[ डॉ. भरत झुनझुनवाला ]: संयुक्त राष्ट्र के पूर्व उपसचिव अजय छिब्बर ने कहा है कि दूसरे देशों की तुलना में कोरोना वायरस से भारत को कम आर्थिक नुकसान होगा, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ाव कम है। यानी हम विश्व अर्थव्यवस्था से इतर भी आगे बढ़ सकते हैं। इसमें कोई संशय नहीं कि कोरोना वायरस के कारण विदेशी पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई है और यह आगे भी जारी रहनी है। हमारे निर्यात दबाव में हैं। चीन से आयात होने वाले कच्चे माल के उपलब्ध न होने के कारण देश में कार और दवाओं का उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है। हालांकि निर्माताओं का कहना है कि फिलहाल उनके पास कच्चे माल का पर्याप्त स्टॉक है। फिर भी बड़ा प्रश्न यही है कि इस समस्या का सामना हम कैसे करेंगे?

संपूर्ण विश्व अर्थव्यवस्था में लॉकडाउन

निर्यातकों-व्यापारियों की मांग है कि उन्हें सब्सिडी दी जाए जिससे वे सिकुड़ते विश्व बाजार एवं गिरते दाम के बावजूद माल का निर्यात कर सकें। मैं मानता हूं कि यह रणनीति उचित नहीं होगी। जब संपूर्ण विश्व अर्थव्यवस्था में लॉकडाउन जैसी स्थिति बन रही है और खपत में भारी गिरावट आ रही है तब सब्सिडी के जरिये निर्यात को बढ़ाने की संभावना शून्यप्राय है।

रिजर्व बैंक ब्याज दरों में और कटौती करे

दूसरा सुझाव है कि रिजर्व बैंक ब्याज दरों में और कटौती करे जिससे उद्यमी ऋण लेकर निवेश और उपभोक्ता ऋण लेकर खपत करें। पिछले कुछ अरसे से रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कई बार कटौती की है, परंतु उसका कोई खास फायदा नहीं दिखा। इसका कारण बहुत सीधा है कि जब बाजार में मांग नहीं है तब सस्ते ऋण के बावजूद कोई उद्यमी फैक्ट्री नहीं लगाएगा। बाजार में जब मांग की अधिकता होती है तभी उद्यमी उद्योग लगाता है और मुनाफा कमाकर ऋण की अदायगी करता है।

लोगों के पास रोजगार नहीं तब कर्ज चाहे कितना ही सस्ता क्यों न हो चीजें नहीं खरीदेंगे

इसी प्रकार जब लोगों के पास रोजगार नहीं तब कर्ज चाहे कितना ही सस्ता क्यों न हो, वे बाइक या फ्रिज जैसी चीजें नहीं खरीदेंगे। यहां अंकटाड की बात पर गौर करना होगा जिसने कहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था में बढ़ती असमानता के कारण बाजार में मांग गिरती जा रही है। आम आदमी के पास रोजगार नहीं है। उसके पास क्रय शक्ति ही नहीं है। ऐसे में ब्याज दर में कितनी ही कटौती की जाए उसका तनिक भी अंतर नहीं पड़ेगा।

जन स्वास्थ्य के मोर्चे पर सरकार अपने खर्च बढ़ाए

मौजूदा माहौल में तीसरा सुझाव है कि सरकार अपने खर्च बढ़ाए विशेषकर जन स्वास्थ्य के मोर्चे पर। इसमें कोई संदेह नहीं कि साफ पानी और हवा से जन स्वास्थ्य सुधरेगा और हमारे नागरिकों की कोरोना का प्रतिरोध करने की क्षमता बनी रहेगी। हालांकि ऐसे खर्च से अर्थव्यवस्था में गति लाने को लेकर संदेह है। यह क्षेत्र मुख्यत: राज्य सरकारों के अधीन है। इसलिए इसमें खर्च बढ़ाने में समय लगेगा। दूसरे क्षेत्रों में सरकारी खर्च जरूर बढ़ाया जा सकता है जैसे मनरेगा में। यहां समस्या यही है कि उस खर्च के लिए रकम जुटाने के लिए सरकार को अधिक टैक्स वसूलना पड़ेगा। फिलहाल कोरोना के कारण सरकारी राजस्व में कमी आने की आशंका है। इसलिए टैक्स बढ़ाने की गुंजाइश नहीं।

