नई दिल्ली [गौतम अदाणी]। विश्वविख्यात संस्थान एमआइटी के एक हालिया शोध पत्र में बताया गया है कि सोलर मॉड्यूल की कीमत पिछले 40 वर्षों में 99 प्रतिशत तक कम हुई है। अगले 40 वर्षों में इसकी कीमतों में 99 प्रतिशत की और कमी आने की उम्मीद है, जो संभवत: बिजली की सीमांत लागत को शून्य कर देगा। कई मोर्चों पर इसके प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।

कोविड-19 के बाद के दौर में ऊर्जा क्षेत्र में हरित क्रांति की जरूरत को अधिक महत्व मिलता दिख रहा है। हालांकि तात्कालिक आर्थिक प्रभाव हमारी गति को धीमा कर सकता है, लेकिन फिलहाल इस बारे में विचार करने का समय आ गया है। 

यूरोप में कई सिस्टम ऑपरेटर गिरती मांग के साथ ग्रिड का प्रबंधन करना सीख रहे हैं। यह सीखना अनमोल है, 

क्योंकि इस तरह का परिदृश्य कुछ महीने पहले संभव नहीं था। हालांकि उत्पादन संतुलन मांग बढ़ने पर वापस लौट सकता है, लेकिन इस संकट ने ऑपरेटरों को नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में उच्च स्तर के साथ ग्रिड

को स्थिर रखने के लिए एक नई दृष्टि प्रदान की है। कोविड-19 महामारी के बाद के दौर में यह एक नया मानदंड

हो सकता है।

वैसे एक कहावत है कि नवीकरणीय ऊर्जा पर्यावरण के लिए तो अच्छी है, लेकिन व्यापार के लिए काफी हद तक बीते दिनों की बात है। केवल सौर ही नहीं, मुझे यह भी उम्मीद है कि प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इनोवेशन के कारण नई पवन परियोजनाओं के लागू होने से पवन ऊर्जा की इकाई लागत में कमी आएगी। सौर और पवन ऊर्जा में निवेशकों के बढ़ते भरोसे के साथ, विभिन्न भंडारण प्रौद्योगिकियों के साथ हाइड्रोजन आने वाली प्रमुख भंडारण प्रौद्योगिकी प्रतीत होती है।

हाइड्रोजन को लेकर मैं व्यक्तिगत रूप से आशान्वित हूं। एक किलोग्राम हाइड्रोजन की ऊर्जा घनत्व गैसोलीन की तुलना में लगभग तीन गुना है और आपके पास एक गति है जिसे रोकना असंभव होगा, क्योंकि हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन की कीमतें नीचे आती हैं। हो सकता है कि हाइड्रोजन काउंसिल भविष्यवाणी कर दे कि ग्रीन हाइड्रोजन अगले दशक में 70 अरब डॉलर के निवेश को आकर्षित कर सकता है।  

इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार, जो फिलहाल 1.2 करोड़ है, वह वर्ष 2050 तक चौगुना हो सकता है, जबकि ऊर्जा दक्षता और सिस्टम फ्लेक्सिबिलिटी में नौकरियां चार करोड़ तक और बढ़ सकती हैं। भारत के लिए लाभ का यह बेहतर अवसर है। हमारा देश स्वाभाविक रूप से बहुत उच्च स्तर के सौर संसाधनों से संपन्न है और लंबा तटीय क्षेत्र  पवन ऊर्जा के लिए एक आकर्षक संभावना है। 

स्थापित क्षमता के मामले में, भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग पहले से ही दुनिया भर में चौथे स्थान पर है, और अनुकूल भूगोल, उपकरणों की गिरती कीमतों, बढ़ती मांग और विश्वस्तरीय ट्रांसमिशन नेटवर्क के संयोजन का मतलब एक ऐसे उद्योग का होना है जिसके अगले दो दशकों तक बढ़ते रहने की उम्मीद है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इस क्षेत्र में पिछले एक दशक में 10 अरब डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ है। 

तथ्य यह है कि नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने पहले ही नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य पेरिस में स्थापित 175 गीगाबाइट के 2015 के प्रारंभिक लक्ष्य से 2022 तक  225 गीगाबाइट का लक्ष्य रखा है और उसके बाद 2030 तक के लिए इस लक्ष्य को बढ़ाकर 500 गीगाबाइट कर दिया है, जो भारत को वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश करने में मदद करने के लिए सरकार की गंभीरता के साथ-साथ उसकी क्षमता का संकेत है। 

(लेखक अदाणी ग्रुप के चेयरमैन है)