हरेंद्र प्रताप : पिछले महीने यह सामने आया कि झारखंड के जामताड़ा जिले के मुस्लिम बहुल इलाकों में सौ से ज्यादा स्कूलों में प्रधानाध्यापक और शिक्षकों पर दबाव बनाकर रविवार के बदले शुक्रवार को साप्ताहिक छुट्टी कराई जाती है। झारखंड सरकार ने भी यह स्वीकार किया कि 509 विद्यालयों में रविवार के बदले शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश दिया जा रहा था। फिर झारखंड के पड़ोसी बिहार के किशनगंज जिले के 37 और कटिहार जिले के 100 से अधिक प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में रविवार के बदले शुक्रवार को साप्ताहिक छुट्टी का समाचार प्रकाशित हुआ। वहां न केवल साप्ताहिक बंदी शुक्रवार को होती है, बल्कि रविवार को विद्यालय खुला रहता है और उस दिन 'मिड-डे मील' की व्यवस्था भी रहती है। यह सिलसिला असल में कई वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन इसकी भनक उन सामाजिक संगठनों को भी नहीं लगी जो 'बांग्लादेशी घुसपैठ' की बात जोर-शोर से उठाते रहे हैं।

मामले के तूल पकड़ने के बाद झारखंड सरकार ने तो स्वीकार कर लिया कि कुछ विद्यालयों में रविवार के बदले शुक्रवार को छुट्टी होती है, लेकिन बिहार के शिक्षा मंत्री ने तात्कालिक प्रतिक्रिया में कहा कि जिला शिक्षा अधिकारियों से ऐसे स्कूलों की जानकारी ली जाएगी। इसके बाद इस मामले में बिहार सरकार द्वारा कोई जानकारी नहीं दी गई। चूंकि अब वहां सरकार ही बदल गई, इसलिए अब इस मामले में कुछ होने की संभावनाएं क्षीण हैं।

असम, बंगाल और बिहार के सीमावर्ती जिलों में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों आवक पहले से जारी है। अकेले झारखंड के संताल परगना में ही बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये आए, लेकिन इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। 1961 में संताल परगना एक जिला था। उसमें राजमहल/साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका, देवघर और जामताड़ा मिलाकर छह सबडिवीजन थे। ये सभी छह सबडिवीजन अब जिला बन गए हैं। 1961 से 2011 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम जनसंख्या 3.52 प्रतिशत बढ़ी। वहीं संताल परगना के साहिबगंज जिले में मुस्लिम आबादी 14.7 प्रतिशत, पाकुड़ में 13.84 प्रतिशत, जामताड़ा में 8.91 प्रतिशत और गोड्डा में 7.39 प्रतिशत बढ़ी। यह वृद्धि भारतीय मुसलमानों के कारण नहीं, बल्कि बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के कारण हुई है।

1961 में संताल परगना में कुल 41 प्रखंड थे। तब किसी भी प्रखंड में मुस्लिम बहुमत में नहीं थे। प्रखंडों की संख्या अब 41 से बढ़कर 50 हो गई है और इन 50 में से चार प्रखंड मुस्लिम बहुल हो गए हैं और जल्द ही चार अन्य प्रखंडों में भी मुस्लिम आबादी की बहुतायत हो जाएगी। जिस तरह असम में नए जिले बनाने में मुस्लिम बहुल जिलों से छेड़छाड़ किए बिना हिंदू बहुल जिलों की स्थिति साजिशन बदल दी गई, वैसा ही षड्यंत्र झारखंड में देखने को मिला।

असम का जो बोंगाईगांव जिला 2001 में हिंदू बहुल था, वह 2011 में मुस्लिम बहुल हो गया। इसी तरह झारखंड में साहिबगंज का उधवा और गोड्डा का बसंतराय प्रखंड मुस्लिम बहुल प्रखंड बन गया। साइबर क्राइम कैपिटल के नाम से कुख्यात जामताड़ा जिले का नारायणपुर और करमाटाड़ प्रखंड साइबर अपराधियों का गढ़ बन गया है। करमाटाड़ को नारायणपुर और जामताड़ा से काटकर ऐसे बनाया गया है, जिससे नारायणपुर और करमाटाड़ की मुस्लिम आबादी 42 प्रतिशत या उससे अधिक हो गई है।

संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण बढ़ी मुस्लिम आबादी से केवल रविवार के बदले शुक्रवार को अवकाश का दबाव जैसी इकलौती समस्या नहीं है। यहां अप्रैल 2021 का घटनाक्रम याद करना आवश्यक है। तब मुस्लिम बहुल उत्तरी दिनाजपुर में चोर पकड़ने गए बिहार पुलिस के अधिकारी अश्विनी कुमार की भीड़ ने हत्या कर दी थी। जामताड़ा और अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों में राज्य और राज्य के बाहर से आए पुलिस कर्मियों को भी अपना काम करने से रोका जाता है। इस कारण वहां गैर-मुस्लिम डर के मारे अपने पर्व-त्योहार और परंपराओं का उत्सव मनाना भी छोड़ रहे हैं। इसलिए वहां से उनके पलायन पर कोई हैरानी नहीं।

बिहार के मुस्लिम बहुल किशनगंज में आदिवासियों को जो जमीनें दी गई थीं, उन पर मुस्लिम घुसपैठियों ने स्थानीय नेताओं की मदद से कब्जा कर लिया। प्रशासन से उन्हें कोई राहत नहीं मिली। फिर एक जनहित याचिका पर 11 जुलाई को पटना हाईकोर्ट ने राज्य प्रशासन को निर्देश दिया कि वह इन जनजाति बंधुओं को उनकी जमीन पर कब्जा दिलवाए। बिहार की तरह संताल परगना में भी मुस्लिम घुसपैठिये आदिवासी बंधुओं की जमीन के साथ ही सरकारी जमीन पर भी कब्जा कर रहे हैं।

2020 में शरजील इमाम ने धमकाते हुए जिस 'चिकन नेक' को काटने की बात कही थी, उससे बिहार और संताल परगना के साहिबगंज-बड़हरवा होकर गुजरने वाली ट्रेनों से पूर्वोत्तर के कई राज्य शेष भारत से जुड़ते हैं। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी पुस्तक 'मिथ आफ इंडिपेंडेंस' में अपनी मंशा जताई थी कि पूर्वी पाकिस्तान को जितनी जमीन मिलनी चाहिए थी, उतनी नहीं मिली। उन्होंने असम, बंगाल और बिहार की भूमि पर इस्लामी कब्जे के संकेत दिए थे, लेकिन हमारे शासक इसे समझने के बजाय गंगा-जमुनी संस्कृति की बात करते रहे।

मुस्लिम बहुल इलाकों का तेजी से इस्लामीकरण हो रहा है। इससे आज शुक्रवार को साप्ताहिक बंदी तो कल गैर-मुस्लिमों के उपासना स्थलों पर आक्रमण का दुस्साहस होगा। उन्हें मजबूरी में पलायन करना पड़ेगा। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बाद पहले कश्मीर और अब संताल परगना में यह प्रयोग दोहराया जा रहा है।

(लेखक बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हैं)