[ हरेंद्र प्रताप ]: नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की ओर से विरोध प्रदर्शन जारी है। इस क्रम में वे तमाम संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। आलम यह है कि पंजाब, केरल, बंगाल, राजस्थान आदि राज्य इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित कर केंद्र की शक्ति को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। इस तरह वे देश के मुसलमानों के मन में बेवजह का डर फैलाकर अपना वोट बैैंक दुरुस्त करने की कुटिल सोच को ही जाहिर कर रहे हैं, लेकिन उनका यह कदम देशहित पर भारी पड़ता प्रतीत हो रहा है। दरअसल इसके दुष्प्रभाव दूसरे रूप में नजर आ रहे हैं।

सीएए के खिलाफ मुसलमानों में बैठाए गया भय का फायदा कट्टरपंथी ताकतें उठा रहीं

मुसलमानों के मन मेंं उनके द्वारा बैठाए गए भय का फायदा कट्टरपंथी ताकतें उठाती नजर आ रही हैं। बिहार के जहानाबाद के रहने वाले जेएनयू के छात्र शरजील इमाम का जो वीडियो सामने आया है वह इस बात की पुष्टि कर रहा है। अपने वीडियो में वह साफ-साफ असम को शेष भारत से काटने के लिए ‘चिकन नेक’ कहे जाने वाले सिलीगुड़ी गलियारे को बाधित करने की बात कह रहा है। उसने जिस ‘चिकन नेक’ गलियारे को बंद कर असम को शेष देश से काटने की बात की है वहां से बिहार का किशनगंज जिला कुछ ही दूरी पर है और किशनगंज से बांग्लादेश की दूरी मात्र 22 किलोमीटर है।

पूर्वोत्तर के आठों राज्य ‘चिकन नेक’ के जरिये शेष भारत से जुड़े

पूर्वोत्तर के आठों राज्य-सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, असम इसी ‘चिकन नेक’ के जरिये शेष भारत से जुड़े हैं। ऐसे में इसके महत्व का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं। दरअसल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किशनगंज बिहार का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला है जिसे लालू प्रसाद यादव ने अपने शासनकाल में पूर्णिया जिला से काटकर बनाया था। आजादी के समय इस जिले का किशनगंज प्रखंंड हिंदू बहुल था। 1961 में किशनगंज प्रखंड में मुस्लिमों की आबादी 46 प्रतिशत थी जो अब बढ़कर लगभग 61 प्रतिशत हो गई है। हाल में बिहार विधानसभा के लिए हुए उपचुनावों में किशनगंज विधानसभा से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का एक उम्मीदवार चुनाव जीता है।

आजादी के बाद योजनाबद्ध ढंग से बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत आ रहे, खतरा गहराता जा रहा

यह जगजाहिर है कि बिहार के पूर्वी और बंगाल के उत्तरी-पूर्वी जिले घुसपैठ प्रभावित हैं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने ‘मिथ ऑफ इंडिपेंडेंस’ में लिखा है कि ‘पाकिस्तान का भारत के साथ मतभेद केवल कश्मीर को लेकर नहीं है, बल्कि असम, बंगाल और बिहार के सीमावर्ती जिले जो बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) से सटे हुए हैं, उन्हें लेकर भी है।’ इस कथन के संदर्भ में देखें तो आजादी के बाद जिस प्रकार योजनाबद्ध ढंग से बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत आ रहे हैं, उसके कारण भारत के लिए खतरा गहराता जा रहा है।

मुस्लिमों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी

यहां यह भी जानना महत्वपूर्ण होगा कि जिस प्रकार बिहार के किशनगंज और बंगाल के दिनाजपुर, मालदा एवं मुर्शिदाबाद मुस्लिम बहुल जिले हैं उसी प्रकार असम में बोगाईगांव, धुबरी, ग्वालपाड़ा, बारपेटा आदि भी मुस्लिम बहुल जिले हैं। इन्हीं से होकर असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में जाया जा सकता है। वर्ष 1961 का ग्वालपाड़ा जिला आज ग्वालपाड़ा, कोकराझार, बोगाईगांव तथा धुबरी जिलों के रूप में बंट गया है। किशनगंज प्रखंड की तरह ही यहां भी मुस्लिमों की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है।

