राजीव सचान : शिवसेना सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) सदैव चर्चा में रहते आए हैं। पहले वह अपने बेतुके बयानों के कारण चर्चा में रहते थे। अब इसलिए चर्चा में हैं, क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने पत्रा चाल घोटाले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। वह उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ प्रवीण राउत के भी करीबी माने जाते हैं। प्रवीण राउत कौन? यह थोड़ा आगे जानेंगे। ईडी का आरोप है कि पत्रा चाल (Patra Chawl) घोटाले को अंजाम देने वालों ने संजय राउत और उनकी पत्नी के खाते में एक करोड़ से अधिक की राशि भेजी। जहां सैकड़ों करोड़ रुपये के घोटाले होते रहते हों, वहां एक करोड़ की रकम कोई बड़ी राशि नहीं, लेकिन पत्रा चाल घोटाला कोई छोटा-मोटा घपला नहीं है। यह एक हजार करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला है।

इस घोटाले की नींव पड़ी थी 2008 में। मुंबई में 47 एकड़ में बनी पत्रा चाल में रहने वाले 672 लोगों को महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथारिटी यानी म्हाडा ने यह प्रस्ताव दिया कि वे अपने ठिकाने खाली कर दें तो उन्हें नए फ्लैट बनाकर दिए जाएंगे और जब तक फ्लैट नहीं बनते, तब तक उन्हें दूसरी जगह रहने का किराया दिया जाएगा। एक अनुबंध के तहत म्हाडा ने 47 एकड़ जमीन गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन कंपनी को सौंप दी कि वह 672 फ्लैट बनाने के साथ 3000 फ्लैट बनाकर उसे दे और शेष जमीन का अपने हिसाब से उपयोग करे। प्रवीण राउत इसी कंस्ट्रक्शन कंपनी के निदेशक हैं।

इस कंपनी ने 2014 तक चाल खाली करने वालों को किराया दिया। इसके बाद किराया देना भी बंद कर दिया और 47 एकड़ जमीन पर फ्लैट बनाना भी। इस कंपनी ने यह जमीन आठ बिल्डरों को बेच दी। म्हाडा की नींद 2018 में टूटी और उसने गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन कंपनी के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई। यह कंपनी उस हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की सहायक कंपनी है, जो पंजाब एंड महाराष्ट्र कोआपरेटिव बैंक घोटाले में शामिल है, जो हजारों करोड़ रुपये का है। साफ है कि संजय राउत एक बड़े घोटाले की छोटी सी कड़ी हैं। इसी तरह की एक छोटी कड़ी अर्पिता मुखर्जी हैं, जिन्हें ममता सरकार के वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी के साथ भर्ती घोटाले में गिरफ्तार किया गया है।

अर्पिता मुखर्जी के दो फ्लैटों से करीब 50 करोड़ नकद और कीमती गहनों के साथ जमीन-जायदाद के तमाम दस्तावेज मिले हैं। फिलहाल यह कहना कठिन है कि गिरफ्तारी के बाद मंत्री पद गंवाने वाले पार्थ चटर्जी ने ममता सरकार के पिछले कार्यकाल में बतौर शिक्षा मंत्री कितने करोड़ रुपये का घोटाला किया। हैरानी नहीं कि उनके हाथों अंजाम दिया गया घोटाला सैकड़ों करोड़ रुपये का निकले। वैसे भी फिलहाल उनके एवं अर्पिता के नाम वाली संपत्तियों और खासकर फ्लैट, रिसार्ट, फार्महाउस आदि की गिनती करना मुश्किल है। अभी यह कहना कठिन है कि पार्थ चटर्जी ने अपने नए कार्यकाल में वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रूप में घोटाला करना बंद कर दिया था या नहीं, लेकिन जो आसानी से कहा जा सकता है, वह यह कि उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में जो कारनामा अंजाम दिया, उसमें शिक्षा विभाग के अधिकारी भी शामिल थे। बिना उनकी मिलीभगत के घोटाला हो ही नहीं सकता था।

जब तक कोई प्रमाण सामने न आए, तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि ममता बनर्जी अपने करीबी मंत्री पार्थ चटर्जी की कारगुजारियों से अवगत थीं, लेकिन इस पर यकीन करना भी कठिन है कि उन्हें कुछ भी पता नहीं था। यह कठिन इसलिए है, क्योंकि जब इस घोटाले के शिकार अभ्यर्थी धरना-प्रदर्शन कर रहे थे, तब ममता बनर्जी ने उनसे मिलकर यह भरोसा दिया था कि वह इस मामले की जांच कराएंगी। यह 2019 के आम चुनाव के पहले की बात है। बंगाल में शिक्षकों की भर्ती में घोटाला हुआ है, यह उसी दिन साबित हो गया था, जब चयनित अभ्यर्थियों की सूची अचानक बदल दी गई थी, लेकिन उस पर तब तक लीपापोती की जाती रही, जब तक पीडि़त अभ्यर्थियों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया। उच्च न्यायालय ने सीबीआइ जांच के आदेश दिए। सीबीआइ की जांच में ईडी को भी दखल देना पड़ा, क्योंकि उसे ऐसे संकेत मिले कि काले धन को सफेद करने की कोशिश हो रही है।

जैसे अभी ममता बनर्जी के करीबी पार्थ और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर नोटों के ढेर देखकर देश दंग रह गया, वैसे ही कुछ दिनों पहले लोग तब भी हैरान हो गए थे, जब झारखंड की खनन सचिव पूजा सिंघल के करीबी और उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट सुमन कुमार के यहां से ईडी ने करीब 19 करोड़ रुपये नकद पाए थे। जब नेताओं और नौकरशाहों के करीबियों का यह हाल है तो इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि देश में कितने बड़े पैमाने पर लूट हो रही होगी।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि संदिग्ध भ्रष्ट तत्व सीबीआइ, ईडी आदि की गिरफ्त में आ रहे हैं, क्योंकि न जाने कितने भ्रष्ट तत्व ऐसे होंगे, जिनकी लूट-खसोट बिना किसी रोक-टोक जारी होगी। वास्तव में यह तब तक जारी रहेगी, जब नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की कोई ठोस पहल नहीं होती। यह अफसोस की बात है कि आठ साल बीत गए, लेकिन मोदी सरकार ने प्रशासनिक सुधारों की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए। नि:संदेह घोटालेबाजों के खिलाफ कार्रवाई जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है ऐसी व्यवस्था बनाना जिससे घोटाले होने ही न पाएं। चूंकि ऐसी व्यवस्था नहीं है इसलिए लूट सको तो लूट वाला माहौल है।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)