यदि सरकार ऋण लेकर खर्च बढ़ाती है तो तत्काल कुछ लाभ हो सकता है

इसके उलट यदि सरकार ऋण लेकर खर्च बढ़ाती है तो तत्काल कुछ लाभ हो सकता है, इससे कालांतर में ब्याज का भार पड़ेगा और सरकारी खर्च कम करने होंगे। ऋण लेकर खर्च करना तभी लाभप्रद है जब सरकार ऐसे क्षेत्रों में खर्च बढ़ाए जिनसे आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़े, बाजार में मांग बढ़े, सरकार का राजस्व बढ़े और बढ़े हुए राजस्व से ऋण की अदायगी की जाए। सरकार द्वारा वित्तीय घाटा बढ़ाकर खर्च बढ़ाना कोरोना वायरस का सामना करने का सही नुस्खा हो सकता है, बशर्ते खर्च की दिशा सही हो।

सरकार को देश में वस्तुओं के उत्पादन को मिशन मोड में बढ़ाना होगा

सरकार को आयात प्रतिस्थापन यानी देश में वस्तुओं के उत्पादन को मिशन मोड में बढ़ाना होगा। साथ ही भविष्य में विश्व अर्थव्यवस्था के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए उपाय भी करने होंगे, क्योंकि कोरोना जैसी आफत आगे भी आ सकती है। घरेलू उत्पादन के लिए मांग भी बढ़ानी होगी और इसके लिए आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ानी होगी। यह तभी हो सकता है जब हम अपने देश में छोटे उद्योगों को संरक्षण दें जैसा कि पहले किया भी जाता था। इससे हमारी उत्पादन लागत जरूर बढ़ेगी, लेकिन उसके दूरगामी फायदे भी होंगे। एक तो हम विश्व अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव से स्वयं को बचा सकेंगे, दूसरे इससे हमारे देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे जिससे लोगों की क्रय शक्ति भी स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी।

सरकार को सभी वस्तुओं पर आयात कर में वृद्धि कर देश में उत्पादन को प्रोत्साहन देना चाहिए

इस दिशा में सरकार को सभी वस्तुओं पर आयात कर में वृद्धि करनी चाहिए और अपने देश में उत्पादन को प्रोत्साहन देना चाहिए। इसके साथ ही अपने उद्यमियों को आधुनिक तकनीक की खरीदारी में मदद करनी चाहिए जिससे हम तकनीकी दृष्टि से पीछे न रह जाएं। जहां जरूरत हो वहां सरकार को उपयुक्त मात्रा में निर्यात सब्सिडी देनी चाहिए। आयात कर बढ़ाने से हुई अतिरिक्त आय को निर्यात सब्सिडी के रूप में दिया जा सकता है।

कोरोना के कारण सेंसेक्स में भारी गिरावट

कोरोना के कारण सेंसेक्स में भारी गिरावट आई है। इससे भयभीत नहीं होना चाहिए। पिछले दो वर्षों में जहां हमारी जीडीपी वृद्धि दर कम हुई है वहीं सेंसेक्स लगातार चढ़ता गया। इसका कारण यह रहा कि अर्थव्यवस्था कमजोर होती जा रही थी, लेकिन सिकळ्ड़ती अर्थव्यवस्था में बड़े उद्योगों का हिस्सा बढ़ता जा रहा था। बिल्कुल वैसे जैसे गांव की आय कम हो रही हो, लेकिन जमींदार की बढ़ रही हो।

अर्थव्यवस्था के संकुचन से जीडीपी विकास दर गिर रही

अर्थव्यवस्था के संकुचन से जीडीपी विकास दर गिर रही है जबकि सिकुड़ती अर्थव्यवस्था में बड़े उद्योगों का हिस्सा बढ़ने से सेंसेक्स बढ़ता रहा। हम आने वाले समय में इसके ठीक विपरीत राह बना सकते हैं कि सेंसेक्स भले ही गिरावट का रुख करे, लेकिन हमारी जीडीपी में तेजी का रुख कायम रहे। इसे हासिल करने के लिए हमें छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा। कोरोना वायरस का प्रकोप हमारे लिए यह अवसर भी प्रदान करता है कि हम अपने छोटे उद्योगों को पुन: बढ़ाएं और अपनी अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से अनायास जोड़कर खतरा मोल न लें।

( लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं )