मध्य प्रदेश [आशीष व्यास]। श्रीराम जन्मभूमि विवाद अभी सुलझा ही है कि पड़ोसी देश नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अयोध्या व राम पर टिप्पणी कर नया बखेड़ा खड़ा करने की असफल कोशिश की है। इस कुतर्क के साथ कि 'असली अयोध्या नेपाल में बीरगंज के पास है, जहां भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था।'

मध्य प्रदेश का इस विवाद से कोई सीधा संबंध तो नहीं है, लेकिन इसी बहाने प्रदेश के हिस्से में आई श्रीराम की सांस्कृतिक विरासत को तलाशने-तराशने का दायित्व तो निभाया ही जा सकता है। ग्रंथों, तथ्यों, मान्यताओं के आधार पर जो प्रमाण मिलता है, उस आधार पर दावे से कहा जा सकता है कि श्रीराम ने वनवास के चौदह में से साढ़े ग्यारह साल वर्तमान मध्य प्रदेश में व्यतीत किए थे।

इतना लंबा समय यहां बिताने के प्रमाण मिलने के बाद भी, मध्य प्रदेश ने कभी कोई एकल दावेदारी नहीं की और न ही प्रचार-प्रसार के जरिये उसे भुनाने का प्रयास किया। यह भी मानना ही होगा कि प्रदेश में राम वन गमन पथ, भाजपा-कांग्रेस के लिए बड़ा राजनीतिक मुद्दा होने के बावजूद, दोनों दलों ने बहुत धैर्य रखा। 

केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से ही इस महत्वपूर्ण कार्य को, प्रामाणिकता के साथ आगे बढ़ाने का प्रयत्न भी किया। जबकि इस वजह से वे जनता को किए गए वादे को पूरा न करने के लिए, चुनाव के दौरान बारी-बारी से कठघरे में भी खड़े हो गए। राज्यों के समन्वय से सरकारी फाइलों में यह महत्वाकांक्षी परियोजना भले ही देरी से पूरी हो, लेकिन जनता-जनप्रतिनिधि इन्हें संरक्षित कर अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभा ही सकते हैं। 

पिछले 49 वर्षों से राम वन गमन पथ के प्रमाण जुटा रहे और रामायण सर्किट के लिए बनी राष्ट्रीय कमेटी के अध्यक्ष डॉ. राम अवतार अयोध्या से जनकपुर और रामेश्वरम तक कई बार भ्रमण कर चुके हैं। इस मार्ग पर उन्होंने 290 स्थान और स्मारक चिन्हित किए हैं। इसमें से मध्य प्रदेश 'विभाजित एवं अविभाजित' के पड़ाव को लेकर उनका अनुभव अन्य शोधार्थियों से बिल्कुल अलग है।

वे बताते हैं, 'संभवत: लोग मेरे मत से सहमत नहीं हों, लेकिन मेरी गणना के अनुसार श्रीराम मध्य प्रदेश दो बार आए थे। यही उनकी कर्मभूमि भी थी और प्रतिज्ञा भूमि भी। वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास, दोनों की रामायण में लिखी चौपाइयों से मिलान करें तो वनवास के दौरान चार साल का विस्तार से उल्लेख मिलता है। बाकी दस साल को वाल्मीकि ने चार श्लोक और तुलसीदास ने आधी चौपाई में बता दिया है। वनवास के दौरान सीता-राम जहां-जहां रुके, उनमें से कुछ स्थानों व आश्रमों में वे दोबारा लौटे थे।'

रामायण सरकिट में चिन्हित राम वन गमन पथ सतना, पन्ना, मैहर, कटनी, पिपरिया, होशंगाबाद, उमरिया, बांधवगढ़, शहडोल, अनुपपुर जिले से होकर गुजरता है। इस मार्ग के बीच में ही वे नासिक गए और वहां से लौटकर फिर शहडोल होते हुए कोरिया (वर्तमान में छत्तीसगढ़) में प्रवेश किया। चित्रकूट में फटिक शीला व गुप्त गोदावरी से जुड़े संस्मरण मिलते हैं। 

सतना में सरभंगा, अत्रीमुनि, अश्वमुनि, सुतीक्षण आश्रम, सीता रसोई और राम शैल पर्वत हैं। सिद्धा पहाड़ में राम ने ऋषियों की सुरक्षा के लिए प्रतिज्ञा ली थी। पन्ना के सारंगधर में वृहष्पति कुंड, बड़ा गांव में अग्निदेव आश्रम, सलेहा में अगस्त आश्रम, मैहर में राम जानकी मंदिर, कटनी में शिवमंदिर, पिपरिया में रामघाट, होशंगाबाद में श्रीराम मंदिर, पासी घाट, उमरिया में मार्कंडेय, आश्रम, बांधवगढ़ में राम मंदिर, उमरिया में दशरथ घाट होते छत्तीसगढ़ पहुंचने के प्रमाण हैं।

जबलपुर में दो बार वल्र्ड रामायण कांफ्रेंस करवा चुके और रामायण नेशनल र्सिकट के सदस्य अखिलेश गुमाश्ता का मानना है 'श्रीराम का कालखंड प्राग ऐतिहासिक काल, मतलब 25 हजार से आठ लाख साल पुराना हो सकता है। मध्य प्रदेश के पुरातत्वेत्ता पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा खोजी गई भीम बैठका की गुफाओं में भी उस काल में मानव सभ्यता के प्रमाण मिलते हैं। यह तथ्य भी श्रीराम के वन गमन पथ की पुष्टि को और सशक्त करता है। इतने पुराने कालखंडों की सत्यता का प्रमाण स्मारकों से ज्यादा लोकगीत, लोककलाएं, चित्रकारी और परंपराएं हैं।' 

श्रद्धा से जुड़ी स्मृतियां-स्मारक : 

राम वन गमन पथ के प्रामाणिक मार्ग के अलावा भी मध्य प्रदेश में राम-सीता से जुड़ी हुई कई किंवदंतियां आज भी सुनी-सुनाई जाती हैं। इन्हें भी आस्था के आधार पर ही मान्यता मिली है। जैसे मध्य प्रदेश के ओरछा में विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहां राम राजा के रूप में विराजे हैं। यहां मध्य प्रदेश पुलिस के जवान सूर्योदय और सूर्यास्त पर आज भी बंदूकों से श्रीराम को सलामी देते हैं।

ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता दी गई है। इसी तरह अशोक नगर की मुंगावली तहसील के करीला में शायद विश्व का एकमात्र सीता मंदिर है, जिसमें माता सीता, लव-कुश और ऋषि वाल्मीकि की मूर्ति है। मंदिर के पदेन सचिव यूसी मेहरा बताते हैं, 'मान्यता है कि लव और कुश का जन्म यहीं हुआ था। उस समय स्वर्ग से अप्सराएं आई थीं और उन्होंने खुशी में नृत्य किया था।'

अगली पीढ़ी को यह सांस्कृतिक धरोहर मिल सके, इसलिए उनकी अपील है कि अब जन-मन द्वारा ही इन्हें संरक्षित किया जाए। राज्य में दो चुनौतियां सबसे बड़ी हैं। इस मार्ग पर अवैध खनन और निजी फायदे के लिए गमन पथ के स्थानों में बदलाव। प्रदेश सरकार को कठोर कार्रवाई करते हुए स्थायी नीति बनानी चाहिए। (संपादक, नई दुनिया)