महेश रस्तोगी। अजय कुमार उत्तर प्रदेश पुलिस में सामान्य कांस्टेबल हैं। कोरोनाकाल में लगातार ड्यूटी कर फर्ज निभाते रहे हैं, कुछ दिन पहले मां का स्वास्थ्य खराब होने के बाद अवकाश लेकर कुछ समय के लिए अपने शहर बरेली आए हुए हैं। लेकिन फर्ज ने यहां भी जोर मारा तो अपने अनूठे तरीके से समाज सेवा के लिए कूद पड़े। यहां पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले वाट्सएप ग्रुप पर संदेश डाला-छुट्टी पर घर आया हूं, रक्तदान करना चाहता हूं। किसी को जरूरत हो तो बेझिझक बता दें। इसके कुछ घंटों बाद ही उनके पास फोन काल आ गई। बताया गया कि अस्पताल में भर्ती जीवन-मृत्यु से जूझ रही एक प्रसूती को रक्त की तत्काल जरूरत है। अजय कुमार बिना को समय गंवाए अस्पताल पहुंचे और रक्तदान कर महिला की जान बचाई। कोरोनाकाल में रक्तदाता सामने नहीं आ रहे हैं, जिससे ब्लड बैंकों में रक्त की कमी हो गई है। ऐसे में अजय कुमार ने निस्वार्थ सेवा का जो तरीका निकाला वह काबिलेतारीफ है।

इस महामारी और महाविपदा की घड़ी में समाज में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं, जहां लोग तन-मन-धन से दूसरों की सहायता कर मानव सेवा की मिसाल कायम कर रहे हैं। लेकिन पूरी दुनिया में मानवता पर जब इतनी बड़ी विपदा पड़ी है, आर्थिक अभाव में लोग खाने तक को मोहताज हो गए हैं। रोजगार छिन गया है। इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। अपनों की जान बचाने के लिए जेवर, मकान तक गिरवी रखना या बेचना पड़ रहा है। पूरा परिवार सड़क पर आ गया है। परिवार की इज्जत-आबरू तक बचाना मुश्किल हो गया है, परिवार में रोगी को बचाने के लिए वे खुद भी तिल-तिल कर मर रहे हैं, ऐसे समय में भी आपदा को कुछ लोगों ने अवसर मानकर अनैतिक कमाई शुरू कर दी है। उन्होंने जमीर ही नहीं बेचा है, उनकी आत्मा तक मर चुकी है। आखिर कौन लोग हैं ये आपदा के असुर जो सारी मानवता को भूलकर इतने निष्ठुर, असंवेदनशील, भ्रष्ट और अमानवीय हो चुके हैं कि उन्हें दूसरों का कष्ट नहीं दिखता। यहां तक कि ये खुद ही लोगों की मौत का इंतजाम कर रहे हैं। इतना ही नहीं, मरने के बाद ये उनके कफन तक चोरी करने लगे हैं। ऐसे लोगों के कुछ पाशविक कारनामों पर निगाह डालना समीचीन होगा।

आक्सीजन की कालाबाजारी रोकने के लिए पुलिस को करनी पड़ी निगरानी। फाइल

कोरोना संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने पर जब रेमडेसिवर इंजेक्शन की मारामारी मची तो न केवल उसकी कृत्रिम कमी उत्पन्न कर दो हजार रुपये के इंजेक्शन के 50-50 हजार रुपये तक वसूले गए, बल्कि इंजेक्शन में पानी भरकर नकली इंजेक्शन तक बेचे गए। नतीजतन जो इंजेक्शन किसी की जान बचा सकता था, वही जानलेवा साबित हुआ। ऐसा ही कुछ कोरोना के इलाज में काम आने वाली तमाम दवाओं के साथ हुआ। वास्तविक कीमत से कई गुना अधिक कीमत वसूली गई। यहां तक कि जिन चिकित्सकों और चिकित्सार्किमयों ने जनसेवा की शपथ ली थी, उनमें से भी तमाम ऐसे भ्रष्ट निकले जो मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करने लगे। अस्पतालों में बेड खाली होते हुए भी उन्हें दिया गया जो जरूरत से ज्यादा पैसे का भुगतान कर सकते थे। प्राणवायु यानी आक्सीजन के लिए तो कहना ही क्या।

आक्सीजन रिफिल और सिलेंडर के लिए हजारों रुपये वसूले गए। जमकर कालाबाजारी हुई। अन्य चिकित्सा उपकरणों के भी मनमाने दाम वसूले गए। यह सबकुछ उन नेताओं और अफसरों की नाक के नीचे हुए, जिन्हें व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी। वे संभाल नहीं पाए या उनका भी कोई स्वार्थ सिद्ध हुआ यह कहना मुश्किल है, लेकिन इतना तो तय है कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ गड़बड़झाला था, जिससे अव्यवस्था फैली और तमाम लोग आक्सीजन या उचित इलाज के अभाव में दम तोड़ गए। इसी घबराहट, हड़बड़ी और मारामारी का नतीजा रहा कि आक्सीजन सिलेंडर की ठीक से सफाई तक नहीं हुई। शुद्ध मेडिकल आक्सीजन तक नहीं मिली, जिसके कारण अब ब्लैक, ह्वाइट फंगस भी महामारी के रूप में हमारे सामने है।

आपदा के असुरों का कारनामा यहीं तक नहीं थमा। मास्क, सैनिटाइजर समेत ऐसे तमाम सामान बाजार में धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं जो नकली हैं या अधोमानक हैं। इन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं है। इसी तरह खाद्यान्न की भी कीमतें आसमान छू रही हैं। आपदा के इन असुरों का दिल इतने से भी नहीं भरा तो उन्होंने श्मशान स्थलों और घाटों से कफन तक चोरी करना शुरू कर दिया। अस्पताल में मृतक के शवों से जेवर तक चोरी हो रहे हैं। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली घटना अलीगढ़ में सामने आई है जहां, एएनएम ने वैक्सीनेशन के लिए गए लोगों को सुई तो चुभोई, लेकिन वैक्सीन इंसर्ट करने की बजाय वैक्सीन से भरी सिरिंज डस्टबिन में फेंक दी। निश्चित रूप से यह मानवता के घोर पतन का गंभीर संकेत है। ऐसे हालात में कोरोना जैसी महामारी पर नियंत्रण पाना मुश्किल होता जा रहा है।

ये केवल इसलिए हो रहे हैं क्योंकि इनके खिलाफ कार्रवाई तो हो रही है, लेकिन इतनी कठोर नहीं कि लोग असुर बनने के नाम से ही कांप जाएं। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार महामारी अधिनियम में दंड के प्रविधानों में संशोधन करने या नए प्रविधान शामिल करने की जरूरत है। जिसमें लंबी और कठोर सजा के साथ संपत्ति जब्तीकरण भी शामिल हो। यह केवल कोरोना महामारी से ही जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है जब किसी भी आपदा काल में अनुचित लाभ उठाने की स्थिति में कोई न रहे। साथ ही लोगों को नैतिक रूप से भी मजबूत बनाने की जरूरत है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए आगे बढ़ें, असुर बनने के लिए। तभी किसी आदर्श समाज के निर्माण की कल्पना हम कर सकते हैं। अन्यथा फिलहाल इसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।