डॉ गुंजन राजपूत। देश-दुनिया में बदलते हालात के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की थी जिसके तहत उन्होंने व्यापक राहत पैकेज दिए जाने की भी बात कही थी। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश की जनता से -वोकल फॉर लोकल- होने की अपील भी की गई, जिसमें भारत की जनता बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती भी दिख रही है। मौजूदा समय में भारत को आत्मनिर्भर बनाने वाले राहत पैकेज के द्वारा लघु एवं अन्य उद्योगों को सहायता प्रदान की जा रही है, परंतु उम्मीद यह भी है कि देश आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कारगर कदम उठाते हुए इस अभियान को सक्षम बनाने के लिए अपनी ओर से पूरा प्रयास करे। इसके लिए भावी पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनाने या फिर कहें कि आत्मनिर्भरता का अर्थ सिखाने की आवश्यकता है।

दरअसल मानव सभ्यताओं के किसी भी युग में घटनाओं के घटित होने के बाद ही क्यों उनके समाधान को ढूंढने के लिए हस्तक्षेप किया जाता है। घटनाएं तो अंदेशा पहले से ही देती हैं। यहीं से जोड़कर देखा जाना चाहिए, और शायद आत्मनिर्भर भारत के सपने को तभी ही पूरा किया जा सकता है। इस बात पर भी गौर करना होगा कि राहत पैकेज के जरिये हम समाज को कितनी दूर तक आत्मनिर्भरता की ओर ले जा सकते हैं। यदि आपकी दूरदर्शिता इसे लंबा सफर देखती है तो याद रखिए आप एक नए सह-संबंध को जन्म दे रहे हैं। आत्मनिर्भरता एक कला है जो किसी की मानसिक दशा के मजबूत ढांचे पर आधारित है। मानसिक ढांचे का रंगरूप देने का कार्य शिक्षा पर ही आधारित है। अपने आस-पास से मिलने वाली शिक्षा इंसान के भीतर एक नई ऊर्जा, धैर्य और संयम की स्थिति को पनपने की दर को तय करती है।

आत्मनिर्भरता की बुनियाद है शिक्षा : स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा का अर्थ समझाते हुए कहा था कि शिक्षा एक उपकरण है जो मनुष्य में पहले से ही मौजूद पूर्णता को पहचानने और उसकी प्राप्ति का काम करती है। अतः शिक्षा के द्वारा बच्चे में आत्मनिर्भरता को बढ़ाना आवश्यक है। विवेकानंद की दूरदर्शिता आज की शिक्षा पर सवाल करती है और प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत अभियान के सफल होने में एक सहयोग का काम करती है। आत्मनिर्भरता कैसे सिखाई जाए इसके लिए शिक्षा के मूलभूत उद्देश्यों को जानना जरूरी है। शिक्षा का मूलभूत उद्देश्य व्यक्ति को उसकी छिपी प्रतिभाओं से रूबरू कराना है और यह सिखाना है कि वह इन प्रतिभाओं को कहां और कैसे अपने जीवन के संघर्षों को चुनौती में बदल सफल हो सकता है। इसके लिए व्यक्ति को जीवन भर सीखने के लिए प्रेरित करना आवयशक है।

जीवन भर सीखने की प्रणाली : अब जीवन भर सीखने के लिए भी एक प्रणाली है जो कि वर्ष 1993 से -आजीवन शिक्षा- के नाम से मशहूर है और जिसकी जड़ें वर्ष 1962 के समय से हैं। आजीवन शिक्षा प्रणाली एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें हर उम्र के व्यक्ति का विभिन संदर्भों में सीखने की प्रक्रिया वर्णित है। इसके अनुसार व्यक्ति केवल विद्यालय में ही नहीं, वरन घर, कार्यस्थल, क्रीड़ास्थल, अवकाश स्थल एवं कहीं भी सीखने की प्रक्रिया में रहता है। इस प्रणाली में मुख्य रूप से पढना, सुनना, लिखना, अवलोकन, प्रयोग एवं अभ्यास करना जैसे कौशलों पर काम किया जाता है। इन कौशलों का बच्चे में इतना विकास किया जाता है कि उसकी तमाम इंद्रियां आम दिनचर्या में भी इन कौशलों के जरिये नई नई चीजें सीखने लगती हैं। इसमें जानकारी और ज्ञान का अंतर बताते हुए प्रेरणा एवं प्रतिबिंब पर काम किया जाता है। परंतु आजीवन शिक्षा प्रणाली का उपयोग केवल विश्वविद्यालयों में अलग विभाग बनाने में एवं शोध करने में किया जाता है। लेकिन अफसोस कि इसका उपयोग कैसे हम अपनी स्कूली शिक्षा प्रणाली में करें, इस बारे में अब तक कोई ठोस शोध या हस्तक्षेप नहीं सामने आया है। और रही-सही कसर निकाल दी है हमारे प्राइवेट स्कूलों ने।

ऑनलाइन शिक्षा का सच : दरअसल लॉकडाउन की स्थिति किसी बडे संघर्ष से कम नहीं थी, लेकिन प्राइवेट स्कूलों द्वारा चलाई गई ऑनलाइन क्लासेज एक अलग ही युद्ध को आगाज दे रही हैं। यहां तो शिक्षा के मूलभूत उद्देश्य की धज्जियां ही उड़ती दिख रही हैं। छोटे बच्चों के लिए संचालित की जा रही ऑनलाइन क्लासेज को देखकर ऐसा लग रहा है कि इसका उद्देश्य किसी भी तरह से पाठ्यक्रम को बच्चे के दिमाग में ठूंस देने का है। सीखना-सिखाना तो दूर, इन सबसे बच्चों की शारीरिक व मानसिक स्थिति पर क्या असर पड़ने वाला है, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। साथ ही एक अन्य युद्ध का बिगुल भी बज चुका है, वह है इन ऑनलाइन क्लासेज के बदले आमदनी को किस तरह से कायम रखा जाए। यह तो अलग ही घटनाक्रम की तरफ जाता दिख रहा है।

ऑनलाइन क्लासेज में प्राण झोंक कर पढ़ाने वाले शिक्षकों को ही उनकी नौकरी के जाने का डर उनके संयम को और अंत में उन्हीं की आत्मनिर्भरता पर सवाल खडा कर रहा है। तो फिर कैसे रोक पाएंगे आप अवसाद जैसी अवस्था में जाने से किसी को, जब शिक्षा देने वाला ही अपनी आत्मनिर्भरता की चिंता में डूबा है। जिसकी मनोदशा दिन भर ऑनलाइन कक्षाओं से घिरने के बावजूद आज इस स्थिति में है कि अपनी अवस्थाओं को कैसे सुधारा जाए। फिर हम ऐसे बेकसूर शिक्षकों से एक आत्मनिर्भर पीढ़ी को बनाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। तो अब शिक्षा के इस निजीकरण वाले व्यापार से आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की अपेक्षा करना भी एक उपेक्षा ही होगी। शायद आज रक्षा विभाग की तरह शिक्षा को पूर्ण रूप से सरकार को अपने हाथों में लेना चाहिए। हालांकि यह विचार थोडा अतिरेकपूर्ण जरूर प्रतीत होता है, लेकिन इस बारे में यदि समग्रता से विचार किया जाए और भविष्य में आने वाले इसके परिणामों पर गौर किया जाए तो फिर यह बिल्कुल व्यावहारिक प्रतीत होगा।

[डायरेक्टर- एकेडमिक ऑपरेशन, राष्ट्रम स्कूल ऑफ पब्लिक लीडरशिप]