बोगाईगांव जिला 2001 तक हिंदू बहुल था, अब वह मुस्लिम बहुल जिला हो गया

रेलवे मार्ग से पूर्वोत्तर राज्यों की ओर जाने वाले लोगों को मालूम है कि कोकराझार के बाद आने वाला प्रमुख स्टेशन बोगाईगांव है। तेल और प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी के लिए प्रसिद्ध बोगाईगांव जिला 2001 तक हिंदू बहुल था, लेकिन फिर वह मुस्लिम बहुल जिला इसलिए हो गया, क्योंकि पुराने बोगाईगांव जिले के हिंदू बहुल हिस्से को काटकर एक नया जिला चिरांग बना दिया गया।

मुस्लिम बहुल जिलों से गैर-मुस्लिमों के पलायन का सिलसिला कायम

मुस्लिम बहुल जिलों से गैर-मुस्लिमों के पलायन का सिलसिला कायम है। बोगाईगांव में 1991-2001 के बीच हिंदुओं की आबादी मात्र 3.6 प्रतिशत की दर से बढ़ना इसका सुबूत है। पूर्वोत्तर राज्यों के लिए न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन का महत्व किसी से छिपा नहीं है। भारत-चीन सीमा पर तैनात देश के जवान इसी स्टेशन पर आकर ट्रेन पकड़ते हैं। 1999 के कारगिल युद्ध के समय 22 जून को इस स्टेशन पर एक भयानक बम विस्फोट हुआ था, जिसमें 10 लोग मारे गए थे और 80 के करीब घायल हुए थे। उस दौरान किशनगंज-न्यू जलपाईगुड़ी के रेलवे ट्रैक पर भी बम रखे गए थे जिस पर समय रहते एक किसान की नजर पड़ गई और एक बड़ी दुर्घटना टल गई थी। शरजील इमाम एएमयू में इसी किशनगंज-न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे लाइन को बाधित करने की हिदायत दे रहा था।

सीएए से डरे घुसपैठियों के वापस वतन लौटने की खबरों से वोटबैंक के सौदागर तिलमिला उठे

यह दिखाता है कि नागरिकता कानून में हुए संशोधन और एनआरसी तैयार करने की चर्चा से डरे घुसपैठियों के वापस बांग्लादेश लौटने की आ रही खबरों से देश में वोटबैंक के सौदागर तिलमिला उठे हैं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि भारत को पुन: तोड़ने का सपना देख रहे पाकिस्तान परस्त भी अपनी खोह से निकलकर सक्रिय हो रहे हैं।

शाहीन बाग- शरजील जैसे अनेक चेहरे छुपे हैं, जो भुट्टो के सपने को साकार करने में जुटे हैं

दिल्ली का शाहीन बाग हो या ऐसे ही अन्य धरना स्थल, उनमें सक्रिय शरजील इमाम तो एक चेहरा भर है। पर्दे के पीछे ऐसे अनेक चेहरे छुपे हैं जो पाकिस्तानी नेता जुल्फिकार अली भुट्टो के सपने को साकार करने के लिए मौके का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि मोदी सरकार के मजबूत सुरक्षा घेरे के आगे वे अपनी बाजी हारते जा रहे हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर शरजील इमाम के बयान को हल्के में न लिया जाए

नागरिकता कानून के विरोध में धरने पर बैठे जो लोग संविधान की दुहाई दे रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने’ की बात कही गई है। इसका अर्थ है कि यह संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हीं को देता है, जिनका इस देश की एकता और अखंडता में विश्वास है। ऐसे में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर दिए गए शरजील इमाम के बयान को हल्के में न लिया जाए। शरजील इमाम के साथ-साथ उसके शातिर साथियों को भी बेनकाब करना समय की मांग है।

( लेखक बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैं )