जीवन-निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त अधिक का अपने लिए उपयोग न करने की दृष्टि सरलता की प्रेरणा-आधार है। अपव्यय, श्रृंगार से बचना और मितव्ययता सादगी है। प्रदर्शन में समय और धन नष्ट होता है और इससे आपके व्यक्तित्व में चार चांद नहीं लगते। धरती के देवता वे हैं, जो अपने अनुकरणीय आचरण से दूसरों में सादगी की प्रेरणा भरते हैं। महाकवि माघ हृदय की उदारता के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी दयनीय आर्थिक स्थिति में एक रात उनके घर आकर एक याचक ने बताया कि मेरी कन्या का विवाह है। मेरे पास कुछ भी नहीं है। आपकी ख्याति सुनकर आया हूं। कुछ सहायता मिल जाने पर काम हो जाएगा। कवि-हृदय भर आया। घर में देने को कुछ न था। पास सो रही पत्नी के शरीर पर दृष्टि गई। धीरे-धीरे एक कंगन उतारा और अतिथि को देते हुए बोले कि इस समय अधिक के लिए विवश हूं, जो कुछ है स्वीकार कीजिए। पत्नी की आंख खुली। वस्तुस्थिति समझकर मंद मुस्कराहट के साथ वह बोलीं कि विवाह जैसा कार्य एक कंगन में कैसे हो सकेगा। दूसरा कंगन उतारकर देने पर माघ पुलकित हो उठे। स्वाध्याय सरलता बढ़ाता है। एक अमेरिकी विद्वान का कथन है कि मैं बिना खाए और नहाए रह सकता हूं, पर पुस्तकें पढ़े बगैर चैन नहीं पा सकता। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की मां ने उनमें सादगी और अच्छे संस्कारों की नींव डाली। जन्म देने वाली ऐसी माताओं की गोद और नाम धन्य करने वाली संतानें संघर्ष में तपकर इतिहास रचती हैं।
जटिलता पार करते ही सरलता आती है। व्यक्ति के आचरण की जांच उसके कलह के समय व्यवहार से होती है। जीवन में वेदना है, पर संवेदना नहीं। बुद्धि है, सद्बुद्धि नहीं। चित्र है, पर चरित्र नहीं। संसार है, पर संस्कार नहीं। मनुष्य आकृति है, पर प्रकृति नहीं। व्यक्ति है, पर व्यक्तित्व नहीं। जो अपनी गलती सुधार कर प्रायश्चित करता है, वह साधु है। जो गलती मानकर खेद जताता है, वह सज्जन है। जो हठ करता है, वह अच्छा इंसान नहीं है और जो सही-गलत में गलत को सही कहता है और सही को गलत कहता है, वह भी नेक इंसान नहीं है। एक व्यक्ति ने कहा कि मैंने क्रोध को जीत लिया है। असल में उसने क्रोध को नहीं जीता, बल्कि अपनी एक कमी पर विजय प्राप्त की।
[ डॉ. हरिप्रसाद दुबे ]