[ धर्मकीर्ति जोशी ]: पिछले कुछ अरसे के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था ने सामान्य होकर गति पकड़ना शुरू ही किया था कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आ धमकी। यह लहर पहले दौर से कहीं ज्यादा कहर बरपा रही है। वैसे तो देश में कोरोना के 80 प्रतिशत नए मामले 10 राज्यों में सिमटे हुए हैं, लेकिन यह संक्रमण दूसरे प्रदेशों में भी तेजी से फैलता जा रहा है। सर्वाधिक प्रभावित राज्यों का स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचा इससे पड़ते दबाव के आगे चरमराता दिख रहा है। कोविड-19 का नाम आते ही अचरज, अनिश्चितता, जोखिम और आर्थिक परिदृश्य में अप्रत्याशित एवं औचक परिवर्तन जैसे भाव भी घर कर जाते हैं। इसे लेकर पिछले साल भी यही हाल था, परंतु एक परिवर्तन अवश्य आया है। वह यह कि इस बार ये पहलू उतने अनिश्चित एवं तीव्रगामी नहीं हैं। इसका कारण यही है कि कोरोना को लेकर चिंता कमोबेश पिछले साल अप्रैल जितनी ही है, लेकिन कई संदर्भों में स्थितियां बदली हुई हैं। गत वर्ष यह हमारे लिए एकाएक आई आपदा और अबूझ पहेली जैसा था, जबकि इस साल न केवल इस जानलेवा वायरस को लेकर समझ बढ़ी है, बल्कि हमारे पास वैक्सीन जैसा हथियार भी उपलब्ध हो गया है।

टीकाकरण से कोरोना महामारी की तीसरी लहर को रोकने में मदद मिलेगी

देश में 45 वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए टीके की अनुमति के साथ ही टीकाकरण की रफ्तार में खासी तेजी आई है। प्रति दस लाख आबादी के अनुपात में टीकाकरण के पैमाने पर भारत वैश्विक औसत से आगे निकल गया है। इसके बावजूद एक बड़ी आबादी वाला देश होने के नाते टीकाकरण के मोर्चे पर भारत के समक्ष कुछ सीमाएं और चुनौतियां विद्यमान हैं। इस कारण दूसरी लहर को रोकने में टीकाकरण शायद बहुत ज्यादा भूमिका न निभा पाए, परंतु जानकारों का यही मानना है कि इससे इस महामारी की तीसरी लहर को रोकने में जरूर मदद मिल पाएगी।

कोरोना को थामने के लिए उठाए जा रहे कदम से जान और जहान के बीच संतुलन बनेगा

मौजूदा हालात में कोविड मामलों में तेज वृद्धि को देखते हुए लॉकडाउन का कोई विकल्प नहीं दिखता, लेकिन इस बार उनका रूप-स्वरूप भी बदला हुआ है। गत वर्ष के उलट अभी लॉकडाउन स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप लगाए गए हैं। यह दर्शाता है कि हम वायरस के दौर में जीवन से नई ताल मिलाना सीख गए हैं। कहने का अर्थ यही है कि कोविड की भयावहता को देखते हुए ही प्रभावित राज्यों ने कदम उठाए हैं। इसमें नाइट कर्फ्यू, वीकेंड कर्फ्यू और लोगों के जमावड़े को सीमित करने के अलावा पूर्ण लॉकडाउन भी लगाए गए, लेकिन वे पिछले साल से कम सख्त हैं। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि कोरोना की यह दूसरी लहर कहां जाकर ठहरेगी, लेकिन इतना तय है कि उसे थामने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनसे जीवन एवं आजीविका यानी जान और जहान के बीच संतुलन बनेगा।

राज्यों द्वारा लगाए जा रहे लॉकडाउन का प्रभाव दिखने लगा

इस बीच राज्यों द्वारा लगाए जा रहे लॉकडाउन के प्रभाव दिखने लग गए हैं। यातायात को आर्थिक गतिविधियों का एक पैमाना माना जाता है। गूगल मोबिलिटी डाटा के अनुसार देश भर में व्यापारिक एवं निजी आवाजाही में कमी आई है। दूसरी लहर में सर्वाधिक प्रभावित राज्यों महाराष्ट्र में मुंबई, कर्नाटक में बेंगलुरु और गुजरात में अहमदाबाद के ट्रैफिक कंजेशन इंडेक्स में बीते कुछ हफ्तों के दौरान भारी गिरावट आई है। उनका स्तर करीब-करीब पिछले साल लगे राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बराबर आ गया है। वहीं भारतीय रिजर्व बैंक के एक हालिया सर्वे में यह बात सामने आई है कि इस साल मार्च में उपभोक्ताओं का भरोसा घटा है।

