[प्रदीप]। Coronavirus: इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस नामक एक ऐसे दुष्चक्र में फंसी है जिससे निकलने के लिए असाधारण कदमों और उपायों की जरूरत है। अगर हालात काबू में न किए गए तो इससे धरती से जीवन के खत्म होने का ही संकट पैदा हो जाएगा। महामारी कोविड-19 फैलाने वाले कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दुनिया में करीब साढ़े तीन लाख तक पहुंच गई है और 15 हजार से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। हर रोज संक्रमित लोगों और मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है और यह महामारी नए इलाकों में पांव पसारती जा रही है।

चीन के वुहान से निकला यह वायरस आतंक का पर्याय बन गया है। चूंकि कोविड-19 एक नया वायरस है, इसलिए इसके बारे में वैज्ञानिकों के अनुमान दिन- ब-दिन बदलते जाएंगे। इसी नवीनता की वजह से वैज्ञानिक अभी असमंजस में हैं कि कोविड-19 से निपटने के सबसे कारगर तरीके क्या होंगे। इस नवीनता की बदौलत ही इसके खिलाफ हमारे पास फिलहाल कोई टीका नहीं है, जो कि रोकथाम का एक प्रमुख उपाय है। यह इतनी ही तेजी से फैलता जाएगा अगर हमने रोकथाम न की। इस रोकथाम के लिए हम सभी कुछ चीजें कर सकते हैं। हम अपने हाथ धो सकते हैं। चेहरे को छूने से बच सकते हैं।

अगर हमें बुखार या खांसी है तो हम दूसरे लोगों से अपने आप को अलग रख सकते हैं और अगर हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं जिसे कोविड-19 हुआ है तो हम अपनी जांच करवा सकते हैं। अब तक हमारे पास कोविड-19 का कोई विशेष उपचार उपलब्ध नहीं है। इसलिए अभी लक्षणों का ही इलाज किया जा रहा है। इसका मतलब यही है कि रोगी को सांस लेने में सहायता मिले, बुखार पर नियंत्रण रखा जाए और पर्याप्त तरल शरीर में पहुंचाया जाए। फिर भी वैज्ञानिकों ने कुछ उपाय सुझाए हैं और कुछ प्रगति भी की है।

बहरहाल इस संदर्भ में वर्तमान में दो रास्ते अपनाए जा रहे हैं। पहला रास्ता है कि पुराने एंटी वायरल दवाओं को कोविड-19 के उपचार में इस्तेमाल करने की कोशिश करना। वैसे भी अभी हाल तक हमारे पास वास्तव में कारगर एंटी वायरल दवाइयां बहुत कम थीं। खास तौर से ऐसे वायरसों के खिलाफ औषधियों की बेहद कमी थी, जो जेनेटिक सामग्री के रूप में डीएनए के बजाय आरएनए का उपयोग करते हैं, जिन्हें रेट्रोवायरस कहते हैं। कोरोना वायरस इसी किस्म का वायरस है और कोविड-19 तो एक नया वायरस या किसी पुराने वायरस की नई किस्म है। लेकिन हाल के वर्षों में वैज्ञानिक शोधों की बदौलत हमारे एंटी वायरल जखीरे में काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। ऐसा कतई नहीं है कि दो-चार रोज में दवा बाजार में आ जाएगी। जो भी दवा इस रोग में कारगर दिख सकती है उसकी तरह-तरह से विविध परिस्थितियों में जांच करनी होगी, ताकि उसके दुष्प्रभाव जाने जा सकें, उसे प्रभावशाली बनाया जा सके।

विज्ञान पत्रिका द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वॉशिंगटन में कोविड-19 से संक्रमित एक व्यक्ति के इलाज के लिए एंटी वायरल दवा रेमडेसिविर का इस्तेमाल किया गया। यह दवा मूलत: इबोला वायरस के उपचार के लिए विकसित की गई थी और इसे कोविड-19 के संदर्भ में अभी

