डॉ. मोनिका शर्मा। केंद्रीय गृह मंत्रलय ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के विषय में पुलिस द्वारा की जाने वाली अनिवार्य कार्रवाई के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए जारी की गई इस एडवाइजरी में मुख्य रूप से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में समय पर और सक्रिय रूप से कार्रवाई करने की बात कही गई है।

इसमें अनिवार्य रूप से एफआइआर दर्ज नहीं करने और कार्रवाई नहीं करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं। इसमें दुष्कर्म के मामलों में जांच की उचित प्रक्रिया अपनाने और यौन अपराध के साक्ष्यों को सही तरह से इकट्ठा करने के संबंध में पहले से जारी किए गए दिशा-निर्देशों का भी जिक्र किया गया है।

जन-प्रतिरोध की आवाजें लंबित मामलों की फेहरिस्त : वास्तव में हाल के वर्षो में देश में दुष्कर्म के मामले ही नहीं बढ़े हैं, बल्कि ऐसे मामलों में हद दर्जे की बर्बरता भी देखने को मिल रही है। ऐसे में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर कार्रवाई में होने वाली लापरवाही वाकई चिंतनीय है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे आपराधिक मामलों में सबसे ज्यादा लचरता, उदासीनता और असंवेदनशीलता पहले कदम पर ही दिख जाती है। यहां तक कि एफआइआर दर्ज करने में भी आनाकानी की जाती है। नतीजतन दुष्कर्म जैसे बर्बर मामलों की भी न केवल पूरी जांच प्रभावित होती है, बल्कि यह दोषियों के बच निकलने की सबसे बड़ी वजह भी है। अदालतों में सालों-साल ऐसे मामले चलते रहने की वजह भी यह ढुलमुल रवैया ही है। हर बार ऐसी जघन्य वारदातों पर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक आवाजें उठाई जाती हैं। आमलोग विरोध दर्ज करवाते हैं, लेकिन बदलाव के नाम पर कुछ नहीं बदलता। सारी संवेदनाएं और जन-प्रतिरोध की आवाजें लंबित मामलों की फेहरिस्त बढ़ाते हुए सुस्त जांच प्रक्रिया की भेंट चढ़ जाती हैं। जाने कितनी ही सिसकियां हमारी लचर व्यवस्था के बोझ तले दबकर रह जाती हैं।

सीआरपीसी की धारा-173 दुष्कर्म के अपराधों की जांच : ऐसे मामलों के खिलाफ कार्रवाई से जुड़ा यह ढिलाई वाला गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार कुत्सित मानसिकता के लोगों की हिम्मत बढ़ाता है, जबकि सीआरपीसी की धारा-173 दुष्कर्म के अपराधों की जांच दो महीनों में पूरी करने की बात करती है। यहां तक कि ऐसे मामलों को लेकर गृह मंत्रलय का ऑनलाइन पोर्टल भी है, जहां इनको ट्रैक किया जा सकता है। यौन हमले की पीड़िता का परीक्षण 24 घंटे के भीतर सहमति से किसी पंजीकृत चिकित्सक से करवाए जाने का नियम है, लेकिन शिकायत दर्ज करने से लेकर साक्ष्य जुटाने तक इतनी लचरता बरती जाती है कि पीड़िता और उसका परिवार न्याय की आस में और अन्याय ङोलते रहते हैं।

आज भी देश के अधिकांश थानों में महिला डेस्क तक नहीं : गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पहले भी राज्यों के लिए कई एडवाइजरी जारी की है, ताकि पुलिस महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर सख्त कार्रवाई करे। इनमें एफआइआर दर्ज करने, साक्ष्य इकट्ठा करने, दो महीनों में जांच पूरी करने और यौन अपराधियों का राष्ट्रीय डाटाबेस बनाने जैसी बातें शामिल हैं। बावजूद इसके यह लचर रवैया लगभग हर घटना के बाद और हर राज्य में देखने को मिलता है। पुलिस कार्रवाई का उपेक्षापूर्ण रवैया तो दुखदायी है ही, महिलाओं के लिए थानों में अपनी पीड़ा जाहिर करने का सही परिवेश तक नहीं है। अफसोस की बात है कि आज भी देश के अधिकांश थानों में महिला डेस्क तक नहीं हैं।

पुलिस वालों की एक ‘निर्भया एसआइटी’ नाम की टीम : महिलाओं के प्रति होने वाले बर्बर मामलों में देश को झकझोर देने वाले निर्भया केस की अक्सर बात होती है। इस कांड में दोषियों को सजा दिलाने के लिए निर्भया के माता-पिता ने एक लंबी लड़ाई लड़ी और उन्हें फांसी के फंदे तक पहुंचाया। ध्यान रहे कि दिसंबर 2012 में हुई इस दिल दहलाने देने वाली घटना का सबसे अहम पक्ष यही रहा कि जांच में किसी भी स्तर पर कोताही नहीं हुई। दिल्ली पुलिस के कई अफसरों ने पूरी गहनता से इसकी जांच की थी। इसकी जांच के लिए पुलिस वालों की एक ‘निर्भया एसआइटी’ नाम की टीम भी बनाई गई थी। इस टीम ने जिस तत्परता से जांच करते हुए तथ्य जुटाकर चार्जशीट तैयार की, उसकी दोषियों को सजा दिलाने में अहम भूमिका रही। असल में देखा जाए तो किसी भी आपराधिक मामले की सही और ठोस जांच की पक्की बुनियाद ही सख्त कानूनों के जरिये उसे न्याय तक पहुंचाती है। महिलाओं के खिलाफ होने वाली आपराधिक घटनाओं के मामलों में यह शुरुआती लचरता ही न्याय में सबसे बड़ी बाधा होती है।

केंद्रीय गृह मंत्रलय द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों में यह बात साफ तौर पर कही जाती रही है कि सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के लिए अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद पुलिस ऐसे मामलों की जांच के दौरान अनिवार्य प्रक्रिया का पालन करने में असफल होती है तो इससे विशेष रूप से महिलाओं को उचित और सही समय पर न्याय देने में बाधा उत्पन्न होती है। इससे देश में महिला सुरक्षा भी प्रभावित होती है। अफसोस कि ऐसा ही हो भी रहा है। बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हालात ऐसे बन गए हैं कि पुलिस-प्रशासन और न्याय व्यवस्था से आमजन का भरोसा टूट रहा है।

यही वजह है कि यौन शोषण के मामलों में आज भी कई परिवार शिकायत दर्ज करवाने के बजाय चुप्पी साध लेते हैं। इससे देश में यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार देश में 2019 में हर दिन दुष्कर्म के 88 मामले दर्ज किए गए। कुंठा, कुत्सित मानसिकता और क्रूरता लिए ऐसे मामले पूरे सामाजिक-पारिवारिक माहौल पर तो सवाल उठाते ही हैं, सबसे अधिक पुलिस कार्रवाई से जुड़ी लचरता को दिखाते हैं। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के मोर्चे पर बिखरते भरोसे को बचाना है तो ऐसे मामलों में गहन जांच, त्वरित कार्रवाई और संवेदनशील व्यवहार जरूरी है।

[सामाजिक मामलों की जानकार]