संजय गुप्त: करीब 20 विपक्षी दलों के विरोध के बीच प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी संसद के नए भवन का उद्घाटन करने जा रहे हैं। विपक्षी दलों ने तभी से इसे एक मुद्दा बनाना शुरू कर दिया था, जब से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रधानमंत्री मोदी को संसद के नए भवन का उद्घाटन करने का निमंत्रण दिया था। कांग्रेस ने इसका राजनीतिकरण शुरु किया और फिर धीरे-धीरे अन्य विपक्षी दल भी उसके साथ हो गए। उनका तर्क है कि संसद भवन का उद्घाटन राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को करना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र में सर्वोच्‍च पद उनका ही है।

भाजपा ने विपक्षी दलों के रवैये को सस्ती राजनीति बताते हुए ऐसे उनेक उदाहरण दिए हैं, जब संसद से जुड़े भवनों का उद्घाटन या शिलान्यास अतीत में प्रधानमंत्रियों की ओर से किया गया। कई विधानसभाओं के भवनों का उद्घाटन भी प्रधानमंत्रियों या मुख्यमंत्रियों की ओर से किया गया है। आखिर इसके पहले ऐसी कोई जिद क्यों नहीं की गई कि विधायिका से जुड़े भवनों का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए? इस बार यह जिद इसलिए पकड़ी गई ताकि प्रधानमंत्री मोदी को कठघरे में खड़ा करने का बहाना खोजा जा सके।

संसद के नए भवन का निर्माण इसलिए करना पड़ा, क्योंकि अंग्रेजों की ओर से बनाया गया मौजूदा संसद भवन जर्जर हो रहा है। इसके अलावा आने वाले समय में लोकसभा और राज्यसभा की सीटें बढ़नी हैं। बढ़ी सीटों के लिए मौजूदा संसद भवन छोटा साबित होगा। नए संसद भवन की बात पिछले लगभग एक दशक से होती चली आ रही है, लेकिन उसके निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। करीब दो साल में इसके एक बड़े हिस्से का निर्माण संपन्न हो गया। संसद के नए भवन के निर्माण की योजना सामने आते ही कांग्रेस ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया था। यह इसलिए हास्यास्पद था, क्योंकि मनमोहन सरकार के समय उनके मंत्रियों की ओर से नए संसद भवन की जरूरत जताई गई थी।

कांग्रेस के विरोध के पीछे यही माना जा रहा कि वह दिल्‍ली के लटियन क्षेत्र में किसी व्यापक बदलाव का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को नहीं लेने देना चाहती। वास्तव में इसी कारण कांग्रेस ने ऐसे बेतुके आरोप लगाए कि संसद के नए भवन का निर्माण कर मोदी अपने लिए महल बना रहे हैं। जब कोविड काल में इस भवन का निर्माण हो रहा था तो कुछ लोग उस पर रोक लगाने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जहां उनकी दाल नहीं गली। कांग्रेस इसलिए भी संसद के नए भवन का प्रधानमंत्री की ओर से उद्घाटन का विरोध कर रही है, क्योंकि उसका यह दावा और कमजोर पड़ेगा कि देश में सारे बड़े काम नेहरू-गांधी परिवार की ओर से किए गए हैं।

कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के इस तर्क में कोई दम नहीं कि राष्ट्रपति को इसलिए संसद के नए भवन का उद्घाटन करना चाहिए, क्योंकि वह संसद का हिस्सा हैं। यह तर्क इसलिए समुचित नहीं, क्योंकि संसद भवन का उद्घाटन कोई विधायी कार्य नहीं। संसद की कार्यवाही में राष्ट्रपति की भूमिका अवश्य होती है, लेकिन यह कार्यवाही लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति चलाते हैं। विपक्ष इसकी जानबूझकर अनदेखी कर रहा है कि राष्ट्रपति भले ही सबसे सर्वोच्च पद हो, लेकिन शासन का संचालन प्रधानमंत्री करते हैं।यही कारण है कि सभी वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री बनने की लालसा अधिक रखते हैं।

यदि सर्वोच्च प्रशासनिक पद धारण करने वाले प्रधानमंत्री संसद के नए भवन का उद्घाटन करें तो इसमें अनुचित क्या है? विपक्ष के तर्क के हिसाब से तो देश की सभी महत्वपूर्ण इमारतों का उद्घाटन राष्ट्रपति को ही करना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल यह दलील भी दे रहे हैं कि राष्ट्रपति से संसद भवन का उद्घाटन न कराकर सरकार उनका अपमान कर रही है। आखिर यह दलील तब कहां थी, जब उनकी उम्मीदवारी घोषित होने पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही थीं? क्या तब वह आदिवासी नहीं थीं?

यह सही है कि संसद भवन देश का एक महत्वपूर्ण परिसर है, लेकिन ऐसे ही परिसर तो अन्य भी हैं। यह ध्यान रहे कि भाखड़ा नांगल और सरदार सरोवर बांध जैसी राष्ट्रीय महत्व की अनेक परियोजनाओं का उद्घाटन प्रधानमंत्रियों की ओर से किया गया, न कि राष्ट्रपतियों की ओर से। यह भी स्पष्ट है कि जनता अपने सुख-दुख के लिए प्रधानमंत्री को जिम्मेदार मानती है, न कि राष्ट्रपति को। संसद के नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से न कराने को लोकतंत्र का अपमान बताने का भी तुक नहीं, क्योंकि राष्ट्रपति के चुनाव में जनता की भागीदारी नहीं होती।

विपक्ष इस तथ्य से भी मुंह मोड़ रहा है कि सारे बड़े फैसले प्रधानमंत्री ही लेते हैं, न कि राष्ट्रपति। चाहे बांग्लादेश को स्वतंत्र कराना हो या फिर देश को नाभिकीय शक्ति बनाना। यदि नए संसद भवन का उदघाटन प्रधानमंत्री कर रहे है तो उसका विरोध करना और बहिष्कार की हद तक जाना सस्ती राजनीति के साथ लोकतंत्र का निरादर भी है। यह साफ है कि प्रधानमंत्री की बढ़ती लोकप्रियता कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष दलों को रास नहीं आ रही है। उनकी ओर से प्रधानमंत्री का राजनीतिक विरोध करना स्‍वभाविक है, पर जो संसद भवन देश की आकांक्षाओं का सबसे बड़ा मंच है, उसके नए भवन के उदघाटन समारोह का बहिष्कार करना अंध विराध की राजनीति के अलावा और कुछ नहीं।

यदि इस भवन का उदघाटन राष्‍ट्रपति भी कर रही होतीं तो भी शायद विपक्ष कोई न कोई बहाना कर उसका विरोध करता। विपक्षी दल इसकी अनदेखी न करें तो बेहतर कि संसद के नए भवन के उद्घाटन पर उनकी क्षुद्र राजनीति को देश की जनता देख और समझ रही है। वह यह भी जान रही है कि विपक्ष की ओर से विरोध के लिए विरोध की राजनीति की जा रही है।

संसद के नए भवन की रुपरेखा हो या उसका इतनी जल्दी निर्माण, इसका श्रेय जनता की निगाह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही जाएगा। इस भवन का निर्माण इसीलिए हो सका, क्योंकि प्रधानमंत्री ने उसके निर्माण को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त की। विपक्षी दल कुछ भी कहें, इतिहास में यही दर्ज होगा कि स्वतंत्र भारत में संसद के नए भवन का निर्माण नरेन्द्र मोदी ने कराया।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]