[ सूर्यकुमार पांडेय ]: भारत में उनके चाहने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है, यह बात संत वैलेंटाइन को बरसों पहले पता चल चुकी थी। वह इस देश को देखने के लिए मन ही मन कुलबुला रहे थे। लंबी दूरी की यात्रा थी। जेब में धेला नहीं था। उन्होंने आजीवन प्रेम को ही धन समझने की गलती की थी। धन से प्रेम करना नहीं सीखा था। जिसकी धन में आसक्ति हुआ करती है, उसके लिए कोई भी देश पराया नहीं होता। यदि आदमी की गांठ में पैसा हो तो वह अपनी छुट्टियां भी विदेश में मनाता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपने देश में उधार लेते हैं, मोटा माल बटोरते हैं और फिर एक रोज चुपके से किसी दूसरे देश की ओर निकल लेते हैं।

युवा पीढ़ी के बीच जो भी लोकप्रियता पा जाता है, सारी दुनिया उसकी जय-जयकार करने लग जाती है

कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों को जब संत वैलेंटाइन के भारत-भ्रमण की इच्छा का पता चला तो वे स्पांसरशिप के लिए तैयार हो गईं। उन प्रतिष्ठानों को यह बात भी पता थी कि संत वैलेंटाइन को चाहने वाले और उन्हेंं अपना आइकॉन मानने वाले सर्वाधिक युवा भारत में ही पाए जाते हैं। अक्सर यह देखा भी गया है कि युवा पीढ़ी के बीच जो भी लोकप्रियता पा जाता है, सारी दुनिया उसकी जय-जयकार करने लग जाती है। इसी नाते बहुत सारे नेता अधिक उम्र हो जाने के बावजूद अपने आप को युवा कहलाना पसंद करते हैं। वह दीगर बात है कि जनता उनको बच्चा ही समझती रहती है।

वैलेंटाइन और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के बीच हुई डील, रोज डे पर भारत आया

बहरहाल संत वैलेंटाइन और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के बीच डील हो गई। संत वैलेंटाइन ने एक सप्ताह भारत में प्रवास किया। उन्होंने एक सप्ताह के अपने भारत प्रवास के अनुभवों को डायरी में कुछ इस प्रकार लिपिबद्ध किया :-

‘‘मैं पिछले रविवार की सुबह भारत आया। उस रोज रोज डे था। मैं एयरपोर्ट से बाहर निकला। एक फूल वाले की दुकान दिख गई। मैंने उससे किफायती दाम में पचास गुलाब के फूल मांगे। दुकानदार मुझे ऊपर से नीचे तक घूरता हुआ बोला, बाबा ये गुलाब युवाओं के लिए हैं। आप अपनी उमर का लिहाज करो और अगर गांधीगिरी करनी है तो इस वैलेंटाइन वीक के बाद किसी और रोज कर लेना। आज मुझे महंगे दाम पर गुलाब बेचकर थोड़ी कमाई कर लेने दो। मैं चुपचाप होटल आया। अगली सुबह अभी लेटा ही था कि मेरा मोबाइल बजने लगा। उधर से किसी महिला का सुमधुर स्वर सुनाई दिया, आप भाग्यशाली हैं कि आज प्रपोज डे को आपके इस लकी मोबाइल नंबर के नाम एक करोड़ रुपये की लॉटरी निकली है। मैं चहकता हुआ बोला, यह तो बड़ी खुशी की बात है। उसने मुझसे मेरे बैंक खाते के डिटेल ले लिए। इसके बाद मेरे मैसेज बॉक्स में आया हुआ कोड भी पूछ लिया। जब तक कुछ समझ पाता तब तक मैं साइबर क्राइम का शिकार हो चुका था।’’

अगले दिन चॉकलेट डे, टेडी डे पर बच्चे को भेंट करने के लिए टेडी बीयर अपने साथ लाया था

‘‘अगले दिन चॉकलेट डे था। मेरे पास इतने ही पैसे बचे थे कि एक चॉकलेट खरीदता और खुद ही खा लेता। टेडी डे पर किसी बच्चे को भेंट करने के लिए मैं एक टेडी बीयर अपने साथ लाया था। उसे लेकर होटल से बाहर आया। मुझे एक सात-आठ साल का बच्चा दिखलाई पड़ा। मैंने उसे वह टेडी भेंट करना चाहा। वह बोला, दद्दू, क्या आपको लगता है कि मेरी एज ऐसे खिलौनों से खेलने की है! हम नेट-युग के बच्चे हैं। मैं बहुत निराश हुआ। टेक्नोलॉजी के इस दौर में धरती से बचपन गायब होता चला जा रहा है।

भारत के नेता वादा करने में निपुण होते हैं, प्रॉमिस डे पर एक नेता से मुलाकात

मैं वापस होटल आया और उस टेडी से दिल की बातें करता रहा। मैंने सुन रखा था कि भारत के नेता वादा करने में निपुण होते हैं। इसलिए प्रॉमिस डे पर मैंने एक नेता से मुलाकात की। उन्होंने मुझसे कहा कि वह और कुछ करने योग्य तो नहीं हैं, लेकिन मेरे नाम पर एक स्मारक अवश्य बनवा सकते हैं। इसके लिए उनकी दो शर्तें थीं। पहली यह कि उस स्मारक के निर्माण का पूरा खर्चा मुझे ही उठाना होगा और दूसरी यह थी कि इस काम का सारा ठेका मैं उन्हीं को दूंगा। चलते-चलते उन्होंने मुझसे इस बात का प्रॉमिस ले ही लिया।

आज तो मेरा दिन है, देखता हूं; यह कैसा बीतता

हग डे पर मैं अपने ही कंधे पर अपना सिर रखकर सुबकता रहा। कल किस डे था। मुझे बताया गया कि भारत में सार्वजनिक रूप से चुंबन लेने को अश्लील माना जाता है। इसलिए मैंने हवाई चुंबन उछालकर इस दिन को सेलिब्रेट किया। खैर, आज तो मेरा दिन है। देखता हूं, यह कैसा बीतता है!’’

 

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार है ]