महामारी की दूसरी लहर आर्थिक मोर्च पर कम खतरनाक

बहरहाल इस मामले में दूसरे देशों का अनुभव यही कहता है कि महामारी की दूसरी लहर भले ही पहली से अधिक भयावह हो, लेकिन यह आर्थिक मोर्च पर कम खतरनाक होती है, क्योंकि लोग वायरस और वास्तविकता के साथ ताल मिलाना सीख जाते हैं। फिर भी यदि इसके आर्थिक दुष्प्रभावों की बात की जाए तो विनिर्माण क्षेत्र पर इसका सेवा क्षेत्र से कुछ कम असर पड़ेगा। अमेरिका और यूरोप में दूसरी-तीसरी लहर का तजुर्बा यही बताता है कि सख्त लॉकडाउन के बावजूद विनिर्माण गतिविधियां उतनी बुरी तरह प्रभावित नहीं हुईं। भारत में भी हमें यही उम्मीद है, क्योंकि विनिर्माण में उतना परस्पर वैयक्तिक संपर्क नहीं होता। हालांकि सेवा क्षेत्र इसके असर से उतना अछूता नहीं रह पाएगा। खासतौर से संपर्क आधारित सेवाओं पर इसकी सबसे अधिक मार पड़ेगी। आतिथ्य सत्कार और पर्यटन जैसे क्षेत्र इस मामले में प्रमुख हैं, जो पिछले एक साल से ही कोरोना की तपिश झेल रहे हैं और उन्हेंं पर्याप्त नीतिगत सहायता भी न मिल सकी है। उन पर फिर से सख्त नियम लागू हैं।

जीडीपी वृद्धि का अनुमान 11 प्रतिशत के स्तर पर कायम

इस स्थिति में चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि का हमारा अनुमान 11 प्रतिशत के स्तर पर कायम है और हमारा मानना है कि आगे जोखिम कम होंगे। इसके बावजूद यह वृद्धि दर 2019-20 के मुकाबले महज दो प्रतिशत ही अधिक होगी। साथ ही वित्त वर्ष की पहली और दूसरी छमाही में वृद्धि की तस्वीर भी जुदा दिखेगी। जहां पहली छमाही में लो-बेस इफेक्ट का असर दिखेगा, वहीं दूसरी छमाही में टीकाकरण, हर्ड इम्युनिटी और भरोसा बहाली के चलते आर्थिक गतिविधियों में कहीं व्यापक तेजी नजर आएगी। साल के दूसरे हिस्से को वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार का भी बड़ा सहारा मिलेगा। इसीलिए दूसरी छमाही में आर्थिक वृद्धि कहीं ठोस होगी। खासतौर से अमेरिका में टीकाकरण और प्रोत्साहन पैकेज से आर्थिक गतिविधियों में तेजी का दौर आएगा। एसएंडपी ग्लोबल का अनुमान है कि वैश्विक जीडीपी में 5.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी, जो अनुमान पहले पांच प्रतिशत व्यक्त किया गया था।

छोटे कारोबारी, शहरी गरीबों, ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर महामारी का प्रकोप गहरा पड़ा 

सुधार की यह राह उतनी आसान नहीं होगी। छोटे कारोबारियों और शहरी गरीबों के अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर महामारी का प्रकोप बहुत गहरा पड़ा है। सेवा क्षेत्र में सुधार की गति धीमी है। इससे भले ही वृद्धि पर बहुत असर न पड़े, लेकिन उनकी दुश्वारियां बढ़ेंगी, जिन्हेंं सरकार से सहारे की दरकार होगी। चूंकि कोरोना की दूसरी लहर ने वित्त वर्ष की शुरुआत में ही दस्तक दी है तो इससे कंपनियों की कारोबारी योजनाएं और भर्तियों पर अस्थायी असर पड़ सकता है। निजी निवेश में भी कुछ देरी हो सकती है। दिग्गज कंपनियां तो इस झंझावात को झेल जाएंगी, लेकिन सेवा क्षेत्र की छोटी कंपनियों कै पैर कुछ उखड़ सकते हैं। इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों के लिए यह वक्त बहुत भारी है।

( लेखक क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री हैं )