सूर्यकुमार पांडेय: कहने को तो वह नवोदित भ्रष्टाचारी था, लेकिन अपनी लाइन का वह पुराना खिलाड़ी था। कई महीने पहले से ही वह बदनामियों के काले आकाश में उमड़ता-घुमड़ता हुआ देखा जा रहा था। सर्वत्र उसी की चर्चा थी। वह मीडिया में 'काली घटा छाई, भ्रष्टाचार की ऋतु आई' बनकर छाया हुआ था। नवोदित भ्रष्टाचारी के चेहरे पर कैमरों की फ्लैश लाइटें चमकतीं तो जान पड़ता था कि आकाश में बिजली कौंध रही है। अपने कंधों पर कारगुजारियों का इंद्रधनुष लादे हुए वह मंडराता फिर रहा था।

ईडी और सीबीआइ की हवाएं छापामारी करती थीं और उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती थीं। उससे पूछताछ होती और वह सारा दोष मौसम के मत्थे पर मढ़ दिया करता था। वह कहता था कि यह भ्रष्टाचार तो समूचे वायुमंडल में फैला हुआ है, फिर भला वह ही कैसे इसके प्रभाव से अछूता रह सकता है? वह मौका लगते ही डूब-डूब कर बेईमानी का पानी पीने का अभ्यस्त था। वैसे वह कहने मात्र को ही एक नवोदित भ्रष्टाचारी था। चूंकि पहले उसका नाम किसी बड़े घोटाले में उजागर नहीं हो पाया था, इसके चलते ही उसको नवोदित कहा जा रहा था। इस बात का वह बुरा भी नहीं मानता था। लोग उसे बच्चा समझते थे, पर वह अपने आपको सबका चच्चा समझता था।

अपनी सफलता के नशे में बहकते हुए उसके पांव धरती पर उतरने में अपनी तौहीन समझ रहे थे, लेकिन वक्त-वक्त की बात होती है। जो गहरा होता है, उसको नपना भी पड़ता है। तो उस नवोदित भ्रष्टाचारी को भी एक रोज जमीनी हकीकत देखनी ही पड़ गई। यद्यपि वह सबको सफाई देता रहता था कि उसका दामन पाक-साफ है, किंतु सभी को ज्ञात था कि वह अंदर से मटमैला था। वह भ्रष्टाचार के सरोवर में डुबकी लगाने की लत से मजबूर था। जिस तरह पानी अपनी ढाल की तरफ बहता है और पैसा पैसे को खींचता है, उसी तरह एक भ्रष्टाचारी भी निर्वस्त्र होकर अपने नहाने के लिए समुचित घाट की तलाश स्वयमेव कर लिया करता है। उसने भी यह तलाश पूरी कर ली थी।

एक रोज वह भ्रष्टाचार के सरोवर के प्रदूषण घाट से डुबकी मारकर वापस लौट रहा था। तभी राह में उसको एक सीनियर भ्रष्टाचारी मिल गया। वह सीनियर एक वरिष्ठ घोटालेबाज के नाम से कुख्यात था। वह जमीन से जुड़ा हुआ था। इसके चलते जीवन में महत्वाकांक्षाओं की स्वनिर्धारित सीमा से कभी भी आगे नहीं जा सका था। नवोदित भ्रष्टाचारी जिस घाट से फ्रेश होकर आ रहा था, वरिष्ठ घोटालेबाज भी उसी तरफ जा रहा था। वह अतिशय उदास था। नवोदित भ्रष्टाचारी के जलवों की धूम के चलते कुंठित भी था। इसीलिए वह कदाचित डूब मरने जा रहा होगा।

लोकतंत्र के राजपथ पर दोनों आमने-सामने आ गए। नवोदित भ्रष्टाचारी बेशर्मीपूर्वक शरमाता हुआ कन्नी काट कर आगे बढ़ गया। वरिष्ठ ने उसे आवाज दी, 'ओ राजा बेटा, ऐसे तो मुंह फेर कर न जाओ!' नवोदित बोला, 'दादा, चाहे और कुछ कह लो, पर मुझको राजा बेटा कहकर न बुलाओ। यों ही मेरी बहुत बदनामी हो चुकी है।' वरिष्ठ घोटालेबाज ने उसकी पीठ पर धौल जमाते हुए कहा, 'तो क्या कहूं? तुम्हें राजा बेटा न कहूं, तो क्या अपना बाप कहूं? वाह बेटा, तुम तो बापों के भी बाप निकले। हम तो अपने टाइम में करोड़ों की ही जमा-पूंजी बटोर पाए थे, तुम 'पहले पाओ, पहले खाओ' की राह पर चलकर कई लाख करोड़ के पार निकल लिए। हम जैसे पुराने घोटालेबाज यूरिया, चीनी, चारा, कोयला, अनाज जैसी हद्दी-पिद्दी कलाबाजियों के आगे नहीं जा सके। तुम सबको पीछे छोड़कर असीमित घोटाले की सीमा के पार पहुंच गए हो। मुझे पक्का उम्मीद है कि तुम्हारे बाद की पीढ़ी और भी तरक्की करेगी।'

नवोदित भ्रष्टाचारी निर्लज्ज मुस्कान के साथ बोला, 'दादा, आप मेरे पुरखे हो। पथ-प्रदर्शक हो। गुरु समान हो। आप अपने समय के खांटी खिलाड़ी रहे हो। आपने ही मुझ एकलव्य को इस सुगम और सहज मार्ग पर चलना सिखाया है। आपको देख-देखकर ही मैंने यह विद्या सीखी है। मेरी आपको ज्ञान देने की औकात नहीं है।' वरिष्ठ घोटालेबाज ने उस नवोदित भ्रष्टाचारी की पीठ थपथपाते हुए कहा, 'शाबास बेटा, इसी बात पर मेरे साथ वापस लौट चलो। इस बार भ्रष्टाचार के सरोवर के उसी घाट पर हम दोनों मिलकर डबल डुबकियां लगाएंगे।' अब दोनों ही गठबंधन वाली मुद्रा में एक ही दिशा में एक साथ चल रहे थे।