क्या कट जाता था। अब चालान कट रहा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था की चाल तो बिगड़ेगी ही। मंदी का ठीकरा हम पर क्यों? फुटपाथ को हमने पहले ही पार्किंग बना डाला। आखिर सरकार और कितना सैक्रिफाइस चाहती है हमसे?’

मौत का साफा बांधकर चलते हैं तो हेलमेट क्यों पहनें?

यह सुनकर पास में खड़ी युवा बाइक धड़धड़ाने लगी-‘हम मरजीवड़े हैं। मौत का साफा बांधकर चलते हैं तो हेलमेट क्यों पहनें? सड़क पर भी नियम मानेंगे तो हो गया लोकतंत्र का भला! चारों तरफ मंदी का राग गाया जा रहा है, पर असली वजह हम बताते हैं। हेलमेट बांधने के बाद क्या फटफटिया, क्या हवाई बाइक, कोई फर्क ही नहीं दिखता। जब मुंह ही नहीं कोई देखेगा तो फिर कोई लाखों रुपये हम पर क्यों खर्च करे? दो पैसे की फटफटिया न ले ले!’ यह सुनते ही स्कूटी ने इस बात को सीधे दिल पर ले लिया। बोल उठी, ‘दिखने में भले दुबली-पतली हूं, एवरेज के मामले में टॉप पर हूं। स्ट्राइक रेट तुमसे थोड़ा ही कम है। और हां, दस-बारह साल के बच्चे हमें ही पसंद करते हैं।’

‘जुर्माना रोको’ आंदोलन के पक्ष में माहौल

माहौल देखकर दूर खड़ी साइकिल ने भी बोलना चाहा। कार ने उसे तुरंत हड़क दिया, ‘तुम्हारे बिकने न बिकने से अर्थव्यवस्था पर असर नहीं पड़ता। तुम राजधानी की सड़क के बाहर ही रहो।’ इस बीच खबर आई कि ‘जुर्माना रोको’ आंदोलन के पक्ष में माहौल बन रहा है। यह समाचार पाते ही यमलोक से आए दोनों दूत अंतर्धान हो गए। उन्होंने यमलोक पहुंचते ही चित्रगुप्त के कान में यह खुशखबरी उड़ेल दी। ‘हमें अब कुछ करने की जरूरत नहीं है। पहले की ही तरह सड़क पर हताहत होने के लिए सब में सहमति बनती दिख रही है।’

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]