तक मंज़ूरी नहीं मिली है। हालांकि विशेष मंज़ूरी लेकर जब मरीज को यह दवा दी गई तो वह स्वस्थ हो गया। वैज्ञानिकों ने रेमडेसिविर को प्रयोगशाला में जंतु मॉडल्स में अन्य कोरोना वायरस के खिलाफ भी परखा है। लेकिन यह नहीं दर्शाया जा सका है कि यह दवा सुरक्षित है और न ही यह कहा जा सकता है कि यह कारगर है।

हाल में कुछ शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में कई एंटी वायरल दवाओं का परीक्षण कोविड-19 पर किया है। यह पता चला है कि रेमडेसिविर कम से कम प्रयोगशाला की तश्तरी में तो इस वायरस को प्रजनन करने से रोक देती है। आम मलेरियारोधी औषधि क्लोरोक्विन प्रयोगशाला में कोविड-19 को मानव कोशिकाओं में आगे बढ़ने से रोकती है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटी माइक्रोबियल एजेंट्स पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं ने इस महीने के आरंभ में मरीजों को मलेरिया-रोधी हाइड्रोक्सी- क्लोरोक्विन और एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन की खुराक दी थी। जयपुर के चिकित्सकों ने तीन मरीजों को एड्स की दवाओं से ठीक किया है। ऐसा माना जा रहा है कि ये तीनों दवाइयां आगे परीक्षण के लिए उपयुक्त हैं। इस बीच चीनी चिकित्सकों ने यह दावा किया है कि कोविड-19 के इलाज में जापान की नई एंटी फ्लू दवा बेहद कारगर साबित हुई है।

दूसरा रास्ता है कि इसके लिए वैक्सीन की खोज को निरंतर जारी रखी जाए। दरअसल जब कोई वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो उसे कोशिकाओं के अंदर पहुंचना पड़ता है। कोशिकाओं में प्रवेश पाने के लिए वह कोशिका की सतह पर किसी प्रोटीन से जुड़ता है। यह प्रोटीन रिसेप्टर- प्रोटीन कहलाता है। वायरस के रिसेप्टर मानव कोशिका झिल्ली (ह्यूमन सेल मेंब्रेन) को तोड़ देते हैं और कोशिकाओं में घुस जाते हैं। वायरस को कोशिकाओं में घुसने और उन्हें संक्रमित करने के लिए इस प्रक्रिया की जरूरत होती है। शोधकर्ता कोरोना वायरस के इसी रिसेप्टर को लक्षित करके वैक्सीन विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि अगर वायरस के स्पाइक प्रोटीन रिसेप्टर को लॉक कर दिया जाए तो उसे मानव कोशिकाओं में घुसपैठ करने से रोका जा सकता है। वैज्ञानिक वायरस के संक्रमण के किसी भी चरण में बाधा पहुंचाकर वायरस का प्रसार रोक सकते हैं।

करीब 20 वैक्सीन अभी विकास की अवस्था में हैं और एक वैक्सीन के जानवरों पर परीक्षण से पहले ही मनुष्यों पर ट्रायल शुरू हो गया है। जैव सूचना और कृत्रिम जीव-विज्ञान के समन्वय से पूरी तस्वीर बदल गई है। कोविड-19 कोरोना वायरस के जीनोम के प्रकाशित होने के सिर्फ 42 दिनों में बायोटेक कंपनी मॉडर्न थेरेप्यूटिक्स ने क्लिनिकल परीक्षण के लिए अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज को वैक्सीन भेज दिए, जो अप्रैल में शुरू होना प्रस्तावित है। इस वैक्सीन को बनाने में कंपनी को महज एक हफ्ते का समय लगा। ऐसे में यह भरोसा जगता है कि बाजार में इस नए वायरस का टीका जल्द उपलब्ध हो सकता है, क्योंकि क्लिनिकल परीक्षण भी अब कहीं अधिक तीव्र और सुरक्षित बन चुका है। हालांकि एक अनुमान के मुताबिक ऐसे किसी वैक्सीन के विकास- परीक्षण में कम से कम एक साल का समय लगेगा।

[विज्ञान मामलों के जानकार]