[डॉ. रहीस सिंह]। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कोरियाई प्रायद्वीप में माहौल फिर से युद्धोन्मादी होता दिख रहा है। कारण कुछ दिन पहले तक जो उत्तर कोरिया अमेरिका के साथ मिलकर कोरियाई प्रायद्वीप में शांति स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध दिख रहा था, वह अब उससे दूर होकर न केवल रूस की ओर खिसक रहा है, बल्कि मास्को- बीजिंग-प्योंगयांग त्रिकोण का निर्माण एक धुरी के रूप में होता दिख रहा है। हनोई (वियतनाम की राजधानी) वार्ता असफल होने के बाद उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन की रूस यात्रा और उसके बाद लंबी दूरी वाले कई रॉकेट लांचरों और सामरिक हथियारों का परीक्षण करना, शांति के संकेत तो नहीं हो सकते।

हालांकि डोनाल्ड ट्रंप ने अपना सहयोग किम जोंग उन को देने की बात कही है। प्रश्न यह उठता है कि क्या यह मामला उतना सरल है जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप कहते दिख रहे हैं? एक सवाल यह भी कि अमेरिका पहले उत्तर कोरिया के साथ निकटता स्थापित करने की जितनी जल्दी में था उतना ही हनोई वार्ता के समय उदासीन क्यों दिखा? उत्तर कोरिया की आधिकारिक समाचार एजेंसी ‘कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी’ (केसीएनए) ने पिछले दिनों खबर दी कि किम जोंग ने एक अभ्यास का आदेश दिया था जिसमें लंबी दूरी वाले कई रॉकेट लांचर (जो संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आते हैं) और सामरिक हथियार शामिल थे।

किम ने इस परीक्षण पर संतोष व्यक्त किया है और कहा है कि सीमा पर मौजूद सैनिकों को हाई अलर्ट पर रहने की जरूरत है। इधर दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्रालय के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि प्योंगयांग ने 240 मिमी और 300 मिमी के कई रॉकेट लांचर और लगभग 70 से 240 किमी मारक क्षमता वाले नए प्रकार के सामरिक हथियारों का परीक्षण किया है। चूंकि यह परीक्षण जापान सागर में हुआ है इसलिए यह दक्षिण कोरिया और जापान के लिए एक सामरिक चुनौती की तरह है। यही वजह है कि सियोल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्योंगयांग की इस कार्रवाई के जरिये लंबित पड़ी परमाणु वार्ता को लेकर वॉशिंगटन पर दबाव बनाना चाहता है। उधर कुछ अमेरिकी अधिकारियों का मानना है कि किम जोंग ने नए हथियारों को लांच करने का निर्णय बीते माह रूसी राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद लिया। लेकिन पिछले ही माह अमेरिका ने उपग्रह से मिले चित्रों की जानकारी के आधार पर कहा था कि उत्तर कोरिया परमाणु बम बनाने के लिए किसी रेडियोएक्टिव मेटेरियल को रिप्रोसेस करने में लगा है।

जो भी हो, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के बावजूद उत्तर कोरिया अपने हथियारों का विकास करने की दिशा में लंबे समय से आगे बढ़ रहा है। उसने काफी पहले ही ह्वासोंग-15 नाम की मिसाइल का परीक्षण कर लिया था जिसकी मारक क्षमता 13 हजार किमी से ज्यादा है। मतलब किम जोंग उन की मिसाइलें दुनिया के किसी भी कोने तक परमाणु हथियारों को लेकर पहुंच सकती हैं। उल्लेखनीय है कि प्योंगयांग से सियोल की दूरी करीब 200 किमी है, टोक्यो की लगभग 1,300 किमी और वाशिंगटन की 11,000 किमी के आसपास। तीन सितंबर 2017 को उत्तर कोरिया द्वारा हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया था जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रस्ताव संख्या 2375 लाकर नए प्रतिबंध लगाए गए थे। उत्तर कोरिया के इस कदम से पहले तक यही अनुमान लगाया जाता था कि वह जो भी कर रहा है वह चीनी ऑर्बिट के दायरे में कर रहा है, लेकिन इसके बाद स्पष्ट हो गया कि वह अतिरिक्त शक्ति अर्जित कर चीनी ऑर्बिट भी छोड़ चुका है और स्वयं ‘शक्ति का केंद्र’ बनने की कोशिश कर रहा है। यहीं से रूस का उत्तर कोरिया के प्रति नजरिया बदलना शुरू हुआ। उसने अमेरिका के साथ बातचीत से पहले ही प्योंगयांग को वार्ता का निमंत्रण भी दिया था। यह अलग बात है कि यह अवसर हनोई में वार्ता के असफल होने के बाद मिला।

