हास्य- व्यंग्य: 'टाइगर' की सजा पर सिसक उठा हिरण- मैं क्यों ऐसे पुण्यात्मा की गोली के रास्ते आया?
भाईजान को हिरण मारने पर जेल हो गई थी। न्यूजरूम में विशेषज्ञ पानी पी नहीं रहे थे, बल्कि वह उनकी आंखों से स्वाभाविक रूप से बह रहा था।
नई दिल्ली (संतोष त्रिवेदी)। दिन भर एक जरूरी काम में उलझा रहा। इतना कि सोशल मीडिया भी नहीं झांक सका। घर पहुंचा तो एक गिलास पानी पीकर गलती से न्यूज चैनल खोल दिया। यह क्या! यहां तो हाहाकार मचा हुआ था। भाईजान को हिरण मारने पर जेल हो गई थी। न्यूजरूम में विशेषज्ञ पानी पी नहीं रहे थे, बल्कि वह उनकी आंखों से स्वाभाविक रूप से बह रहा था। मुझे पहली बार अपने असंवेदनशील होने का अहसास हो रहा था। काश, मैंने घर आकर एक गिलास पानी न पिया होता! मैं चाहकर भी अब‘राष्ट्रीय-विलाप’ का हिस्सा नहीं बन सकता था। एक और जरूरी राष्ट्रीय-कर्तव्य से मैं चूक गया था। इस ‘गिल्ट’ से मैं छटपटाने लगा। मुझे हल्की-सी उम्मीद सोशल मीडिया से लगी। चैनल छोड़कर वहां घुसा तो वज्रपात-सा हुआ। रुदन का स्वर वहां और तेज था। हमारे अधिकतर मित्र कई घंटे पहले भाईजान के गम में गलत हो चुके थे। वहां कोई ‘स्कोप’ न देखकर मैं वापस मुख्यधारा में कूद पड़ा।
एक तेज चैनल पूरी गणना के साथ चेता रहा था कि शेयर बाजार भले छह सौ अंक ऊपर चढ़ा हो पर भाई को मिली सजा से छह सौ करोड़ रुपये स्वाहा हो जाएंगे। शायद इतनी महत्वपूर्ण जानकारी फैसला सुनाने वाले जज साहब को समय रहते दी गई होती तो राष्ट्र इतने बड़े संकट में न फंसता। देश को हमेशा इस बात का मलाल रहेगा कि चैनल के समझदार एंकर के होते हुए ‘भाई’ ने गलत वकील क्यों चुन लिया! वार्ता में शामिल सभी विशेषज्ञ बेहद चिंतित दिख रहे थे। ये वही जानकार थे जो नोटबंदी के नुकसान का आज तक ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा पाए थे, पर एक अभिनेता के जेल जाने पर सौ तरह के नफा-नुकसान गिना रहे थे। इनके लिए छह सौ करोड़ रुपये की रकम तो बड़ा शुरुआती आकलन था। यह चपत और बढ़ सकती है। भाईजान अगर जेल में ही पांच साल बने रहे तो कइयों का करियर हमेशा के लिए कैद हो जाएगा। हिरण के लिए हम इतना नुकसान नहीं उठा सकते। वह ‘टाइगर’ की गोली से नहीं मरता तो भी शिकार तो वह टाइगर का ही होता! सरकार को इस पर आवश्यक दखल देना चाहिए। जरूरत पड़े तो मामले को संविधान-पीठ को भी सौंपा जा सकता है।’ इतनी गंभीर तकरीर सुनकर मैं बहुत भावुक हो गया। ज्यादा देर यहां रुकता तो ख़ुद के असंवेदनशील होने का अहसास लगातार दूसरी बार हो जाता। और भावुक होता, इससे पहले ही चैनल बदल लिया। यह एक सरोकारी चैनल था। इस गिरफ्तारी से निकले सरोकार बटोरने के लिए एंकर ख़ुद नायक के आवास पर पहुंच गई थी। उसने कैमरामैन से कहा कि वह अपने कैमरे की नजर से नायक के आवास के इर्द-गिर्द छाए अंधेरे को दिखाए। जैसा कि दर्शक देख सकते हैं कि यहां कितना अंधेरा पसरा हुआ है! माफ करना, यह अंधेरा आप खुली आंखों से नहीं देख सकते। इसके लिए आपको अपने मन की आंखें खोलनी होंगी। आइए, हम इस काम में आपकी मदद करते हैं। यह जो घर के सामने अभिनेता के चाहने वालों की भीड़ जुटी है, सब उनके लिए दुआ कर रहे हैं। ये जो उठे हुए हाथ आप देख रहे हैं, भले ही रोजगार से खाली हों, पर दुआओं से लबालब हैं। थोड़ी देर पहले ही मैंने इनकी प्रतिक्रिया ली है पर वे दृश्य आपको विचलित कर सकते हैं। हम एक जिम्मेदार चैनल हैं। इस नाते ‘विचलित’ होने का काम हम स्वयं कर लेते हैं, परंतु आपको नहीं कर पाएंगे। कृपया यहीं हमारे साथ बने रहें।’ इतने आग्रह के बावजूद मैं अपना ‘विचलन’ रोक नहीं पाया। तीसरे चैनल को खोला तो वहां कुछ राहत मिली। वहां इस फैसले पर पड़ोसी देश की प्रतिक्रिया आ रही थी कि अभिनेता को उसके कर्म के लिए नहीं धर्म की वजह से सजा मिली है। सुनकर दिल को तसल्ली हुई कि दहशतगर्दी का निर्यात करने वाले देश में अभी भी हास्यबोध खत्म नहीं हुआ है और एक हम हैं जो अपने नायक को मिली सजा के लिए ढंग से अफसोस भी नहीं जाहिर कर पा रहे हैं। इस अपराध-बोध के चलते हमने तुरंत चैनल बदल दिया। इस चैनल में नायक की मानवता और उदारता के 51 किस्से बताए जा रहे थे। ‘बैडबॉय’ से ‘भाईजान’ बन जाने का रोचक सफर चल रहा था। न जाने कितनी फुस्स नायिकाओं का करियर भाईजान ने संवारा था। मुझे तो लगने लगा कि हो न हो, भाई ने इस एंकर को भी अपनी दरियादिली का सबूत दिया हो।
इस बीच न जाने कब मुझे झपकी आ गई। फिर देखा कि वही हिरण मेरे सामने खड़ा था। उसका मुझसे भी बुरा हाल था। उसे अपने ऊपर ग्लानि हो रही थी। मैंने उसे सांत्वना दी। वह एकदम से सिसक उठा-‘मैं क्यों ऐसे ‘पुण्यात्मा’ की गोली के रास्ते में आ गया? मेरी नादानी की वजह से आज सारा राष्ट्र शोक में है। हम आत्मोत्सर्ग के लिए ही पैदा होते हैं। जंगल के टाइगर से बच गए तो शहर के ‘टाइगर’ हमें मुक्ति प्रदान करते हैं। ऐसे में भाईजान कहां से दोषी हो गए! मैं स्वयं इस बात की गवाही देने जा रहा हूं।’ मैं ग्लानि से भरे हिरण की गवाही का इंतजार ही कर रहा था कि खबर आई कि भाई जान को जमानत मिल गई।
(लेखक)