[ रशीद किदवई ]: महाराष्ट्र में महायुति कहे जाने वाले भाजपा-शिवसेना गठबंधन की तकरार निर्णायक दौर में पहुंचती दिख रही है। महाराष्ट्र में किसकी सरकार बने, इसे लेकर जहां भाजपा में कोई संदेह नहीं है वहीं शिवसेना टकराव के मूड में दिख रही है। वह न केवल भाजपा पर दबाव बना रही है, बल्कि अपनी आक्रामकता भी दिखा रही है। दरअसल शिवसेना को अपने भविष्य और साथ ही अस्तित्व की भी चिंता सता रही है। चुनावी नतीजों के साथ ही गठबंधन धर्म यही कहता है कि महाराष्ट्र में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली शिवसेना एक जूनियर पार्टनर है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि शिवसेना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से कुछ बड़े आश्वासन की उम्मीद में सीनियर पार्टनर की तरह व्यवहार कर रही है। वह शायद महाराष्ट्र की सत्ता में भागीदारी के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाह रही है। यह भी लगता है कि वह अपने नेताओं के लिए राज्यपाल सरीखे पद भी हासिल करना चाह रही है। गठबंधन धर्म परस्पर विश्वास और सहयोग पर निर्भर होता है।

मुख्यमंत्री पद को लेकर अमित शाह ने उद्धव ठाकरे के दावों का खंडन नहीं किया

शिवसेना नेता चाहे जो दावा करें, यह बात साफ नहीं हो पा रही है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद को लेकर या फिर सत्ता के बंटवारे को लेकर दोनों दलों के बीच कोई स्पष्ट बात हुई थी या नहीं? यह भी स्पष्ट नहीं कि अगर कोई बात हुई थी तो उसका स्वरूप क्या था? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि गृहमंत्री के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उद्धव ठाकरे के दावों का पुरजोर खंडन नहीं किया है। उद्धव ठाकरे से लेकर शिवसेना के अन्य नेता सत्ता बंटवारे को लेकर 50-50 के फार्मूले पर जोर देने में लगे हुए हैैं। इस दावे का देवेंद्र फड़नवीस ने तो खंडन किया है, लेकिन अमित शाह की ओर से कुछ नहीं कहा गया है।

तोड़फोड़ से भाजपा की सरकार तो बन जाएगी, लेकिन उसे चलाना आसान नहीं

चुनाव नतीजों से यह साफ है कि महाराष्ट्र के चार प्रमुख दलों में भाजपा की स्थिति सबसे मजबूत है। संख्याबल के आधार पर तो वह सबसे बड़ा दल है ही, उसके सामने फूट या भितरघात का कोई खतरा नहीं है, लेकिन सत्ताधारी दल के कुछ तकाजे भी होते हैैं। उसे कहीं न कहीं बड़प्पन भी दिखाना होता है। तोड़फोड़ से सरकार तो बन जाएगी, लेकिन उसे चलाना आसान नहीं होगा। भाजपा को यह भी प्रदर्शित करना है कि वह राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने को लेकर सतर्क एवं प्रतिबद्ध है।

भाजपा और शिवसेना की खींचतान पर कांग्रेस और राकांपा नजरें

भाजपा और शिवसेना के बीच खींचतान पर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी नजरें गड़ाए हुए हैं तो इसके ठोस कारण हैं। पहला कारण तो यह चिंता है कि उनका अपना घर बचा रहे। यदि भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूटता है तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से सरकार बनाने का निमंत्रण भाजपा को ही मिलेगा। ऐसी हालत में चौथे नंबर की पार्टी कांग्रेस सबसे अधिक संकट में आ सकती है। स्मरण रहे कि चुनाव से पूर्व और प्रचार के दौरान ही कांग्रेस के कई नेताओं ने दल बदला था।