उल्लेखनीय है कि किम जोंग उन 25 अप्रैल को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिले थे। शायद उत्तर कोरिया रूस के साथ रणनीतिक रिश्तों का निर्माण कर अमेरिका पर अपनी उन मांगों को लेकर लचीला रुख अपनाने के लिए दबाव बढ़ाना चाहता है जिसके चलते उसे उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में ढील मिलनी है। इन्हीं मांगों के चलते गत फरवरी में वियतनाम में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग के बीच हुई दूसरी शिखर वार्ता बेनतीजा समाप्त हो गई थी। हालांकि वार्ता के बाद किम ने कहा था कि वह अमेरिका के रुख में लचीलापन आने का इंतजार इस साल के अंत तक करेंगे। लेकिन वह एक साल पूरा होने से पहले ही रूस की तरफ हाथ बढ़ा बैठे।

ट्रंप और किम की मुलाकात से पहले ही रूस की तरफ से किम के लिए वार्ता का निमंत्रण गया था, लेकिन सिंगापुर में ट्रंप और किम की मुलाकात हुई। जब ट्रंप और किम की मुलाकात शुरू हुई तो ऐसा लगा था कि रूस को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है। ध्यान रहे कि रूस कभी यह नहीं चाहता कि उत्तर कोरिया के मामले में अमेरिका एक धुरी की तरह निर्णयों पर पहुंचे, बल्कि वह चाहता है कि उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया के साथ चार देश अमेरिका, रूस, चीन, जापान वार्ता यानी ‘सिक्स पार्टी टॉक’ करके मामले को सुलझाया जाए। लेकिन अमेरिका की इच्छा है कि उत्तर कोरिया एकतरफा तौर पर अपने परमाणु हथियार नष्ट करे। हालांकि अमेरिका की ही तरह चीन और रूस भी उत्तर कोरिया के परमाणु राष्ट्र होने से असहज हैं, लेकिन प्रभुत्व की लड़ाई में संतुलन अपने पक्ष में करने के लिए रूस इसे दरकिनार करता हुआ दिख रहा है।

दरअसल कोरियाई प्रायद्वीप में जो हो रहा है उसकी जड़ें शीतयुद्धकाल में निहित हैं। उस दौर में सोवियत संघ के साथ उत्तर कोरिया के सैन्य व व्यापारिक संबंध थे। लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद दोनों के बीच व्यापारिक संबंध कमजोर हो गए और उत्तर कोरिया चीन की तरफ खिसक गया, परंतु पुतिन ने जब वर्ष 2014 में उत्तर कोरिया को सोवियत संघ द्वारा दिया गया कर्ज माफ कर दिया तो दोनों देश फिर से निकट आ गए। अब दोनों देश फिर से रणनीतिक रिश्तों को मजबूती देना चाहते हैं ताकि अमेरिका से सौदेबाजी की जा सके। यदि इसमें चीन भी सक्रिय हो गया तो मॉस्को-बीजिंग-प्योंगयांग त्रिकोण का निर्माण होगा जो दुनिया को नए शीतयुद्ध की ओर ले जा सकता है।
[विदेश मामलों के जानकार]

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप