रांची [प्रदीप शुक्ला]। पहले से ही संसाधनों की कमी का रोना रो रहे राज्य के लिए अब प्रवासी मजदूर बड़ी चुनौती बनेंगे। देश भर से राज्य के लाखों मजदूरों को सुरक्षित तरीके से लाना, उन्हें गांवों और शहरों मे जाने देने से पहले चौदह दिनों तक क्वारंटाइन रखना, उसके बाद उनके लिए रोजी-रोटी का इंतजाम करने सहित तमाम अन्य जिम्मेदारियों का बोझ राज्य कितने बेहतर ढंग से उठा पाएगा यह तो आने वाला समय बताएगा, पर कोरोना की लड़ाई में अब तक के जो अनुभव हैं उससे यह स्पष्ट है कि यह सब बहुत आसान नहीं होने वाला है। रांची का हिंद पीढ़ी जिस तरह से हॉटस्पॉट में तब्दील हुआ है उससे नौकरशाही में बेहतर तालमेल की कमी उजागर हो चुकी है। अब जब सिर्फ हिंद पीढ़ी में ही सत्तर से ज्यादा कोरोना पॉजिटिव सामने आ चुके हैं, तब लॉकडाउन का पालन सख्ती से कराने के लिए सीआरपीएफ को उतारा जा सका है। नौकरशाही और सरकार में तालमेल का अभाव भी झलकने लगा है। इससे यह कहने में गुरेज नहीं कि आने वाले कुछ महीने राज्य के लिए कठिन साबित होने जा रहे हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य अब अपने प्रवासी मजदूरों, छात्रों और पर्यटकों को वापस ला सकेंगे। इसके लिए उन्हें कुछ जरूरी दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। झारखंड के करीब साढ़े नौ लाख मजदूर देश के विभिन्न राज्यों में हैं। यह संख्या काफी बड़ी है। कोटा में करीब पांच हजार से ज्यादा छात्र भी फंसे हैं। पिछले कुछ दिनों से छात्रों और मजदूरों के परिजन मुख्यमंत्री से गुहार लगा रहे थे। विपक्षी दल भाजपा भी सभी की वापसी का दबाव बना रही थी। भाजपा नेताओं ने इसके लिए एक दिन का उपवास भी रखा था। अभी तक तो राज्य सरकार गेंद केंद्र सरकार के पाले में डालकर बच रही थी, लेकिन अब जो आना चाहते हैं उन्हें सरकार को लाने की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। वैसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार यह दोहराते आ रहे हैं कि अगर केंद्र से ढील मिलती है तो वह एक-एक मजदूर को वापस लाएंगे। उनके लिए रोजगार के इंतजाम भी करेंगे। आपदा से निपटने के लिए बनाई गई मंत्रियों की समिति कह चुकी है कि मजदूरों को ट्रेन से वापस लाएंगे। मुख्यमंत्री ने इस संबंध में रेलमंत्री पीयूष गोयल से भी बात की है। अब देखना यह होगा कि क्या केंद्र ऐसी कोई राहत देता है कि नहीं? राज्य के लिए इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को सड़क मार्ग से लाना बड़ा दुरूह कार्य होगा। हजारों की संख्या में बसों की जरूरत होगी। जैसे ही अन्य राज्य अपने मजदूरों को निकालने लगेंगे तो राज्य सरकार पर दबाव और बढ़ेगा। मजदूरों को लाने के बाद उनके स्वास्थ्य की जांच और क्वारंटाइन में रखना भी खासी दिक्कत वाला साबित होने वाला है।

मजदूरों को लाने के बाद उनके लिए रोजी-रोटी का इंतजाम भी बड़ी समस्या बनने वाला है। राज्य के आर्थिक हालात किसी से छुपे नहीं हैं। मुख्यमंत्री सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार कर चुके हैं। कोरोना के बाद इस गरीब राज्य की स्थिति और बदतर होने वाली है इसलिए सभी को एकजुट होकर राज्य को इस मुसीबत से निकालना होगा। संकट यह है कि राज्य में रोजगार पहले से ही सीमित हो गए हैं। कोरोना के बाद मजदूरों के लिए कितने नए रोजगार सृजित होंगे, इस पर उद्यमी अभी कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं। तमाम नई गाइडलाइंस से उद्योग पहले से ही आशंकित हैं और वह कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। कृषि क्षेत्र में भी बहुत संभावनाएं नहीं हैं। ऐसे में लाखों मजदूर कहां खपेंगे? निश्चित ही राज्य सरकार इससे चिंतित होगी और अभी से कारगर रणनीति बनाने की दिशा में ठोस उपाय कर रही होगी।

कोरोना का फैलाव भी सरकार की पेशानी पर बल डाल रहा है। राहत की खबर यह है कि कुछ जिले इससे निपटने में कामयाब हुए हैं, लेकिन असल चिंता राजधानी ही है। यहां नौकरशाही पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। हिंदपीढ़ी में लॉकडाउन का सख्ती से पालने करवाने से लेकर रिम्स में कोरोना पॉजिटिव मरीजों के उपचार में सामंजस्य नहीं दिख रहा है। दबी जुबान अफसर एक दूसरे पर सवाल उठा रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने स्वास्थ्य सचिव और रिम्स के निदेशक तक को निशाने पर ले रखा है। संकट के इस समय में उन्होंने रिम्स के निदेशक को हटाने तक की संस्तुति मुख्यमंत्री से कर दी है। जब सभी को मिलकर महामारी से लड़ने में अपनी ताकत लगानी चाहिए उस समय एक-दूसरे पर निशाना साधा जा रहा है, ये अच्छे संकेत नहीं हैं। यह लड़ाई लंबे समय तक चलने वाली है और बेहतर तालमेल के जरिये ही इससे लड़ा और जीता जा सकता है। जरूरत है बस इसे समझने की।

(लेखक झारखंड के स्‍थानीय संपादक हैं)