कांग्रेस का शिवसेना के साथ सरकार बनाने में कोई आपत्ति नहीं

महाराष्ट्र कांग्रेस में इस समय कोई प्रभावशाली नेता भी नहीं है और जो हैैं उन्हें शिवसेना के साथ जाने और वैकल्पिक सरकार बनाने में कोई आपत्ति नहीं है। ऐसे कांग्रेसी नेता सक्रिय भी हो गए हैैं। महाराष्ट्र कांग्रेस के ऐसे नेताओं को यकायक वह इतिहास याद आने लगा है जब कांग्रेस ने शिवसेना का इस्तेमाल किया था। इन नेताओं को वे प्रसंगयाद आ रहे हैैं जिनमें वसंत सेना का उल्लेख है। वसंत सेना यानी कांग्रेस के कद्दावर नेता वसंत नाइक। महाराष्ट्र में यह मानने वालों की कमी नहीं कि ट्रेड यूनियनों और खासकर मिल मजदूर संगठनों का वर्चस्व कम करने के लिए वसंत नाइक ने शिवसेना का राजनीतिक इस्तेमाल किया था। इसी क्रम में यह भी याद किया जा रहा है कि बाला साहब ठाकरे ने इंदिरा गांधी की इमरजेंसी का समर्थन किया था। यह तथ्य अपनी जगह सही है, लेकिन शिवसेना के साथ जाने की बात करना वैचारिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से कांग्रेस के दिवालियेपन को ही जाहिर करता है।

राजनीतिक गतिरोध को खत्म करने में शरद पवार की भूमिका हो सकती है

एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक गतिरोध को खत्म करने में शरद पवार की कोई भूमिका हो सकती है? शरद पवार का अब पहले जैसा राजनीतिक कद नहीं रहा, लेकिन उनकी उपस्थिति में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एकजुट दिखती है। उनके कारण ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी मजबूत होकर उभरी है। शरद पवार न केवल राष्ट्रवादी कांग्रेस को बचाने में, बल्कि वैकल्पिक सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

शरद पवार के राजनीतिक के कुशल खिलाड़ी

उनके बारे में एक किस्सा यह है कि नरसिंह राव सरकार के समय किसी ने जब उनसे यह पूछा कि दो और दो कितने होते हैैं तो उन्होंने जवाब दिया कि यह इस पर निर्भर करता है कि आप खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं? ऐसा कोई संवाद हुआ हो या न हुआ हो, लेकिन इससे शरद पवार के राजनीतिक कौशल का पता चलता है। नरसिंह राव सरकार में गृहमंत्री रहे शंकरराव चव्हाण से एक बार पूछा गया कि शरद पवार का नाम जैन हवाला डायरी में क्यों नहीं आया तो उन्होंने कहा था कि क्या आप जानते नहीं कि हवाला लेनदेन भरोसे पर होता है? यह उस समय की बात है जब दोनों नेता कांग्रेस में थे, लेकिन महाराष्ट्र में एक-दूसरे के प्रबल विरोधी के तौर पर जाने जाते थे।

शरद पवार जो भी सियासी कदम उठाएंगे, कांग्रेस उनके साथ होगी

कहना कठिन है कि शरद पवार वैकल्पिक सरकार बनाने की दिशा में कोई कदम उठाते हैैं या नहीं? भले ही पवार यह कह रहे हों कि जनता ने उन्हें विपक्ष की राजनीति करने का आदेश दिया है, लेकिन उनकी पार्टी के नेता यह कह रहे हैैं कि ऐसा नहीं है कि हम शिवसेना को हाथ नहीं लगा सकते। यह भी ध्यान रहे कि सोनिया गांधी की ओर से महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं को यह संकेत दिया गया है कि महाराष्ट्र के मौजूदा घटनाक्रम में शरद पवार जो भी सियासी कदम उठाएंगे, कांग्रेस उनके साथ होगी। आने वाले दिनों में जो भी हो, शिवसेना अपने ही बुने हुए जाल में फंसती नजर आ रही है।

फैसला शिवसेना को ही लेना है

भाजपा गठबंधन से बाहर निकलने या फिर उसका जूनियर पार्टनर बने रहने का फैसला शिवसेना को ही लेना है, लेकिन अपनी शर्तों को लेकर हद से ज्यादा आगे बढ़ने के बाद वापसी की राह कठिन हो सकती है। गठबंधन तोड़ने की स्थिति में वह उपहास का पात्र भी बन सकती है। भाजपा से अलग होने का उसका फैसला महाराष्ट्र और राष्ट्रीय राजनीति में भूचाल ला सकता है।

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश की राजनीति पर व्यापक असर डालेगा

ध्यान रहे कि जल्द ही अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। यह फैसला देश की राजनीति पर व्यापक असर डालने का काम करेगा। क्या ऐसे समय हिंदुत्व की दुहाई देने और राम मंदिर निर्माण को लेकर प्रतिबद्धता जताने वाली शिवसेना भाजपा के वैचारिक विरोधियों के सामने टिक पाएगी? यह वह सवाल है जिसका जवाब उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ही दे सकते हैं।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैैं )